मौसम तथा ऋतुओं के बदलने से मनुष्य का मन भी बदलता है। भारत में इसी कारण अलग-अलग ऋतु में भिन्न प्रकार के त्योहार मनाने की परम्परा है। अलग-अलग क्षेत्रों में प्रकृति के कारण त्योहारों के स्वरूप में भी भिन्नता पायी जाती है। असम में मनाया जाने वाला ऐसा ही एक अनूठा त्योहार है बिहू।
बिहू त्योहार मनाने का कारण
बिहू मनाने के कारण का ठीक-ठीक पता चलना कठिन है, किन्तु फसली त्योहार होने के कारण बिहू को वर्ष भर की तीनों फसलों से जुड़ा माना जाता है| इस दिन लोग नदी के किनारे अथवा खुली जगह में धान की पुआल से अस्थाई छावनी बनाते हैं जिसे भेलाघर कहते हैं। दरअसल बिहू शब्द को बिषुव अर्थात् बिच्छू (स्कॉर्पैयन) शब्द से भी जुड़ा हुआ माना जाता है। यह पर्व मकर संक्रांति से आरम्भ होता है,जब सूर्य पृथ्वी की मकर रेखा के सामने होता है।बिहू मनाने का कारण चाहे जो भी हो, इतना तो सत्य है कि तीन अलग-अलग बिहू तथा भिन्न प्रकार की आर्थिक अवस्थाओं के अनुसार ही असम में तीन प्रकार से बिहू मनाया जाता है।1.बैसाख बिहू- असमिया कैलेंडर बैसाख महीने से शुरू होता है जो अंग्रेजी माह के अप्रैल महीने के मध्य में शुरू होता है और यह बिहू सात दिन तक अलग-अलग रीति-रीवाज के साथ मनाया जाता है। बैसाख महीने का संक्रांति से बोहाग बिहू शुरू होता है।
2.काति बिहू/कंगाली बिहू- इस बिहू को काति इसलिए कहा गया है कि उस समय फसल हरी-भरी नहीं होती है इसलिए इस बिहू को काति बिहू मतलब कंगाली बिहू कहा जाता है। संक्रांति के दिन में आंगन में तुलसी का पौधे लगाया जाता है और इसमें प्रसाद चढ़ा कर दीया जलाया जाता है और भगवान से प्रार्थना की जाती है कि खेती ठीक से रखें|
3.भोगाली बिहू- माघ महीने की संक्रांति के पहले दिन से माघ बिहू अर्थात भोगाली बिहू मनाया जाता है। इस बिहू का नाम भोगाली इसलिए रखा गया है कि इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है, क्योंकि तिल, चावल, नारियल, गन्ना इत्यादि फसल उस समय भरपूर होती है और उसी से तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई जाती है और खिलाई जाती है| उस समय कृषि कर्म से जुड़े हुए लोगों को भी आराम मिलता है और वे रिश्तेदारों के घर जाते हैं। संक्रांति के पहले दिन को उरूका बोला जाता है और उसी रात को गांव के लोग मिलकर खेती की जमीन पर खर के मेजी बनाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के साथ भोज करते हैं। उसमें कलाई की दाल खाना जरूरी होता है| उसी रात आग जलाकर लोग रात भर जागते रहते हैं और सुबह सूर्य उगने से पहले नदी, तालाब या किसी कुंड में स्नान करते हैं। स्नान के बाद खर से बने हुए मेजी को जला कर ताप लेने का रिवाज है। उसके बाद नाना तरह के पेठा, दही, चिवड़ा खाकर दिन बिताते हैं। उसी दिन पूरे भारत में संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल इत्यादि त्योहार मनाया जाता है|
To read about this festival in English click here