नौं दिन चलता है उत्सव
श्री वेंकटेश्वर मंदिर में ब्रह्महोत्सव के 9 दिनों तक चलने वाले उत्सव में प्रत्येक दिन अलग-अलग कार्य किए जाते हैं। भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति अलग-अलग दिनों में विभिन्न वाहनों पर जुलूस के लिए बाहर निकाली जाती है। भगवान बालाजी की काली मूर्ति सोने के गहने और कीमती पत्थरों से सजाई जाती है ताकि जुलूस अधिक आकर्षित लग सके। ब्रह्मोत्सव के इस त्यौहार का साक्षी बनने एवं इसमें शामिल होने के लिए देश के सभी हिस्सों के साथ-साथ विदेशी पर्यटक एवं तीर्थयात्री सम्मिलित होते हैं। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) नामक मंदिर ट्रस्ट ब्राह्मोत्सव के सुचारू संचालन के लिए व्यवस्था करता है। टीटीडी आध्यात्मिक व्याख्यान और संगीत संगीत कार्यक्रम सहित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी प्रायोजित करता है। त्यौहार के सभी दिनों में भक्तों को निशुल्क भोजन और खाद्य पादार्य वितरित किए जाते हैं। इस नौ दिवसिय उत्सव को नौ टेलिविजन एपिसोड के रुप में विभिन्न टेलीविजन चैनलों के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। इन नौं दिनों में भक्तो को भगवान वेंकटेश्वर के विभिन्न रुप देखने को मिलते हैं। ब्रह्मोत्सव के नौ दिनों तक होने वाले कार्यों की सूची इ प्रकार हैःपहले दिन ध्वाजारोहण
ब्रह्महोत्सव के पहले दिन ध्वाजरोहण का कार्यक्रम किया जाता है। उत्सव में के के पहले दिन, झंडे को श्रीवाड़ी अलाया धज्जस्थंभम के पास फहराया जाता है। ध्वज में काला रंग गरुड़ का प्रतीक है। जो भगवान विष्णु यानि वेंकटेश्वर का वाहन है। आज इस दिन पेद्दा सेशवहन पर भगवान वेंकटेश्वर का एक अद्भुत जुलूस मुख्य मंदिर की चार सड़कों के चारों ओर रात में दस बजे निकाला जाता है। इस जुलूस का कार्यक्रम मध्यरात्रि तक चलता रहता है। त्यौहार के पहले दो दिनों के दौरान भगवान को शेषवहन नामक वाहन पर ले जाया जाता है।दूसरे दिन चिन्ना सेशवाहन
ब्रह्महोत्सव के दूसरे दिन की सुबह, भगवान वेंकटेश्वक को चिन्ना सेशवहन पर बाहरल जुलूस के लिए निकाला जाता है जबकि रात में देवताओं को उजाल सेवा के लिए उयाला मंडप में ले जाया जाता है। इसके बाद हम्सवहन पर जुलूस निकाला जाता है। कहा जाता है कि हम्सा या हंस शुद्धता का प्रतीक है, अच्छे और बुरे के बीच अंतर करने की क्षमता का प्रतिक है। हंस को सबसे शुद्ध माना जाता है। यह बुराई पर अच्छाई को व्यक्त करता है। इस स्वरुप शांत एवं शीतल होता है।तीसरे दिन सिम्वाहन
ब्रह्महोत्सव के तीसरे दिन को सिम्वहाना कहा जाता है जो ताकत और शक्ति का प्रतीक है। सिम्हा का अर्थ शेर होता है। गीता के अनुसार सभी जानवरों का भगवान सिंह ही होता है वह उनका राजा होता है। तीसरे दिन, भगवान वेंकटेश्वर को सिम्हा पर ले जाया जाता है। रात में, देवताओं को मुतालपंदिरी वाहन पर जुलूस के लिए निकाला जाता है। यह वाहन शुद्ध मोतियों से ढका होता है जो शुद्धता और भव्यता का प्रतीक होता है।चौथे दिन कल्पवृक्ष वाहन
ब्रह्महोत्सव के चौथे दिन, देवताओं को सुबह कल्पवृक्ष के वाहन पर जूलूस के लिए बाहर निकाला जाता हैं। कल्पवृक्ष एक पेड़ है जो वरदान देता है। जिससे भक्त जो मांगते हैं उनकी हर इच्छाओं की पूर्ति होती है। कल्पवृक्ष से मांगा हुआ कभी व्यर्थ नहीं जाता। जो मनोकामनाएं कल्पवृक्ष के समक्ष मांगी जाती है वह अवश्य पूरी होती हैं। रात के समय में अनजल सेवा के बाद, देवताओं को सर्वभोपाल वाहन पर ले जाया जाता है।पांचवे दिन गरुड़ वाहन
