भारतीय संविधान के निर्माता और प्रणेता डॉ भीमराव रामजी आम्बेडकर उर्फ डॉ बी आर आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महु जिले में एमएचओयू (युद्ध के सैन्य मुख्यालय) में हुआ था। अबेंडकर को सविंधान निर्माता भी का जाता है। उन्हें "भारतीय संविधान का जनक" भी कहा जाता है। इस दिन को 'समानता दिवस' और 'ज्ञान दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकी डॉ॰ भीमराव आंबेडकर ने अपना पूरा जीवन समानता और संप्रभुता में लगा दिया। उन्होंने भारतीय समाज में व्यापत जात-पात, ऊंच-नीच की राजनिती पर कड़ा कटाक्ष किया। अबेंडकर जयंती भारतीयों के लिये उनके विशाल योगदान को याद करने का दिन है। यहा के लोग बहुत ही खुशी के साथ आम्बेडकर जयंती मनाते हैं। डॉ भीमराव आम्बेडकर भारतीय संविधान के पिता थे। उन्होंने भारत के निम्न स्तरीय समूह के लोगों की आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के साथ ही शिक्षा की जरुरत के लक्ष्य को फैलाने के लिये भारत में वर्ष 1923 में “बहिष्कृत हितकरनी सभा” की स्थापना की थी। भारत में जातिवाद को जड़ से हटाने के लक्ष्य के लिये “शिक्षित करना-आंदोलन करना-संगठित करना” का नारा दिया। उन्होंने समाज के वंचित वर्ग को ऊपर उठाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। इसलिए, कई भारतीयों और यहां तक कि अन्य देशों के लोग भी उन्हें एक महान सामाजिक सुधारक के रूप में सम्मानित करते हैं। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1990 में भारत के प्रति महान योगदान देने के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया जिसे भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार माना जाता है। बाबा साहेब की जयंती 14 अप्रैल को पूरे देश में मनाई जाता है और इस दिन को सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित किया गया है।

