कौन थे भगवान अयप्पा?
पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।अरातुपुझा पूरम महोत्सव
अरातुपुझा उत्सव सात दिनों के लिए मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान शहर की सभी इमारतें रंगीन बल्ब, लाईट और सजावट से जगमगाने लगती है। जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती है। यह त्योहार केरल के त्रिशूर जिले के प्रसिद्ध अरातुपुझा मंदिर में मनाया जाता है। मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है। यह उत्सव 3,000 वर्षीय श्रीस्थस्थ मंदिर से पहले होता है। इस अवसर को देवताओं के सम्मेलन के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है इसी दिन सभी देवी-देवता आपस में मिलते हैं। अरातुपुझा पुरम उत्सव दुनिया में सबसे बड़ा देवमेला है। इस त्यौहार के दौरान हाथियों के झुंड़ को सजाना काफी प्रसिद्ध है। इस उत्सव के दिन मंदिर के सामने प्रदर्शन करने वाले हाथियों और संगीतकारों का समूह अपनी कलाकारी दिखाते हैं। हाथियों को पारंपरिक ढंग से खूब सजाय जाता है। हाथियों को सजाने की कला यहां प्रंशसनिय है। इस उत्सव में मंदिर के चारों और पांरपरिक दुकानें सजी रहती हैं। हस्तरेखा, पुस्तक, विक्रेता, फल-फूल वाले, वस्त्र वाले आदि कई व्यापारी मंदिर के बाहर दुकान लगाए बैठे रहेत हैं। त्यौहार के पांचवें दिन, एक जुलूस आयोजित किया जाता है जिसमें ड्रमर और सुंदर हाथी के साथ 23 देवताओं की मूर्तियों निकलाते हैं। जिसमें थ्रिपययार थेवर, ओराकाथाम्मा तिरुवदी, चेरपिल भगवती, चतुकुदामस्थस्थ, अंकित भगवथी, थॉटिपल भगवथी ,पिशारिकल भगवती, इक्कादुनी भगवती, अयुनील भगवती, थाईकातुसे भगवती,कदुपेसरी भगवती, चौराकोतु भगवती,पोनिराक्कवली भगवती, कचुप्सताकरील भगवती, चक्कमकुलंगरा संस्था, कोदानुर सस्था, ननकुलम सस्था, श्रीमती सस्था, नैतिस्त्रे सस्था, कलौली सस्था, चितचातकुदम सस्था और मेदाकुलम सस्था आदि देवी-देवता शामिल है।अरातुपुझा मंदिर और हाथी उत्सव
अरातुपुझा पूरम हाथियों का जुलूस सभी के आकर्षण का केंद्र रहता है जिसे देखने के लिए भारत के अलावा दुनिया भर के पर्यटक आते हैं। हाथियों, ढोल नगाड़ों के अलावा आतिशबाजी भी इस त्योहार का मुख्य आकर्षण है जिसे देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। भारत का दक्षिण भारतीय राज्य केरल अपने मंदिरों के कारण लगातार धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है और आज केरल और पर्यटन लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची बन गए हैं। ये भारत का एक ऐसा राज्य है जहां जितना महत्त्व मंदिर और भगवान को दिया जाता है उतना ही हाथियों को भी। शायद यही कारण है कि हाथी केरल का राज्य पशु है। केरल के सभी त्योहारों में हाथी अनिवार्य है। इस उत्सव में अरुतुपुझास्थ मंदिर के देवता की मूर्ति को थॉटिपल मंदिर में ले जाया जाता है। इसे थोटापाल पूरम के बाद सोस्थ मंदिर में वापस लाया जाता है और फिर नियमित अनुष्ठान और श्रीभाथबाली का प्रदर्शन किया जाता है। हाथियों का एक झुंड आयोजित किया जाता है जिसमें खूबसूरती से सजाए गए 61 हाथी होते हैं। इसके बाद लोगों को बहुत भारी भीड़ पारंपरिक परिधानों में नृत्य करते हुए, गाना गाते, प्रार्थना करते हुए एकत्रित होती है। पंचवद्यम, नदाश्वरम, पचारीमेलम और पांडिमलम को भगवान अयप्पा के साथ अरातुपुझा नदी पवित्र स्नान (अराट्टू) कराया जाता है। पारंपरिक रुप से सजे हाथी भगवान की मूर्ति पर छाया करते हैं। जिसके बाद रात में मंदिर के बाहर जलाई गई माशालों की रौशनी सुंदर सोने के गहनों के समान प्रतित होती है। जो मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देती है। अरातुपुझा पुरम उत्सव में हाथियों के दौड़ की भी प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। किसकी हाथी सबसे सुदंर ढंग से सजाया गया है यह भी देखा जाता है। लोग अपने पांरपरिक वस्त्र पहन कर इस उत्सव को और सुंदर बना देते हैं। पांरपरिक नृत्य, संगीत भगवान अयप्पा को समर्पित कर किया जाता है। यहां विशेष पारंपरिक ढोल नगाड़े और ये कलाकार भी हाथियों के अलावा त्योहार के मुख्य आकर्षण होते हैं। बताया जाता है कि इस त्योहार के लिए 250 से अधिक कलाकार यहां आकर अपनी कला को लोगों के बीच दिखाते हैं। इस दिन लोग भगवान से सुख-शांति की प्रार्थना करते हैं। यही वो उत्सव होता है जब हर गांव के भगवान एक साथ आकर भगवान अयप्पा के मदिंर में विराजमान होते हैं। लोगों की मान्यता है कि इस दिन भगवान की असीप कृपा प्राप्त होती है।To read this Article in English Click here