असमिया जातिर इ आयुष रेखा गण जीवनोर इ साह।।"
अर्थात् बैशाख केवल एक ऋतु ही नहीं, न ही यह एक मास है, बल्कि यह असमिया जाति की आयुरेख और जनगण का साहस है। भारत की विभिन्न संस्कृतियों में विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। यहां जीतने राज्य है उतने ही त्योहार है। इन्हीं प्रमुख त्योहारों में से एक है असम में मनया जाने वाली बिहू का त्योहार। बिहू का त्योहार असम में एक साल में तीन बार मनाया जाता है। बिहू के तीन प्रकार हैं: रोंगाली बिहू, कोंगाली बिहू और भोगली बिहू। प्रत्येक त्यौहार ऐतिहासिक रूप से धान की फसलों के एक अलग कृषि 'बि' मतलब 'पुछ्ना' और 'हु' मतलब 'देना' और वहीं से बिहू नाम उत्पन्न हुआ। सभी तीनों बिहूओं में से रोंगाली बिहू सबसे महत्वपूर्ण है। यह बोहाग के असमिया महीने में पड़ता है, इसलिए इसे बोहाग बिहू भी कहा जाता है। भारत में यह बैसाख महीने के विशुवर संक्रांति या स्थानीय रूप से बोहाग (भास्कर पंचांग) के सात दिन बाद मनाया जात है। यह आमतौर पर अप्रैल को पड़ता है यह त्योहार तीन दिन तक मनाया जाता है। बोहाग बिहू का त्योहार फसल की कटाई को दर्शता है। पंजाब में इसी फसल की कटाई के अवसर पर बैसाखी का त्योहार मनाया जाता है। बोहाग बिदु असमी नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन सुबह से ही चरवाहे लौकी, बैंगन, हल्दी, दीघलती, माखियति आदि सामग्री बनाने में जुट जाते हैं। शाम को सभी गायों को गोशाला में लाकर बाँध देते हैं। विश्वास किया जाता है कि उरूरा के दिन गायों को खुला नहीं रखा जाता है। गाय के चरवाहे एक डलिया में लौकी, बैंगन आदि सजाते हैं। प्रत्येक गाय के लिए एक नयी रस्सी तैयार की जाती है। इस पर्व को अप्रैल मास में तीन दिन—13, 14 और 15 अप्रैल तक मनाया जाता है। इन तीनों दिनों को विभिन्न नामों से जाना जाता है। गोरूबिहू, मनुहोरबिह एवं गम्बोरीबिहू। असम में रोंगाली बिहू बहुत सारे परंपराओं से ली जाती हैं जैसे की- बर्मी-चीन, ऑस्ट्रो - एशियाटिक, हिंद-आर्यन- और बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। बोहाग बिहू का त्योहार त्योहार अप्रैल के मध्य में शुरू होता हैं। इसके अलावा अक्टूबर में कोंगाली बिहू और जनवरी में भोगाली बिहू असम में मनाई जाती है। यह तीनों ही बिहू खेतीं और किसानों से जुड़ी हुई होती हैं। लोग इस उत्सव को हंसी और खुशी के साथ मनाते हैं।
गोरू(गाय) बिहू
रोंगाली बिहू का पहला दिन गोरू या गाय बिहू कहलाता। जैसा कि इसके नाम से ही प्रतित है यह दिन गायों और अन्य खेती करने वाले जानवरों को समर्पित होता है। इस दिन लोग सुबह उठकर अपनी-अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं। गायों को नहलाने के लिए रात में ही भिगो कर रखी गई कलई दाल और कच्ची हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। हल्दी का लेप गायों को लगाया जाता है। उसके बाद वहीं पर उन्हें लौकी, बैंगन आदि खिलाया जाता है। गाय को खाना खिलाते समय असमिया लोग पांरपरिक गीत गाते हैं। (लाओ खा, बेंगेना खा, बोसोर बरहीजा, मार ज़ोरु, बेपर ज़ोरु, तोई होबी बोर बोर गोरू) जिसका अर्थ है गाय खाएं, बैंगन खाएं, साल-दर-साल बढ़ती जाए। गाय के आगे मां बाप छोटे है किन्तु गाय का दर्जा बढ़ा है। इनके माथे पर सिन्दूर लगाने के बाद इन्हें वापस इनके स्थान पर ले जाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से साल भर गाएं कुशलपूर्वक रहती हैं। शाम के समय जहां गाय रखी जाती हैं, वहां गाय को नई रस्सी से बांधा जाता है और नाना तरह के औषधि वाले पेड़-पौधे जला कर मच्छर-मक्खी भगाए जाते हैं। इस दिन लोग दिन में चावल नहीं खाते, केवल दही चिवड़ा ही खाते हैं। पहले बैसाख में आदमी का बिहू शुरू होता है। उस दिन भी सभी लोग कच्ची हल्दी से नहाकर नए कपड़े पहन कर पूजा-पाठ करके दही चिवड़ा एवं नाना तरह के पेठा-लडडू इत्यादि खाते हैं। इसी दिन से असमिया लोगों का नया साल आरंभ माना जाता है। इसी दौरान सात दिन के अंदर 101 तरह के हरी पत्तियों वाला साग खाने की भी रीति है।मानुहोर बिहू
