राजस्थान एक ऐसा राज्य है,जहाँ कई तरह के रीति-रिवाज और परंपरायें साँस लेती है, फिर वह चाहे पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी हो या प्रकृति से संबंधित हो, हर जगह एक रंगीन सा महोत्सव या मेला मिल ही जाता है | ऐसा ही एक मेला राजस्थान में बड़ी धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है "बीकानेर ऊँट मेला"| इस मेले में ऊँट ही आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है | इस मेले में ऊँटों के बीच दौड़ कराई जाती है, जिसे देखने के लिए भारत के साथ-साथ अन्य देशों से आए विदेशी सैलानी भी खूब उत्साहित रहते है | वैसे बीकानेर ऊँट महोत्सव दो दिनों के लिए आयोजित किया है |
बीकानेर ऊँट मेले का इतिहास
इस उत्सव की शान सजीले ऊंट होते हैं तो राजस्थान की संस्कृति इसकी आन है | इस उत्सव के दौरान अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनको देखने देश-विदेश से सैलानी उमड़ते हैं | इस मेले की शुरुआत से जुड़ी एक बात बड़ी दिलचस्प है | कहा जाता है कि ऊंटों का बीकानेर से बहुत पुराना रिश्ता है | कहते हैं बीकानेर शहर की खोज करने वाले राव बीका जी ने बीकानेर में ऊंटों की प्रजाति का पालन पोषण करना शुरू किया था, जो रोज़ के यातायात के काम तो आते ही थे साथ ही इनसे मिलने वाले दूध आदि का उपयोग भी घरेलू उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है | इन घरेलू उपयोग के अलावा यहां के ऊंटों को बाकायदा सेना के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है| इस तरह के ऊंटों को गंगा रिसला कहा जाता है और आज भी भारतीय थल सेना में एक ऐसी टुकड़ी है जो ऊंट के साथ बॉर्डर की सुरक्षा का काम करती है | राज्य सरकार ने ऊंट को राज्य पशु का दर्जा देकर इसकी गरिमा व उपयोगिता को अधिक बढ़ा दिया है|
बीकानेर ऊँट मेले में होने वाले कार्यक्रम
इस मेले मे कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते है | उत्सव के पहले दिन पर्यटकों के लिए निशुल्क कैमल सफारी और कैमल राइड, सेना द्वारा बैगपाइपर बैंड वादन, ऊंट श्रृंगार प्रतियोगिता, ऊंट के बाल काटने की प्रतियोगिता, आर.ए.सी द्वारा बैंड वादन, ऊंट नृत्य, मिस मरवण, मिस्टर बीकाणा की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है, वहीं दूसरे दिन महिला और पुरूषों के लिए खो-खो प्रतियोगिता, पुरूष एवं महिला रस्साकशी, ग्रामीण कुश्ती, कबड्डी, साफा बांधो प्रतियोगिता, ऊंट नृत्य, महिला मटका दौड़ और महिला म्यूजिकल चेयर प्रतियोगिता का आयोजन होता है| कार्यक्रम के दौरान अग्नि नृत्य भी प्रस्तुत किया जाता है | इस महोत्सव में आयोजित होने वाली ऊँटों की दौड़ मेले का मुख्य आकर्षण होती है| पर ऊँटों के अलावा यहाँ एक आकर्षण और होता है जिसे "रौबीले" कहा जाता है | यह वो लोग होते है जो सजे-धजे ऊँटों पर बैठकर ऊँट दौड़ में ऊँटों को हांकते है| यहा कई विदेशी सैलानी राजस्थानी पोशाक पहनकर यहाँ के लोकगीतों पर नृत्य करते है| राजस्थान के पारम्परिक और कालबेलिया नृत्य करते दल को देखकर देशी-विदेशी पर्यटक झूम उठते है | सुदूर गांवों में रहने वाले लोग अपने-अपने ऊंटों को लेकर इस महोत्सव में आते हैं। इस परंम्परा को सदियों से निभाया जा रहा है |
बीकानेर ऊँट मेले में कैसे पहुचें ?
अगर आप हवाई यात्रा कर रहे हैं, तो बीकानेर का सबसे पास का एयरपोर्ट है जोधपुर| दोनों जगहों के बीच दूरी 235 किलोमीटर की दूरी पर है | यहां से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फ्लाइट से यह शहर पूरी दुनिया से जुड़ा हुआ है| एयरपोर्ट पहुंचने के बाद आप आराम से सड़क परिवहन के जरिए बीकानेर पहुंच सकते हैं| रेल मार्ग के जरिए भी बीकानेर पहुंचा जा सकता है | बीकानेर के लिए दिल्ली, कोलकाता, मु्ंबई, जोधुपर और देश के अन्य शहरों से ट्रेन उपलब्ध हैं| अगर आप बाई रोड जाने का विचार कर रहे हैं,तो राजस्थान के हर शहर से बीकानेर के लिए परिवहन की सुविधाएं हैं. दिल्ली और देश के सभी बड़े शहरों से भी बीकानेर के लिए सड़क परिवहन जुड़ा हुआ है |
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