भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहां विभिन्न धर्मो के लोग रहते हैं। यहां सभी धर्मों के त्यौहार पूरे सम्मान और आदर के साथ मिलजूल कर मनाए जाते हैं। यहां के हर मेले और त्यौहार में एकता की भावना झलकती है। भारतीयों में सभी धर्मों के लगभग सभी त्यौहार मनाए जाते हैंष इन्ही मेलों और त्यौहारों में से एक है बाराबंकी मेला जो राषट्रीय एकीकरण को चित्रित करता है। बाराबंकी मेला को देव मेला भी कहा जाता है, जिसे सालाना अक्टूबर और नवंबर के महीनों में मनाया जाता है। देवा शरीफ बाराबंकी जिले के देवा नामक कस्बे में स्थित एक प्रसिद्ध एतिहासिक हिन्दू / मुस्लिम धार्मिक स्थल है। यहाँ पर कौमी एकता के प्रतीक हाजी वारिस अली शाह की दरगाह है। प्रतिवर्ष इस मेले का आयोजन होता है जिसमें अनेक श्रद्धालु आते हैं। इस मेले में अनेक धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों को स्थान मिलता है।

बाराबंकी मेले का इतिहास

वारिस अली शाह; हाजी वारिस अली शाह या सरकार वारिस पाक 1819-1905 ईस्वी के मध्य में एक सूफी संत थे, और बाराबंकी, भारत, में सूफीवाद के वारसी आदेश के संस्थापक थे। इन्होंने व्यापक रूप से पश्चिमी यात्रा की और लोगों को अपनी आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण कराई और लोगों ने इनकी शिक्षाओं को स्वीकार किया. हजरत वारिस पाक की दरगाह उत्तर प्रदेश के देव शरीफ में स्थित है.इनके के पिता का नाम कुर्बान अली शाह था जिनकी कब्र (मजार शरीफ) भी देवा शरीफ में स्थित हैं।हजरत हाजी वारिस अली शाह ने बहुत ही कम उम्र में धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया था। हाजी वारिस शाह मेला देव शऱीफ से 10 किमी की दूरी पर आयोजित किया जाता है। सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के पवित्र मंदिर के उर्स या स्मारक को बरबंकी मेला के रूप में मनाया जाता है, जिसमें सभी मुसलमान शामिल होते हैं। इस मेले में भाग लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। पाकिस्तान और मध्य पूर्व देशों से भी यात्रिगण इस पवित्र मेले में सम्मिलित होने एवं दरगाह के दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मेला सांप्रदायिक सद्भाव और शांति के भावनाओं को बढ़ावा देता है। यह मेला एक जरिया है भारत और उसके पडोसी देशों के बीच अच्छी तालमेल स्थापित करने का ताकि मेले के जरिए रिश्ते अच्चे बने रहे।

उत्सव

बाराबंकी मेले में शामिल होने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं। इस मेले का आयोजन बहुत धूम-धाम से किया जाता है। इस मेले की पहचान इसकी सजावट भी है। जो बहुत ही सुंदर ढंग से की जाती है। चारों और रोशनी और लाइटों से सजी दुकानें इस मेले की शोभा को और बढ़ाती है। 10 दिनों तक चलने वाले इस मेले में पूरे दस दिनों तक हर दिन अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।  इस मेले की शुरुआत दरगाह पर चादर चढ़ाने से होती है। बाराबंकी मेले में नृत्य मेला मुशायरा, कवी सम्मेलन, संगीत सम्मेलन और वाद-विवाद जैसे सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन होता है। जो लोग खेल में रूचि रखते हैं, वे हॉकी, वॉलीबॉल और बैडमिंटन के साथ-साथ राइफल शूटिंग और पतंग उड़ाने जैसे कार्यक्रमों में भाग लके हैं। इनके लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है। बाराबंकी मेले में अलग-अलग स्थानों के आगंतुकों के लिए मवेशी बाजार मुख्य आकर्षण का केन्द्र होता। यहां पर्यटकों को हस्तशिल्प की व्यापक रेंज भी देखने को मिल जाती है। मेले के समापन के मौके पर आतिशबाजी का भव्य कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। जो बाराबंकी मेले के आकर्षण में चार चांद लगा देती है।

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