मेला
इस मेले का इतिहास कई सौ साल पुराना है। अाजादी मिलने के बाद स्थानीय सरकारें इसे आयोजित करवाने लगीं। मेले में मुख्यत: पशु खरीदे और बेचे जाते हैं। घोड़ा, हाथी, बैल, बकरी सब खरीदे और बेचे जाते हैं। पशुओं के अलाव यहां पर फर्नीचर, हैंडिक्राफ्ट, कपड़े भी कई वेराइटी में मिलते हैं। इसके साथ ही खाने पीना की काफी अच्छी व्यवस्था होती है।रोचक किस्सा
एक बार राजा बदन सिंह ने अकबर को बटेश्वर के बीहड़ों में शिकार पर आने का न्योता दिया। राजा ने अकबर से झूठ ही कह दिया कि उन्हें वहां आने के लिये यमुना नदी पार नहीं करनी पड़ेगी। बाद में राजा को अपनी ग़लती का एहसास हुआ, क्योंकि वहां आने के लिये यमुना पार करना जरूरी थी। राजा को काफी चिंता हो गई। राजा को लगा कि अब वो अकबर के सामने झूठे करार दिये जाएंगे। राजा ने अपने मंत्री से बात कि और फिर ये तय किया गया कि यमुना की धारा बदल दी जाए। मिट्टी डालकर बांध बनाया गया और यमुना की दिशा को बदल दिया गया। यमुना के तेज पानी को संभालने के लिये बांध पक्का किया गया। इस पर सौ से ज्यादा मंदिर बना दिये गए। ये मंदिर आज तक वहीं हैं।तीन हफ्ते चलता है मेला
बटेश्वर मेला तीन हफ्ते चलता है। शुरू के दो हफ्तों में पशुओं का मेला लगता है जिसमें बैल, ऊंट, हाथी, घोड़े बेचे और खरीदे जाते हैं। तीसरे हफ्त में कपड़ा, हस्तशिल्प आदि बेचे जाते हैं। यही नहीं मेले में कई रंगारंग कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।To read this article in English click here