भोगी पांदीगाई को पहली पोंगल या भोगी पोंगल भी कहते हैं, जो देवराज इन्द्र को समर्पित हैं। इसे भोगी पोंगल इसलिए कहते हैं क्योंकि देवराज इन्द्र भोग विलास में मस्त रहनेवाले देवता माने जाते हैं। इस दिन संध्या के समय में लोग अपने-अपने घर से पुराने वस्त्र और कूड़े आदि लाकर एक जगह इकट्ठा करते हैं और उसे जलाते हैं। यह पर्व इस बात का भी प्रतीक होता है कि इंद्र देवता जो वर्षा के देव भी कहें जाते है उनकी कृपा से अच्छी वर्षा के कारण ही अच्छी फसल हो पाती है तो उन्हें अपना आभार प्रदर्शित करने का यह एक तरह का तरीका मात्र होता है| इस पर्व को अक्सर कृषक अपने कृषि व्यवसाय की प्रगति और अच्छी फसल होने की खुशी में मनाते है| इस दिन घर मे पड़े पुराने समान, कपड़े आदि को नष्ट कर देना का तात्पर्य यह होता है कि घर से नकारात्मक उर्जा और दिमाग़ से बुरे विचारों को बाहर कर दे और केवल अच्छे, स्वस्थ, सकारात्मक विचारों को स्थान दें| यह ईश्वर के प्रति सम्मान एवं बुराईयों के अंत की भावना को दर्शाता है।
भोगी पांदीगाई पर्व कैसे मनाया जाता है ?
हर घर में सभी लोग प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर घर की साफ-सफाई करते है| घर की महिलायें इस दिन साज़-सज्जा करके चावल के आटे और सिंदूर आदि से घर के मुख्य द्वार के पास "कोलॅम" जिसे हिन्दी मे एक खूबसूरत रंगोली भी कहते है, बनाती है| अपने ईष्ट की पूजा करने और दाल, नारियल और गुड़ से बनने वाला चीला बनाकर भगवान को भोग के रूप में चढ़ाते है| इसके बाद साफ-सफाई से निकली अनावश्यक चीज़ों को घर के बाहर आग में जला देते है| इसके बाद इस दिन बने कई तरह व्यंजन जैसे पचड़ी, पारुपु, कूटु, पोरियल, वरूवाल, अपलम, वाड़ाई,पायसम,भोली,राइस,सांभर,रसम,थाइर को केले के पत्ते में परोस कर खाते है| दिन के सभी चीज़ो से मुक्त होकर इस दिन अग्नि के इर्द गिर्द युवा रात भर भोगी कोट्टम बजाते हैं जो भैस की सिंग काबना एक प्रकार का ढ़ोल होता है| भोगी पांदीगाई तमिलनाडु के साथ आंध्रप्रदेश में भी बड़े पैमाने में अच्छे तरीके से बनाया जाता है| पंजाब मे इसे लोहड़ी और आसाम में इसे बिहू के नाम से मनाते है|To read about this festival in English click here