डॉ भीमराव आम्बेडकर जयंती

भीमराव आम्बेडकर का जीवन परिचय

डॉ आम्बेडकर ने अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था के खिलाफ अपना जीवन बिताया। दलित बौद्ध आंदोलन के झुकाव के लिए उन्हें श्रेय दिया जाता है। डॉ बी आर आम्बेडकर मसौदा समिति के अध्यक्ष थे। वह भारत के पहले कानून मंत्री भी थे। आम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश में स्थित नगर सैन्य छावनी महू में हुआ था। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल और माता भीमाबाई थीं। वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो अछूत मानी जाती थी। अपने बचपन के दौरान, उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। हिंदू मौर जाति के नाम से, उनके परिवार को ऊपरी वर्गों द्वारा “अछूत” के रूप में देखा जाता था। सेना स्कूल में आम्बेडकर को भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ा। सामाजिक आक्रोश से डरते हुए, शिक्षक ब्राह्मणों और अन्य ऊपरी वर्गों के छात्रों से निचले वर्ग के छात्रों के साथ भेदभाव करते थे। शिक्षक अक्सर अछूत छात्रों को कक्षा से बाहर बैठने के लिए कहते थे। सातारा स्थानांतरित होने के बाद, उन्हें स्थानीय स्कूल में नामांकित किया गया, लेकिन स्कूल बदल देने से भीमराव का भाग्य नहीं बदला। जहां भी वह गये उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। अमेरिका से वापस आने के बाद, आम्बेडकर को बड़ौदा के राजा के रक्षा सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन वहां भी उन्हें ‘अछूत’ होने के लिए अपमान का सामना करना पड़ा था। उन्होंने एलफिन्स्टन हाई स्कूल से 1908 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1908 में, आम्बेडकर को एलफिन्स्टन कॉलेज में अध्ययन करने का अवसर मिला और 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अपनी स्नातक की डिग्री प्राप्त की। आम्बेडकर को अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए न्यूयॉर्क शहर में कोलंबिया विश्वविद्यालय को नामांकित किया। उन्होंने जून 1915 में ‘ इंडियन कॉमर्स’ से मास्टर डिग्री की उपाधि प्राप्त की। 1916 में, उन्हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में नामांकित किया। और उन्होंने “डॉक्टर थीसिस”, “रुपये की समस्या” : इसका मूल और इसके समाधान” पर काम करना शुरू कर दिया। बॉम्बे के पूर्व गवर्नर लॉर्ड सिडेनहम की मदद से बॉम्बे में सिडेनहैम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में आम्बेडकर राजनीति के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। अपने आगे के अध्ययन को जारी रखने के लिए, वह अपने खर्च पर 1920 में इंग्लैंड गए। वहां उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा डी।एस।सी। प्राप्त हुआ। आम्बेडकर ने बॉन, जर्मनी विश्वविद्यालय में, अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए कुछ महीने बिताए। उन्होंने 1927 में इकोनॉमिक्स में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। 8 जून, 1927 को, उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया था। भारत लौटने के बाद, भीमराव आम्बेडकर ने जाति के भेदभाव के खिलाफ लड़ने का फैसला किया, जिसकी वजह से उन्हें अपने पूरे जीवन में पीड़ा का सामना करना पड़ा। 1919 में भारत सरकार अधिनियम की तैयारी के लिए दक्षिणबोरो समिति से पहले अपनी गवाही में आम्बेडकर ने कहा कि अछूतों और अन्य हाशिए समुदायों के लिए अलग निर्वाचन प्रणाली होनी चाहिए। उन्होंने दलितों और अन्य धार्मिक बहिष्कारों के लिए आरक्षण का विचार किया। आम्बेडकर ने लोगों तक पहुंचने और सामाजिक बुराइयों की खामियों को समझने के तरीकों को खोजना शुरू कर दिया। उन्होंने 1920 में कलकापुर के महाराजा शाहजी द्वितीय की सहायता से “मूकनायक” नामक समाचार पत्र का शुभारंभ किया। इस घटना ने देश के सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में भी भारी हंगामा पैदा कर दिया। उन्होंने जाति के भेदभाव के मामलों की वकालत करने वाले विवादित कौशलों को लागू किया। भारत को बर्बाद करने के लिए ब्राह्मणों पर आरोप लगाते हुए कई गैर-ब्राह्मण नेताओं की रक्षा में उनकी शानदार विजय ने अपनी भविष्य की लड़ाई का आधार स्थापित किया। 1927 तक आम्बेडकर ने दलित अधिकारों के लिए पूर्ण गति से आंदोलन की शुरुआत की । उन्होंने सार्वजनिक पेयजल स्रोतों को सभी के लिए खुला और सभी जातियों के लिए सभी मंदिरों में प्रवेश करने की मांग की। उन्होंने नासिक में कलाराम मंदिर में घुसने के लिए भेदभाव की वकालत करने के लिए हिंदुत्ववादियों की निंदा की और प्रतीकात्मक प्रदर्शन किए। 1932 में, पूना संधि पर डॉ। आम्बेडकर और हिंदू ब्राह्मणों के प्रतिनिधि पंडित मदन मोहन मालवीय के बीच सामान्य मतदाताओं के भीतर, अस्थायी विधानसभाओं में अस्पृश्य वर्गों के लिए सीटों के आरक्षण के लिए पूना संधि पर हस्ताक्षर किए गए। 1948 से, आम्बेडकर मधुमेह से पीड़ित रहने लगेराजनीतिक मुद्दों से परेशान आम्बेडकर का स्वास्थ्य बद से बदतर होता चला गयाष अपनी अंतिम पांडुलिपि भगवान बुद्ध और उनका धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसम्बर 1956 को आम्बेडकर का महापरिनिर्वाण नींद में उनके दिल्ली के घर में हुआ। जिसमें असंख्य लोगों ने उन्हें अंतिम विदाई दी।

