हिंदू कैलेंडर के हिसाब से हर माहीने में कुछ पक्ष होते हैं और हर पक्ष की 14वीं तारीख को चतुर्थी कहा जाता है। जब गणेश भगवान का विसर्जन शुरू हो जाता है तो उसी दिन अनंत चतुर्दशी भी मनाई जाती है। अनंत चतुर्थी में एक धागे को पूजा स्थान में रख कर उसकी उपासना की जाती है। पूजा कर के वो धागा हाथ में बांध लिया जाता है। माना जाता है ये धागा सारी परेशानियों को खत्म करके बुरी शक्तियों और नेगेटिविटी को भगा देता है। इस चतुर्थी में भगवान विष्णु को विशेष तौर पर पूजा जाता है। ये धागा महिलाएं बाएं और व्यक्ति दाएं हाथ में पहनते हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत भी किया जाता है।
अनंत चतुर्दशी व्रत विधी
-सुबह उठें और नहा धोकर स्वच्छ कर लें
- पूजा स्थल पर कलश को अच्छे से धोने के बाद चमकाकर रखें
-कलश में कमल का फूल रखें
- कुषा का धागा या सूत्र चढ़ाएं
- कलश पर कुमकुम और हल्दी का रंग लगाएं
-हल्दी से ही कुषा के रंगें
-अनंत देवता का ध्यान करके धूप, अगरबत्ती लगाएं
-पूजा के बाद ये धागा बांध लें
-इस दिन खाने में पूरी खीर बनाएं
अनंत चतुर्दशी कथा
बहुत वक्त पहले कि बात है एक सुमन्त नाम का ब्राह्मण था उसके घर एक बेटी पैदा हुई। बेटी के पैदा होते ही ब्राह्मण की पत्नी मर गई। बच्ची को पालने के लिये ब्राह्मण ने दूसरी शादी कर ली, लेकिन दूसरी पत्नी उसकी बेटी सुशीला को पसंद नहीं करती थी। जब सुशील बड़ी हुई तो ब्राह्मण ने उसके विवाह का प्रस्ताव कौंडिल्य ऋषी के पास रखा, जिसे मान कर ऋषि ने सुशीला से शादी कर ली। शादी में भी ब्राह्मण की दूसरी पत्नी ने कोई सहयोग नहीं दिया और बच्ची की विदाई में ब्राह्मण सिर्फ आटे का हलवा ही दे पाया। जब कौंडिल्य सुशीला को लेकर जा रहे थे तो नदी किनारे कुछ लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे थे। सुशीला ने भी वहां पर भगवान की पूजा कि और कुछ ही दिन में उसके घर में धन, संपदा और सब कुछ आ गया। एक दिन ऋषि कौंडिल्य ने सुशीला के हाथ पर अनंत पूजा का धागा बंधा देखा और उसके बारे में पूछा। सुशीला ने कहा कि ये अनंत चतुर्थी पर पूजा के बाद बांधा गया था और इसी वजह से हमारे घर में सब कुछ अच्छा हुआ है। इस बात पर ऋषि कौंडिल्य भड़क गए और कहा कि ये इससे नहीं मेरी मेहनत से हो रहा है। ऐसा कह कर उन्होनें सुशीला के हाथ से धागा तोड़कर आग में फेंक दिया। धागा टूटने के साथ ही उनका बुरा वक्त शुरू हो गया और सब कुछ खत्म हो गया। घर के हालात दिन ब दिन खराब होते गए। ऋषि कौण्डिन्य अनंत भगवान की खोज में घर से निकल गए। रास्ते में वो आम के पेड़, गाय, बैल, गधा मिला, उन्होेंने उनसे भी भगवान अनंत के बारे में पूछा, लेकिन कहीं कोई जवाब नहीं मिला ।।जब वे थक गये तो गिर गये तब भगवान को उन पर दया आई और ऋषि कौण्डिन्य को महालक्ष्मी के साथ दर्शन दिए ।और बताया की मै ही अनंत हूँ ।ऋषि ने उनसे माफी मांगी और कहा की मुझसे भूल हो गई । कौण्डिन्य घर आये और अपनी पत्नी सुशीला के साथ मिलकर अनंत चतुर्दशी को पूजा की उसके प्रभाव से वो धन-वैभव संपन हुए।To read this article in English click here