ब्रह्मोत्सव का पांचवां दिन बहुत अनोखा दिन होता है। यह दिन भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार लेने का दिन होता है। उनके मोहिनी अवतार लेने के अवसर के प्रतिक के रुप में यह पांचवा दिन मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब असुरों और देवताओं में अमृत पीने की होड़ मच गई थी तब भगवान ने सुंदर स्त्री के रुप में मोहिनी अवतार लिया और असुरों को अपनी सुंदरता से भ्रमित कर देवताओं में अमृत का वितरण कर दिया था। इसलिए इस दिन को मोहिनी अवतार के रुप में मानकर पूजा जाता है। रात में अनजल सेवा के बाद भगवान वेंतटेश्वर को गरुड़ के वाहन पर जुलूस के लिए बाहर निकाला जाता है। उनके वाहन गरुड़ को महाकांति, सहस्रनारावाला से सजाया जाता है। प्राचीन हिंदू ग्रंथों के मुताबिक, गरुड़ पक्षियों का राजा है, वेदों की प्रतिकृति है जबकि भगवान विष्णु वेदों के देवता है। इस प्रकार, भगवान खुद को गरुड़ के रूप में देखते है। गरुड़ वाहन सभी वहाणों में से सबसे महत्वपूर्ण और महानतम है। कई तीर्थयात्री इस दिन तिरुपति जाते हैं। भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ को सबसे श्रेष्ठ मानकर पूजा जाता है।छठे दिन गज वाहन
ब्रह्मोत्सव के छठे दिन की सुबह देवताओं को हनुमद वाहन पर ले जाया जाता है। इस दिन भगवान हनुमान अतिथि होते हैं। उन्हें इस दिन का मेहमान माना जाता है। तीर्थयात्रियों का मानना है कि अगर वे इस दिन हनुमद वहान पर भगवान के झलक भी देख लेगें तो वह धन्य हो जाएगें इस दिन, अंजल सेवा की जगह वसोंत्सव का त्योहार मनाया जाता है। रात के समय में भगवान गज वाहन पर बैठते है जो धन का प्रतीक है। इसे महाभागवतम की कहानी का प्रतिक माना जाता है। जिसके अनुसार पानी में फंसने पर हाथी को मगरमच्छ से भगवान विष्णु ने बचाया था। हाथी ने जब भगवान से प्रार्थना की तो उन्होंने मगरमच्छ से उसकी रक्षा की। इसलिए इस दिन गज को भगवान के वाहन के रुप में पूजा जाता है।सातवें दिन सूर्यप्रभा वाहन
ब्रह्मोत्सव के सातवें दिन, भगवान सूर्यप्रभा वाहन यानि सूर्य रथ पर चढ़ते हैं। सूर्य भगवान विष्णु का दूसरा रूप है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ब्रह्मांड का केंद्र है और सूर्य भगवान विष्णु का प्रतीक है। इसलिए इस दिन भगवान सूर्यप्रभा वाहन का प्रयोग करते हैं। रात्रि में अनजल के बाद भगवान को चंद्रप्रभा वाहन पर निकाला जाता है। चन्द्रप्रभा चंद्रमा का प्रतिक है। भक्तों का मानना है कि जब भगवान चंद्रप्रवाह यात्रा पर यात्रा करते हैं तो यह भगवान को एक सुखद अनुभव देता है। भक्त इस दृश्य को देखकर धन्य हो जाते हैं।आठवां दिन रथोत्सव
ब्रह्मोत्सव के आठवें दिन भगवान वेंकटेश्वर को रथ पर यात्रा कराई जाती है है। भक्तों का मानना है कि जो लोग इस दिन के साक्षी बनते हैं वे पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं करते। उन्हें सीधा मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है वह संसार के बंधनो से छूटकर आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता हैं। भगवान दारुका की मूर्तियां जो भगवान, भगवान कृष्ण का प्रतिक होती हैं उन्हें चारपति और चार घोड़ों के सामने रखा गया है। भक्त गोविंदा का जाप करते हुए रथ खींचते हैं! गोविंदा! ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक होता है। भगवान कृष्ण के इस रुप की महिमा देखते ही बनती है। भगावन वेंकेटेश्वर को इस दिन भगावन कृष्ण के रुप में रात में अनजल सेवा के बाद घोड़ों के वाहन पर जुलूस के लिए निकाला जाता है।नौंवे दिन चक्रासन महोत्सवम
ब्रह्मोत्सव के नौंवे यानि अंतिम दिन सुबह में पालकी सेवा और चक्रासन महोत्सवम का आयोजन किया जाता है। शाम को धम्मजवराहनम का आयोजन किया जाता है। ब्रह्मोत्सव के अंतिम दिन भगवान वेंकटेश्वर की मूर्तियों पर अभिषेक किया जाता है। उनकी मूर्तियों पर तेल और हल्दी पाउडर लगाकर लेप एवं अभिषेक किया जाता है। पहले दिन फहराया गया गरुड़ झंडा अंतिम दिन तक कम हो जाता है। यह इस समारोह के समापन को इंगित करता है।To read this Article in English Click here