गोरु बिहू के दूसरे दिन यानि 14 अप्रैल का दिन असम में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इस दिन के महाभोज को बिहू कबोलोई कहते हैं।इस दिन नये वस्त्रों के साथ गमछा भी पहना जाता है। यह विशेष प्रकार का गमछा एक सुन्दर तौलिए के रूप में होता है। जिसमें अनेक आकृतियाँ बनी होती हैं। इस गमछे को सिर या कमर पर बाँधा जाता है। स्त्रियाँ मेखली चादर व मूंगा रेशम के आकर्षक वस्त्र धारण करती हैं। ये परिधान असम के विशेष परिधान हैं। बिहू मनाने को अनेक दल गीत गाते और संगीत की धुन पर नृत्य करते हुए टोलियों में निकलते हैं। गाय जाने वाले भक्तिगीतों को हुसरी विधि के द्वारा गाया जाता है। इस विधि में श्रीकृष्णकी प्रशंसा व उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है। सड़क व अन्य मार्गों से होते हुए ये दल एक खुले स्थान में एकत्रित होते हैं। इस स्थान को 'बिहू टोली' कहा जाता है। नृत्य व सौंदर्य प्रतियोगिताएँ सभी के मन को प्रसन्न करती हैं। विजेताओं के नाम समाचार-पत्रों में एक सप्ताह तक छपते हैं। यह दिन साफ स्वच्छ नए कपड़े पहनने का दिन होता है। । इस दिन बुजुर्गों को सम्मान दिया जाता है। है वा उनसे आशीर्वाद लेते हैं। लोग खुशी के साथ नए साल को बधाई देने के लिए रिश्तेदारों और दोस्तों के घर जाते हैं। बिहूवान (गामोसा) के उपहारों के साथ, जो कपड़ों का पारंपरिक असमिया टुकड़ा है, को सम्मान के प्रतीक के रुप मों उपहार में दिया जाता है। बच्चों को भी नए कपड़े दिए जाते हैं।गंबोरी बिहू
रोंगाली बिहू के तीसरा दिन स्त्रियों के लिए एक विशेष स्थान रखता है। पुरुषों को इस दिन सम्मिलित नहीं किया जाता है। स्त्रियाँ रात भर बरगद के वृक्ष के नीचे लयबद्ध तालियाँ बजाकर गीत गाती हैं। बरगद का वृक्ष धार्मिक रूप से अत्यन्त ही शुभ माना जाता है। यह विशाल वृक्ष धूप व वर्षा में सभी प्राणियों की रक्षा करता है। रोंगाली बिहू का तीसरा दिन गोसाई (भगवान) बिहू है। इस दिन, एक समृद्ध वर्ष की मांग करने के लिए भगवान की मूर्तियों की पूजा की जाती है।बिहू का महत्व
असम में मनाए जाने वाले रोंगाली बिहू का बहुत महत्व है। यह त्योहार धार्मिक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है यह त्योहार भारतीय जन–जीवन और किसान के पशु-प्रेम विशेषकर गौवंश के प्रति प्रेम को प्रकट करता है। पशु ही किसान के साथ में कड़ी मेहनत करते हैं। ताकि हम सबको भोजन उपलब्ध हो सके। इसलिए यह त्योहार पशु की महत्वता बताता है। घरों में लोग विशेष प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं। सादे चावल के स्थान पर कुटे-भुने चावल के भिन्न-भिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। सभी उपस्थित लोगों व बच्चों को मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं। इस बिहू का दूसरा महत्व है कि उसी समय धरती पर बारिश की पहली बूंदें पड़ती हैं और पृथ्वी नए रूप से सजती है। जीव-जंतु एवं पक्षी भी नई जिंदगी शुरू करते हैं। नई फसल आने की हर तरह तैयारी होती है। इस बिहू के अवसर पर संक्रांति के दिन से बिहू नाच नाचते हैं। इसमें 20-25 की मंडली होती है जिसमें युवक एवं युवतियां साथ-साथ ढोल, पेपा, गगना, ताल, बांसुरी इत्यादि के साथ अपने पारंपरिक परिधान में एक साथ बिहू करते हैं। बिहू आज कल बहुत दिनों तक जगह-जगह पर मनाया जाता है। बिहू के दौरान ही युवक एवं युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी को चुनते हैं और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं इसलिए असम में बैसाख महीने में ज्यादातर विवाह संपन्न होते हैं। बिहू के समय में गांव में विभिन्न तरह के खेल-तमाशों का आयोजन किया जाता है। इसके साथ-साथ खेती में पहली बार के लिए हल भी जोता जाता है। बिहू नाच के लिए जो ढोल व्यवहार किया जाता है उसका भी एक महत्व है। कहा जाता है कि ढोल की आवाज से आकाश में बादल आ जाते हैं और बारिश शुरू हो जाती है जिसके कारण खेती अच्छी होती है।