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पीर बनने की कहानी
जब बाबा रामदेव के चमत्कारों के किस्से मक्का तक पहुंचे तो वहां से पांच पीर उनकी परीक्षा लेने राजस्थान आए। पीरों के पहुंचने पर बाबा रामदेव ने उनको खाना खिलाने के लिये आदर सत्कार से बैठाया। जैसे ही खाना डालने लगे तो एक पीर ने कहा कि वो अपना कटोरा मक्का में भूल आए हैं और उसके बिना हम भोजन नहीं कर सकते। रामदेव बाबा ने कहा ठीक है आपको भोजन आपके कोटोरों में ही खिलाया जाएगा। ऐसा कहते ही बाबा ने वहां सभी के कटोरे प्रकट कर दिये। चमत्कार को देख कर सभी पीर उनके आगे नतमस्तक हो गए। पांच पीरों ने बाबा को पीर की उपाधि दी।बाबा रामदेव की कथा
बाबा रामदेव के पिता और राजा अजमलजी को द्वारकाद्धीश श्रीकृष्ण ने ये वरदान दिया था कि वो स्वंय उनके घर अवतरित होंगे। इसी तरह बाबा रामदेव के रूप में वो पैदा हुए। उन्होंने बचपन में ही अपनी लीलाएं दिखानी शुरू कर दीं। माता के आंचल से दूध खुद ही बाबा जी के मुहं में चला जाता था। पांच साल की उम्र में उन्होंने लकड़ी का और कपड़े का घोड़ा आकाश में उड़ाया और आदू राक्षस को मार गिराया। बाद में भैरव राक्षस का भी वध किया। बोहिता राजसेठ की नाव को समुद्र के तूफान से निकालकर किनारे लगाया। स्वारकीया सखा को सांप से डस लिया और मर गया। तब रामदेव जी ने उसका नाम पुकारा और वो जिंदा हो गया। पीर रामदेव ने अंधों को आंखें दी, कोढिय़ों का कोढ़ ठीक किया, लंगड़ों को चलाया। बाद में उन्होंने पोखरण राज्य अपनी बहन को दहेज में दे दिया और रूणिचा के राजा बने। यहीं पर उन्होंने जीवित समाधि ली।
श्री रामदेव जी की आरती
पिछम धरां सूं म्हारा पीर जी पधारिया ।घर अजमल अवतार लियो ।
लाछां सुगणा करे थारी आरती ।
हरजी भाटी चंवर ढोले ।
गंगा जमुना बहे सरस्वती ।
रामदेव बाबो स्नान करे ।
लाछां सुगणा करे...
घिरत मिठाई बाबा चढे थारे चूरमो ।
धूपारी महकार पङे ।
लाछां सुगणा करे...
ढोल नगाङा बाबा नोबत बाजे ।
झालर री झणकार पङे ।
लाछां सुगणा करे...
दूर-दूर सूं आवे थारे जातरो ।
दरगा आगे बाबा नीवण करे ।
लाछां सुगणा करे...
हरी सरणे भाटी हरजी बोले ।
नवों रे खण्डों मे निसान घुरे ।
लाछां सुगणा करे...
जै बाबा रामदेव्

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