अक्षय तृतीया

 

अक्षय तृतीया जिसे अखा तीज के रूप में भी जाना जाता है, भारत में हिंदुओं द्वारा माने जाने वाला सबसे शुभ दिन होता है। संस्कृत में अक्षय का शाब्दिक अर्थ "अभेद्य" या "कभी कम नहीं होना" है और इस प्रकार यह दिन नए उपक्रमों की शुरुआत करने या कीमती धातुओं और भूमि में पैसा लगाने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। हिन्‍दू कैलेंडर के मुताबिक बैसाख महीने की शुक्‍ल पक्ष तृतीया को अक्षया तृतीया मनाई जाती है। इस दिन सोना खरीदने में अधिक रुचि रखते हैं।  माना जाता है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पंचागं देखने की जरूरत नहीं है। अक्षय तृतीया पर किए गए कार्यों का कई गुना फल प्राप्‍त होता है। पुराणों में बताया गया है कि यह बहुत ही पुण्यदायी तिथि है इसदिन किए गए दान पुण्य के बारे में मान्यता है कि जो कुछ भी पुण्यकार्य इस दिन किए जाते हैं उनका फल अक्षय होता है यानी कई जन्मों तक इसका लाभ मिलता है।

पूजा की सामग्री:

गंगाजल, भगवान विष्णु व देवी लक्ष्मी की मूर्ति, अक्षत, धूप, चन्दन, पंचामृत, सत्तू, चना, ककड़ी, तुलसी के पत्ते

 

अक्षय तृतीया पूजा की विधि:

मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मणों व गरीबों को दान देने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह अक्षय होता है। इस कारण अक्षय तृतीया को दान का पर्व भी कहा जाता है। नारद पुराण के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन व्रत, पूजन व दान करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन लक्ष्मी जी और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए। अक्षय तृतीया व्रत व पूजन विधि निम्न है:

  • अक्षय तृतीया के दिन सुबह उठकर अक्षतयुक्त जल या गंगाजल में स्नान करना चाहिए।

  • स्नान करने के बाद भगवान विष्णु व देवी लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर अक्षत, धूप, चन्दन आदि से पूजन करना चाहिए।

    Akshatya Tritiya Puja Vidhi
  • पूजा के बाद भगवान की मूर्तियों को पंचामृत से स्नान करवा कर, सत्तू, चना, ककड़ी, तुलसी के पत्ते आदि चढ़ाना चाहिए।

  • अंत में भगवान विष्णु जी की आरती कर, श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।

  • इस दिन बर्तन, तरबूज, खरबूजा, दही, दूध, चावल आदि का दान देना चाहिए।

Akshaya Tritiya Vrat Katha (अक्षय तृतीया व्रत कथा)

Akshaya Tritiya Vrat Kathaकाफ़ी पहले की बात है एक सदाचारी तथा देव-ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला धर्मदास नाम का वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से इस व्रत के माहात्म्य को सुना। कालांतर में जब यह पर्व आया तो उसने गंगा स्नान किया।

विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूँ, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान कीं। स्त्री के बार-बार मना करने, कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म-कर्म और दान-पुण्य से विमुख न हुआ। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई।

अक्षय तृतीया का महत्व

अक्षय तृतीया का महत्व

हिन्‍दू धर्म में अक्षय तृतीया का बड़ा महत्‍व है। इस दिन सोना खरीदने की प्रथा है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन सौभाग्य और शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस दिन जो भी काम किया जाता है उसका परिणाम शुभ होता है। यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन विष्णु जी के अवतार परशुराम का धरती पर जन्म हुआ था। इसी वजह से अक्षय तृतीया को परशुराम के जन्‍मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इसके अलावा अक्षय तृतीया को लेकर एक और मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी स्वर्ग से धरती पर आईं थीं। इसी के साथ अक्षय तृतीया का दिन रसोई और भोजन की देवी अन्‍नपूर्णा का जन्‍मदिन भी माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन शादी से लेकर पूजा तक, सभी करना शुभ माने जाते हैं। 

अक्षय तृतीया की पूजा विधि

अक्षय तृतीया की पूजा विधि

अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। सुबह उठकर स्नान करने के बाद पीले कपड़े पहनते हैं। इस दिन विष्णु जी को गंगाजल से नहलाकर, उन्हें पीले फूलों की माला चढ़ाई जाती है। गरीबों को भोजन कराना और दान देना शुभ माना जाता है।  खेती करने वाले लोग इस दिन भगवान को इमली चढ़ाते हैं। मान्‍यता है कि ऐसा करने से साल भर अच्‍छी फसल होती है। मान्‍यता है कि अक्षय तृतीया के दिन जो भी दान किया जाता है उसका पुण्‍य कई गुना बढ़ा जाता है। इस दिन अच्छे मन से घी, शक्‍कर, अनाज, फल-सब्‍जी, इमली, कपड़े और सोने-चांदी का दान करना चाहिए। कई लोग इस दिन इलेक्‍ट्रॉनिक सामान जैसे कि पंखे और कूलर का दान भी करते हैं। 