बिहू के अन्य प्रकार
काति बिहू/कंगाली बिहू - धान असम की प्रधान फसल है इसलिए धान लगाने के बाद जब धान की फसल में अन्न लगना शुरू होता है उस समय नए तरह के कीड़े धान की फसल को नष्ट कर देते हैं। इससे बचाने के लिए कार्तिक महीने की संक्रांति के दिन में शुरू होता है काति बिहू। इस बिहू को काति इसलिए कहा गया है कि उस समय फसल हरी-भरी नहीं होती है इसलिए इस बिहू को काति बिहू मतलब कंगाली बिहू कहा जाता है। संक्रांति के दिन में आंगन में तुलसी का पौधे लगाया जाता है और इसमें प्रसाद चढ़ा कर दीया जलाया जाता है और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि खेती ठीक से रखें।भोगाली बिहू - माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस बिहू का नाम भोगाली इसलिए रखा गया है कि इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल, गन्ना इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है और उसी से तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई जाती है और खिलाई जाती है। उस समय कृषि कर्म से जुड़े हुए लोगों को भी आराम मिलता है और वे रिश्तेदारों के घर जाते हैं। संक्रांति के पहले दिन को उरूका बोला जाता है और उसी रात को गांव के लोग मिलकर खेती की जमीन पर खर के मेजी बनाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोज करते हैं। उसमें कलाई की दाल खाना जरूरी होता है
कैसे मनाते है रोंगाली बिहू उत्सव
रोंगाली बीहू त्योहार के दौरान लोग नृत्य और गायन के साथ ढोल, पपा (पाइप भैंस के सींग), ताका (बांस घंटे का लटकन विभाजित) और ताल (झांझ) और आगंतुकों के लिए चावल - बियर के साथ सेवा करते है इस दिन लोग नए कपड़े पहनते है और लजीज व्यंजन हर घर में व्रत के लिए तैयार करते है और जरूरतमंद को दान दिया जाता है मनुह बिहू (मानव बिहू) के दिन पर लोग एक दुसरे को नववर्ष शुभ कामनाए देते है बिहू गीत बिहू गाने हैं जो त्यौहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। गीतों के माध्यम से प्राकृतिक सौंदर्य की प्रशंसा की जाती है सामाजिक जागरूकता मुद्दों को उठाया जाता है। इस त्योहार में गीत भी असम की संस्कृति को दर्शते हैं।बिहू नृत्य
बोगल बिहू असम का लोक नृत्य है। यह समूहों में पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जाता है। जो बहुत सुंदर और आमंददायक होता है। इस नृत्य में अभिव्यक्तिपूर्ण हाथ और तेज कदम इसकी विशेषता है। हालांकि पुरुष और महिला दोनों अलग-अलग संरचनाओं में नृत्य करते हैं, फिर भी बिहू नृत्य में लय और समन्वय महत्वपूर्ण है। महिलाएं बिहू नृत्य में बहुत भिन्नता है। यहां बिज़ू नृत्य के विभिन्न रूप हैं जैसे कि माईसिंग बिहू नृत्य, देवरी बिहू नृत्य, असमिया संस्कृति के विभिन्न उप वर्ग के संबंध में दूसरों के बीच नृत्य करते हैं। हुसोरी, हुसोरी बिहू का एक और महत्वपूर्ण पहलू है। यहां गांव के बुजुर्ग घर से घरेलू गायन बिहू गीत गाते हुए प्रदर्शन में जाते हैं। हुसोरी समूहों का परंपरागत रूप से आंगन में स्वागत किया जाता है और प्रदर्शन के बाद वे घर को आशीर्वाद देते हैं। मुकोली बिहू, इस बिहू के रूप में पारंपरिक स्वर्ण रेशम मुगा में पहने युवक-युवती