बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
वैदिक ज्योतिष के अनुसार यूं तो पूर्णिमा की हर तिथि पर विशेष महत्व होता है किंतु ‘बुद्ध जयंती’ तथा ‘बुद्ध का निर्वाण प्राप्ति दिवस’ होने के कारण ‘वैशाख पूर्णिमा’ का अत्यधिक महत्व माना गया है। हिंदुओं में हर महीने की पूर्णिमा विष्णु भगवान को समर्पित होती है। इस दिन तीर्थ स्थलों में गंगा स्नान को लाभदायक और पाप नाशक माना जाता है। लेकिन वैशाख पूर्णिमा का अपना-अलग ही महत्व है। इसका कारण यह बताया जाता है कि इस माह होने वाली पूर्णिमा को सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होती है। यही वजह है कि जीवन में स्थायी सुख-शांति प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत तथा विशेष नियमों का पालन किए जाने का विधान बताया है। भगवान बुद्ध ने अपना संपूर्ण जीवन मानव जाति की सेवा में समर्पित कर दिया था। उन्होंने समाज में व्याप्त बुराईयों को रोका था। मूर्ति पूजा, बलि, झूठे आंडबरों का विरोध किया था। भगवान बुद्ध का मानना था कि ज्ञान एवं ईश्वर हमारे भीतर ही हैं। हमें बस उन्हें पहचानने की आवश्यकता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक इस दिन सच्चे मन से व्रत करता है, उसके जीवन से हर प्रकार गरीबी तथा दुखों का अंत होता है। वह धर्म की राह पर चलता है तथा शांतिपूर्ण एवं समृद्ध जीवन जीता है। असमय आने वाली परेशानियां जहां दूर होती हैं वहीं वह असमय या अकाल मृत्यु से भी वह बचा रहता है। अकाल मृत्यु को मोक्ष की प्राप्ति में बाधा माना गया है। इस दिन व्रत रखकर किसी जरूरतमंद को जल से भरा घड़ा तथा भोजन का दान करना मोक्षदायी तथा संपन्नता प्राप्त कराने वाला माना गया है। वैशाख पूर्णिमा पर स्वर्ण दान करना भी अति फलदायी माना गया है। बुद्ध अनुयायियों के बीच इस दिन सफेद वस्त्र धारण करने की भी विशेष मान्यता है। माना जाता है कि वैशाख की पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु ने अपने नौवें अवतार के रूप में जन्म लिया। इसी दिन को सत्य विनायक पूर्णिमा के तौर पर भी मनाया जाता है, मान्यता है कि आज के दिन भगवान कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा गरीबी के दिनों में उनसे मिलने पहुंचे थे। इसी दौरान जब दोनों दोस्त साथ बैठे तब कृष्ण ने सुदामा को सत्यविनायक व्रत का विधान बताया था। सुदामा ने इस व्रत को विधिवत किया और उनकी गरीबी नष्ट हो गई। इस दिन धर्मराज की पूजा करने की भी मान्यता है। कहते हैं कि सत्यविनायक व्रत से धर्मराज खुश होते हैं। माना जाता है कि धर्मराज मृत्यु के देवता हैं इसलिए उनके प्रसन्न् होने से अकाल मौत का डर कम हो जाता है।महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय
गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। बुद्ध को एशिया का ज्योति पुंज कहा जाता है। गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी नामक गांव नेपाल में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे। बुद्ध के जन्म का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां मायादेवी का देहांत हो गया था। सिद्धार्थ की सौतेली मां और मौसी प्रजापति गौतमी ने उनका पालन-पोषण किया था। सिद्धार्थ का 16 साल की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। इनके पुत्र का नाम राहुल था। एक बार सिद्धार्थ अपने घर से टहलने के क्रम में दूर निकल गए। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने एक अत्यंत बीमार व्यक्ति को देखा, कुछ पल और चलने के बाद एक वृद्ध व्यक्ति को देखा, यात्रा के समापन में एक मृत व्यक्ति को देखा। और फिर एक योगी को अपने ही मस्त होता देखा। इन सबसे सिद्धार्थ के मन में एक प्रश्न उभर आई की क्या मैं भी बीमार पडूंगा। क्या मैं भी वृद्ध हो जाऊंगा, क्या मैं भी मर जाऊंगा क्योंकि सिद्धार्थ के पिता उन्हें हर दुख-हर तकलीफ से दूर रखते थे इसलिए उन्होंने अब तक इसे समझा ही नहीं था। सिद्धार्थ इन सब प्रश्नो से बहुत परेशान हो गए। तत्पश्चात सिद्धार्थ इन सबसे मुक्ति पाने की खोज में निकल गए। उस समय उनकी मुलाकात एक सन्यासी से हुई जिसने भगवान बुद्ध को मुक्ति मार्ग के विषय में विस्तार पूर्वक बताया। तब से भगवान बुद्ध ने सन्यास ग्रहण करने की ठान ली। भगवान बुद्ध ने 29 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया तथा सन्यास ग्रहण कर लिया। जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है सन्यासी बनने के पश्चात भगवान बुद्ध ने एक पीपल वृक्ष के निचे 6 वर्ष तक कठिन तपस्या की। तत्पश्चात उन्हें सत्य का ज्ञान प्राप्त हुआ। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवन बुद्ध को पीपल वृक्ष के नीचे सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। जिसे सम्बोधि कहा जाता है तथा उस पीपल वृक्ष को बोधि वृक्ष कहा जाता है। जहाँ पर भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ वह स्थान बोधगया कहलाया। महात्मा बुध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में अपने पांच शिष्यों उ कौण्डिन्य, वप्पा, भादिया, महानामा और अस्सागी को दिया था । बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है। बुद्ध ने अपने उपदेश कौशल, कौशांबी और वैशाली राज्य में पालि भाषा में दिए।बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए। बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में कुशीनारा में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गई। जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है।बुद्ध जयंती समारोह
भारत में बुद्ध पुर्णिमा अर्थात बुद्ध जयंती समारहो काफी हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। श्रीलंका में इसे वैसाख के नाम से मनाया जाता है। वैसाख उस दिन होता है जब चांद पूरा निकलता है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा सबसे बड़ा त्योहार का दिन होता है। इस दिन अनेक प्रकार के समारोह आयोजित किए गए हैं। अलग-अलग देशों में वहाँ के रीति- रिवाजों और संस्कृति के अनुसार समारोह आयोजित होते हैं। इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है। मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है। बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएँ सजाई जाती हैं। जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन मांसाहार का परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे। इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है। गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन बोधगया में काफी लोग आते हैं। दुनिया भर से बौद्ध धर्म को मानने वाले यहां आते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के दिन बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। बोधिवृक्ष बिहार के गया जिले में बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर में है। वास्तव में यह एक पीपल का पेड़ है। मान्यता है कि इसी पेड़ के नीचे इसा पूर्व 531 में भगवान बुद्ध को बोध यानी ज्ञान प्राप्त हुआ था। बुद्ध पूर्णिमा के दिन बोधिवृक्ष की टहनियों को भी सजाया जाता है। इसकी जड़ों में दूध और इत्र ड़ाला जाता है और दीपक जलाए जाते हैं। भगवान बुद्ध से अच्छे जीवन और ज्ञान की प्रार्थानाएं करते हैं। बुद्ध पूर्णिमा को विश्व में कई जगह मनाया जाता है। यह त्यौहार भारत, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया तथा पाकिस्तान में मनाया जाता है। सिंगापुर और श्रीलंका में इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है।To read this Article in English Click here