अक्षय तृतीय का इतिहास

भगवान परशुराम

अश्रय तृतीया को लेकर कई मान्यताएं हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्‍णु के छठें अवतार माने जाने वाले भगवान परशुराम का जन्‍म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। परशुराम ने महर्षि जमदाग्नि और माता रेनुकादेवी के घर जन्‍म लिया था। यही कारण है कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्‍णु की उपासना की जाती है। इसदिन परशुरामजी की पूजा करने का भी विधान है। वहीं दूसरी कथा अनुसार इस दिन मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरीत हुई थीं। राजा भागीरथ ने गंगा को धरती पर अवतरित कराने के लिए हजारों वर्ष तक तप कर उन्हें धरती पर लाए थे। इस दिन पवित्र गंगा में डूबकी लगाने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन मां अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी मनाया जाता है। इस दिन गरीबों को खाना खिलाया जाता है और भंडारे किए जाते हैं। मां अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा भोजन में स्वाद बढ़ जाता है। अक्षय तृतीया के अवसर पर ही म‍हर्षि वेदव्‍यास जी ने महाभारत लिखना शुरू किया था। महाभारत को पांचवें वेद के रूप में माना जाता है। इसी में श्रीमद्भागवत गीता भी समाहित है। अक्षय तृतीया के दिन श्रीमद्भागवत गीता के 18 वें अध्‍याय का पाठ करना चाहिए।

 अक्षय तृतीया को अनन्त सफलता का स्वर्णिम दिन भी कहा जाता है क्योंकि स्वर्ण युग या चार युगों में से पहला - सत्ययुग इस दिन से शुरू हुआ माना जाता है। अखा तीज भगवान विष्णु के छठे अवतार - भगवान परशुराम के जन्मदिन का भी प्रतीक है। शुभ दिन भी एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि पवित्र नदी गंगा भी इसी दिन स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थी। एक कथा के अनुसार, भगवान गणेश के साथ वेदव्यास ने अक्षय तृतीया की पूर्व संध्या पर महान हिंदू धर्मग्रंथ महाभारत लिखना शुरू किया। जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर - भगवान ऋषभदेव ने भी अखा तीज के दिन रस ग्रहण करके एक वर्ष का अपना उपवास तोड़ा था। अक्षय तृतीया को नवान्न पर्व भी कहा जाता है। अक्षय तृतीया के दिन रोहिणी नक्षत्र के साथ पड़ने का दिन अक्षय तृतीया तिथि की तुलना में अधिक शुभ माना जाता है। लोगों के जीवन पर अक्षय तृतीया का प्रभाव तब अधिक पड़ता है जब वह सोमवार को पड़ता है। लोग प्रभु से अधिकतम आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन बहुत अधिक दान देते हैं। किंवदंतियों के अनुसार, इस दिन यह भी था कि सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने गए थे और उन्हें नमकीन चावल खिलाए। इसके अलावा, इस दिन, द्रौपदी को कृष्ण द्वारा संरक्षित किया गया था जब दुशासन ने अपने शाही दरबार में उसका अनावरण करने की कोशिश की थी। हालांकि, धन और संपत्ति के संरक्षक, कुबेर को सबसे अमीर और सबसे धनी माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने अक्षय तृतीया के दिन भगवान शिव से प्रार्थना करके यह पद प्राप्त किया था।

अक्षय तृतीया की कथा

अक्षय तृतीया की कथा

हिंदु धार्मिक कथा के अनुसार एक गांव में धर्मदास नाम का व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता था। उसके एक बार अक्षय तृतीया का व्रत करने का सोचा। स्नान करने के बाद उसने विधिवत भगवान विष्णु जी की पूजा की। इसके बाद उसने ब्राह्मण को पंखा, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेहूं, गुड़, घी, दही, सोना और कपड़े अर्पित किए। इतना सबकुछ दान में देते हुए पत्नी ने उसे टोका। लेकिन धर्मदास विचलित नहीं हुआ और ब्राह्मण को ये सब दान में दे दिया।  यही नहीं उसने हर साल पूरे विधि-विधान से अक्षय तृतीया का व्रत किया और अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार ब्राहम्ण को दान भी दिया। बुढ़ापे और दुख बीमारी में भी उसने यही सब किया। इस जन्म के पुण्य से धर्मदास ने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया। उनके राज्‍य में सभी प्रकार का सुख-वैभव और धन-संपदा थी। अक्षय तृतीया के प्रभाव से राजा को यश की प्राप्ति हुई, लेकिन उन्‍होंने कभी लालच नहीं किया। राजा पुण्‍य के कामों में लगे रहे और उन्‍हें हमेशा अक्षय तृतीया का फल म‍िलता रहा। 

 
अक्षय तृतीया मंत्र

अक्षय तृतीया नाम चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति के विशेष ग्रहों की स्थिति का वर्णन करता है, क्योंकि इस दिन तीनों एकमत से मृगशिरा नक्षत्र में आते हैं। चंद्रमा और सूर्य दोनों अपने सबसे चमकीले स्तर पर चमकते हैं, जो दिन की शुभता को दर्शाता है।

“कुबेर ट्वम दानादेसम ग्रुहा
ते कमला सिथता
तम देवेम प्रीहासु त्वाम मदग्रुहे
ते नमो नमः ”

अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त 

इस मुहूर्त में सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। 

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