बिहू नृत्य करते हे। जेंग बिहू, केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है और देखा जाता है। बिहूतोली बिहू, बिहू का शहरी रूप है जहां इस ग्रामीण त्योहार ने आधुनिक शहरी जीवन का रुप धारण कर लिया है। यह पहली बार गुवाहाटी में लतासिल क्षेत्र में गुवाहाटी बिहू सनमिलानी द्वारा शुरू किया गया था। इसे राधा गोविंदा बरुआ, खगेन महंता जैसे व्यक्तित्वों द्वारा दूसरों के बीच प्रचारित किया गया था। यहां नर्तकियां एक अस्थायी उन्नत चरण में प्रदर्शन करती हंच जिसे लोकप्रिय रूप से बिहूतोली के नाम से जाना जाता है। बिहूटोली में प्रदर्शन बिहू नृत्य तक ही सीमित नहीं है। प्रदर्शन में नाटकीय शो की एक श्रृंखला शामिल है; अन्य नृत्य रूप प्रदर्शन, एकल गायक संगीत कार्यक्रम और हास्य नाटक भी शामिल किए जाते हैं। मंच बिहू नृत्य इतना लोकप्रिय हो गया है कि विभिन्न बिहू आयोजकों ने इसे उत्सव बना दिया है। बिहू प्रदर्शन, बिहू भूख और नृत्य के दौरान विभिन्न प्रकार के यंत्र हैं जिनका उपयोग किया जाता है। उनमें से कुछ हैं: ढोल असमिया संस्कृति का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह एक ड्रम के समान एक प्रकरण है। ढोल लकड़ी की बैरल से बना होता है। यह प्रत्येक तरफ एक छड़ी और हथेली के साथ खेला जाता है। ढोल की धड़कन असमिया संस्कृति का जीवन है।बोहाग बिहू के पकवान
बोहाग बिहू या रोंगाली के महत्व को फसलों की कटाई से जोड़कर देखा जाता है। इसके साथ ही वसंत की शुरुआत होती है। इस दिन लोग तरह-तरह के पकवान बनाते हैं, गाना गाते हैं और नृत्य करते हैं। इस त्योहार में असम के लोग पारंपरिक पोषाक पहनकर बिहू डांस करते हैं। यह एक दिन का नहीं, बल्कि सात दिनों का त्योहार है और इसके हर दिन का अलग ही महत्व है। त्योहार मनाने के लिए लोग सुबह जल्दी उठते हैं और स्नान कर लेते हैं। नहाने के लिए वह कच्ची हल्दी और उड़द दाल के पेस्ट का इस्तेमाल करते हैं। नहाकर नये कपड़े पहनते हैं और बड़ों का आर्शीवाद लेते हैं। एक दूसरे को तोहफा देते हैं। इसके बाद वो जलपान करते हैं। जलपान का वहां अर्थ होता है सुबह का नाश्ता। इसमें चावल के साथ दही और गुड़ दिया जाता है। इसके बाद जो लंच होता है वह थोड़ा भारी होता है। खाने में खार नाम का व्यंजन तैयार किया जाता है। जिसका स्वाद कड़वा होता है। यह कच्चे पपीते से तैयार किया जाता है। इसमें जले हुए केले के तने को मिलाया जाता है। साग, मछली, मटन आदि भी इस त्योहार में लोग जम कर खाते हैं और खिलाते हैं।क्या-क्या बनता है बिहू में…
आलू पितिका सबसे आरामदायक व्यंजन में से एक है। बिहार में इसे चोखा कहते हैं। उबले आलू को मसलकर, उसमें प्याज, हरी मिर्च, हरी धनिया पत्तियां, नमक और सरसों तेल डाला जाता है। आमतौर पर इसे चावल दाल और नींबू के साथ सर्व किया जाता है। खार असम के लोगों के लिए खास बहुत ही महत्वपूर्ण व्यंजन है। इसमें अल्केलाइन या कहें कि क्षारीय तत्व डाला जाता है और पपीते के साथ-साथ जले हुए केले के तने का इस्तेमाल भी किया जाता है। इससे पेट की सफाई हो जाती है। मांगशो मटन करी व्यंजन होता है। असम में यह व्यंजन भी बहुत प्रचलित है। असम में इसे लूची यानी कि पुलाव के साथ खाते हैं। जाक या साग में सारी हरी और पत्तेदार सब्जियां होती हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां खाने से सेहत ठीक होती है और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।असम में लोग मछली खूब खाते हैं। इसमें सबसे ज्यादा मशहूर, प्रचलित और पसंदीदा व्यंजन है, वह है मसोर टेंगा। यह थोड़ा खट्टा होता है। इसमें नींबू, कोकम, टमाटर, हर्ब्स, कोकम आदि डाला जाता है। इसे चावल के साथ खाते हैं।
To read about this festival in English Click here