अलवर भारत के राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। यह नगर राजस्थान के मेवात अञ्चल के अंतर्गत आता है। दिल्ली के निकट होने के कारण यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र मे शामिल है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १६० कि॰मी॰ की दूरी पर है। अलवर अरावली की पहाडियों के मध्य में बसा है। अलवर का प्राचीन नाम शाल्वपुर था। चारदीवारी और खाई से घिरे इस शहर में एक पर्वतश्रेणी की पृष्ठभूमि के सामने शंक्वाकार पहाड़ पर स्थित बाला क़िला इसकी विशिष्टता है। 1775 में इसे अलवर रजवाड़े की राजधानी बनाया गया था। अरावली पर्वत श्रंखलाओं से सुशोभित अलवर जिला न केवल पर्यटकीय दृष्टिकोण से अपितु सांस्कृतिक दृष्टि से भी जनसाधारण के आकर्षण का केंद्र रहा है| इस आकर्षण का मूलाधार, यहाँ पर निर्मित अदभुत स्थापत्य कला के प्रतीक महल, किले, बावडिया, मंदिर एवं रमणीय ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल है|
अलवर उत्सव

राजौरगढ़ के शिलालेख से पता चलता है कि सन् 959 में इस प्रदेश पर गुर्जर प्रतिहार वंशीय सावर के पुत्र मथनदेव का अधिकार था, जो कन्नौज के भट्टारक राजा परमेश्वर क्षितिपाल देव के द्वितीय पुत्र श्री विजयपाल देव का सामन्त था। इसकी राजधानी राजपुर थी। 13वीं शताब्दी से पूर्व अजमेर के राजा बीसलदेव चौहान ने राजा महेश के वंशज मंगल को हराकर यह प्रदेश निकुम्भों से छीन कर अपने वंशज के अधिकार में दे दिया। पृथ्वीराज चौहान और मंगल ने ब्यावर के राजपूतों की लड़कियों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया। सन् 1205 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने चौहानों से यह देश छीन कर पुन: निकुम्बों को दे दिया। 1 जून 1740 रविवार को मौहब्बत सिंह की रानी बख्त कुँवर ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रताप सिंह रखा गया। इसके पश्चात् सन् 1756 में मौहब्बत सिंह बखाड़े के युद्ध में जयपुर राज्य की ओर से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। राजगढ़ में उसकी विशाल छतरी बनी हुई है। मौहब्बत सिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र प्रतापसिंह ने 1775 ई. को अलवर राज्य की स्थापना की।

अलवर उत्सव क्यो मनाया जाता है ?

अलवर यूं तो प्राकृति और इतिहास में काफी धनी है लेकिन इसके अनुसार यहां पर्यटकों की आवाजाही कम है और पर्टयन के क्षेत्र में अलवर को आगे लाने के लिए कोशिशें भी होती रही हैं| इसी को ध्यान में रखकर अलवर उत्सव को खास बनाने की तैयारी हर वर्ष होती रहती है, ताकि पर्यटकों को खूबसूरत अलवर में लुभाया जा सके| अलवर उत्सव का आयोजन जिला प्रशासन एवं पर्यटन विभाग, राजस्थान के तत्वाधान में किया जाता है, जो कि अलवर जिले के सभी पर्यटक स्थलों का प्रचार प्रसार, पर्यटकों को बढ़ावा व पर्यटकों को आकर्षित करने एवं अलवर जिले की संस्कृति को उजागर करने हेतु मनाया जाता है| इस उत्सव में सिलीसेढ़ झील में ही वाटर स्पोर्टस की गतिविधियां, शाम के समय महल चौक में लोकरंग सास्कृतिक कार्यक्रम, परम्परागत खेलों का आयोजन, सूचना केंद्र में प्रदर्शनी का आयोजन, मेहंदी और रंगोली जैसी कई प्रतियोगिताओं का आयोजन इस उत्सव में किया जाता है|

अलवर उत्सव के दौरान निम्न कार्यक्रम आयोजित कराये जाते हैं:
1.राजस्थान के कलाकारों एवं अन्य कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन किया जाता है|
2.पारंपरिक खेलकूद एवं मेहंदी मांडना व रंगोली प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है |
3.साहसिक (अड्वेंचर आक्टिविटीस) खेलों का आयोजन किया जाता है |
4.विशाल शोभायात्रा एवं दीपदान का भी आयोजन किया जाता है |

अलवर कैसे पहुँचें ?

वायु मार्ग:  अलवर के सबसे नजदीक हवाई अड्डा सांगनेर है। यहां से अलवर पहुंचाने के लिए टैक्सी वाले 700-800 रू लेते हैं।

रेल मार्ग: रेलमार्ग द्वारा भी आसानी से अलवर पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से दिल्ली-जयपुर, अजमेर-शताब्दी, जम्मू-दिल्ली और दिल्ली-जैसलमेर एक्सप्रेस द्वारा आसानी से अलवर रेलवे स्टेशन पहुंचा जा सकता है। यहां से आगे की यात्रा आप टैक्सी द्वारा कर सकते हैं। अगर आपने होटल में आरक्षण करवा रखा है तो होटल की गाडी आपको स्टेशन पर लेने आएगी।

सडक मार्ग: दिल्ली से अलवर (राष्ट्रीय राजमार्ग 8 से) धारूहेडा पहुँच कर बाएं भिवाडी की ओर मुडिए, थोड़ा आगे दायें भिवाडी-अलवर टोल मार्ग से आसानी से अलवर पहुंचा जा सकता है। टॉल रोड पर चलने के लिए राजस्व नहीं देना पडता है। दिल्ली से गुड़गाँव, सोहना, फिरोजपुर झिरका, नौगाँव होकर भी अलवर पहुंचा जा सकता है। हालांकि यह दोनों राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं हैं, पर दोनों ही मार्ग अब अच्छे हैं। दोनों ही से दूरी लगभग समान 160 कि.मी.है।

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