बी आर आम्बेडकर का योगदान

बी आर आम्बेडकर ने अपना पूरा जीवन जात-पात का भेद मिटाने में लगा दिया। उन्होंने निम्न वर्ग समूह के लोगों के लिये अस्पृश्यता की सामाजिक मान्यता को मिटाने के लिये उन्होंने काम किया। बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत करने के दौरान उनकी सामाजिक स्थिति को बढ़ाने के लिये समाज में अस्पृश्यों को ऊपर उठाने के लिये उन्होंने विरोध किया। दलित वर्ग के जातिच्युतता लोगों के कल्याण और उनके सामाजिक-आर्थिक सुधार के लिये अस्पृश्यों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये ‘बहिष्कृत हितकरनी सभा’ कहे जाने वाले एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। उन्होंने एक सक्रिय सार्वजनिक आंदोलन की शुरुआत की और हिन्दू मंदिरों (1930 में कालाराम मंदिर आंदोलन) में प्रवेश के साथ ही जल संसाधनों के लिये अस्पृश्यता को हटाने के लिये 1927 में प्रदर्शन किया। दलित वर्ग के अस्पृश्य लोगों के लिये सीट आरक्षित करने के लिये पूना संधि के द्वारा उन्होंने अलग निर्वाचक मंडल की माँग की। भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में इन्होंने एक बड़ी भूमिका निभायी क्योंकि वो एक पेशेवर अर्थशास्त्री थे। अर्थशास्त्र पर अपने तीन सफल अध्ययनशील किताबों जैसे “प्रशासन और ईस्ट इंडिया कंपनी का वित्त, ब्रिटिश इंडिया में प्रान्तीय वित्त के उद्भव और रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और समाधान” के द्वारा हिल्टन यंग कमीशन के लिये अपने विचार देने के बाद 1934 में भारत के रिजर्व बैंक को बनाने में वो सफल हुये। 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद पहले कानून मंत्री के रुप में सेवा देने के लिये उन्हें काँग्रेस सरकार द्वारा आमंत्रित किया 26 नवंबर 1949 में संवैधानिक सभा द्वारा अंगीकृत किया गया। भारत के जम्मू कश्मीर के लोगों के लिये विशेष दर्जा उपलब्ध कराने के लिये भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे। डॉ। आम्बेडकर ने समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए सबसे ज्यादा अशिक्षा को जिम्मेदार माना। इन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया। बाबा साहेब ने सिर्फ अछूतों के अधिकार के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के पुनर्निर्माण के लिए प्रयासरत रहे। उन्होंने मजदूर वर्ग के कल्याण के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया। पहले मजदूरों से प्रतिदिन 12-14 घंटों तक काम लिया जाता था। इनके प्रयासों से प्रतिदिन आठ घंटे काम करने का नियम पारित हुआ।

आबेंडकर जयंती उत्सव

आबेंडकर जयंती पूरे भारत भर में वाराणसी, दिल्ली सहित दूसरे बड़े शहरों में बेहद जुनून के साथ आम्बेडकर जयंती मनायी जाती है। कचहरी क्षेत्र में डॉ आम्बेडकर जयंती समारोह समिति के द्वारा डॉ आम्बेडकर के जन्मदिवस उत्सव के लिये कार्यक्रम वाराणसी में आयोजित होता है। वो विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करते हैं जैसे चित्रकारी, सामान्य ज्ञान प्रश्न-उत्तर प्रतियोगिता, चर्चा, नृत्य, निबंध लेखन, परिचर्चा, खेल प्रतियोगिता और नाटक जिसके लिये पास के स्कूलों के विद्यार्थीयों सहित कई लोग भाग लेते हैं। इस उत्सव को मनाने के लिये, लखनऊ में भारतीय पत्रकार लोक कल्याण संघ द्वारा हर वर्ष एक बड़ा सेमीनार आयोजित किया जाता है। स्कूल के विद्यार्थियों द्वारा प्रभात फेरी और रैली निकाली जाती है। कई जगहों पर, गरीब लोगों के लिये मुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण और दवा उपलब्ध कराने के लिये मुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण कैंप भी आयोजित किए जाते हैं। अबेंडकर जयंती पर उनकी प्रतिमाओं पर पुष्प अर्पित कर श्रदधांजलि दी जाती है। इस दिन लोग उन्हें उनके अमूल्य योगदान के लिए याद करते हैं और उनकी शुक्रिया अदा करते हैं।

डॉ भीमराव आम्बेडकर जयंती
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