भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है यहां जितने राज्य है उतने ही त्यौहार है। यहां के प्रत्येक राज्य में अलग-अलग त्यौहार और मेले लगते है। जिनके पीछे कोई ना कोई कहानी होती है। भारत का मस्तमौला राज्य पंजाब जितना अपने त्यौहारों को उत्साह एवं उमंग के साथ मनाने के लिए प्रसिद्ध है उतने ही यहां के मेले भी प्रसिद्ध है। पंजाब को गुरु की नगरी कहा जाता है। यहां कई सिख गुरुओं ने जन्म लेकर मनुष्यों को ज्ञान का पाठ पढ़ाया है। पंजाब के शहर लुधियाना का सबसे प्रसिद्ध छप्पार, मेला प्रतिवर्ष हर्षोल्लास के साथ आयोजित किया जाता है। लोग इस मेले में मुख्य रूप से गुगा के सांप अवतार की पूजा करते हैं। मेला ऐसा माना जाता है कि, छपार मेला लगभग 150 साल पहले शुरु किया गया था।  इस मेले में भक्त देश विदेश से बाबा के दर्शन करने भक्त आते हैं| मेले में कई तरह की मिठाईयां मिलती है। मेले में बच्चों के लिए विशेष तौर पर झूले लगाए जाते हैं जो मेले की रौनक को और भी बढ़ाते हैं| पंजाब का प्रसिद्ध मेला छपार हर साल भादो की चौदस को लगता है। मालवे की धरती पर लगने वाला यह मेला अहमदगढ़ के गांव छपार के दक्षिणी गुट में बडी धूम धाम श्रद्धा से मनाया जाता है। मेले में गूगा पीर की सात बार मिट्टी निकाल कर मन्नतें मांगी जाती हैं। यह मेला लगातार चार पांच दिन तक चलता है। जिस में दूर दराज के लोग भारी संख्या में आते हैं। मेले की तैयारी कई दिन पहले ही आरंभ हो जाती है। गूगा पीर माड़ी को रंग कर खूब सजाया जाता है। मेले के पहले दिन महिलाएं भारी संख्या में आती हैं। बाकी दिनों का मेला पुरुषों का माना जाता है। इस मौके पर राजसी पार्टियों भी भाग लेती हैं। इस मेले में पशुओं की मंडी भी खूब लगती है। यह मेला संगीत, नृत्य और उत्साह से भरा होता है। पिछले कुछ दशकों में मेला एक भव्य त्यौहार के रूप में बनकर उभरा है।
छपार मेला

छपार मेला की कथा

छपार मेले से सम्बंधित अनेक कथाएं प्रचलित है , कहा जाता है कि जब जाहरवीर बाबा का उनके दो चचेरे भाइयों, अर्जन और सर्जन, के साथ युद्ध हुआ तो जाहरवीर बाबा ने उन दोनों को मार गिराया। इस युद्ध में दिल्ली के बादशाह ने अर्जन सर्जन की मदद की पर जब वह दोनों युद्ध में मारे गए तो दिल्ली के बादशाह ने जाहरवीर बाबा से क्षमा मांग ली। जाहरवीर बाबा ने उन्हे माफ़ करते हुए कहा कि आने वाले समय में जब भी कोई भगत मेरे दर्शनों के लिए दिल्ली से आएगा तो उसकी पीठ पर पीले रंगका हाथ के पंजे का निशान लगाया जायेगा ताकि यह पता चले कि इन लोगों ने मेरे शत्रुओं की मदद की थी। जाहरवीर बाबा ने तो दिल्ली के बादशाह को माफ़ कर दिया पर जाहरवीर बाबा की माता ने जाहरवीर बाबा को माफ़ नहीं किया और उन्हें कहा कि आज के बाद मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना ,तुने अपने ही कुल का नाश कर दिया। यह सुनकर जाहरवीर बाबा ने नीले घोडे पर सवार होकर घर छोड़ दिया पर उनकी पत्नी माता श्री यलजाहरवीर बाबा से मिलने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने लग। रानी श्रीयल जालंधरनाथ जी की शिष्याथी। जाहरवीर बाबा जी उनसे मिलना तो चाहते थे परन्तु अपनी माँ के वचन को भंग भी नहीं करना चाहते थे इसलिए जाहरवीर बाबा पंजाब के गाँव छपार आकर " सिद्ध सुलक्खन " जी से मिले। सिद्ध सुलक्खन जी नाथ पंथी योगी थे और उनका सम्बन्ध जाहरवीर बाबाजी के खानदान से था। वह ऐसीविद्या जानते थे जिसके द्वारा व्यक्ति धरती के नीचे चल सकता, किसी भी वस्तु का रूप धारण कर सकता था और किसी भी व्यक्ति की शक्ल धारण कर सकता था। यह विद्या सिखने के लिए जाहरवीर बाबा पंजाब के गाँव छपार में रहे और जाते समय उन्होंने सिद्ध सुलक्खन जी से कहा जिस प्रकार मेरा मेला राजस्थान में लगेगा उसी प्रकार आपका मेला भी छपार में लगेगा। आज इस स्थान पर बड़ा भारीमेला लगता है और यदि किसी के घर सांप निकलते हो या किसी की कुंडली में काल सर्प योग हो या नाग दोष हो या स्वपन में नाग नज़र आते हो तो इस स्थान पर चांदी के सांप चढाने से यह सभी दोषनष्ट हो जाते है और नागो की कृपा प्राप्त होती है।
वहीं इसकी दूसरी कथा है कि एक बार इस नगर के मुस्लिम नवाब ने इस मेले पर रोकलगा दी तो एक साथ उसके अनेको घोडे मर गए। यह देखकर नवाब ने कहा कि यह मेला दोबारा शुरू करो और पहले से भी बड़ा मेला लगवाओ। पहले इस स्थान पर केवलसिद्ध सुलक्खन जी का स्थान था पर सन १८९० में कुछलोग राजस्थान के बागड़ प्रान्त से जाहरवीर बाबा के दरबारकी मिटटी और ईट का जोड़ा लेकर आये और जाहरवीर बाबा की समाधी का निर्माण करा दिया।

 छपार मेला उत्सव

छपार  मेले में पंजाब अपने असली रंग में नज़र आता है। यह मेला भादो शुक्ल चौदस को मनाया जाता है , इस रात लोग मंदिर में सारी रात जाहरवीर बाबा का गुणगान करते है और बाबा जी की चौंकी भरते है। यह मेला अहमदगढ़ के गाँव छपार के दक्षिणी गुट में बड़ी धूमधाम व श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। मेले में गूगा पीर की सात बार मिट्टी निकाल कर मन्नतें मांगी जाती है। यह मेला लगातार चार से पांच दिन तक चलता है। इसमें दूर दराज के सभी धर्मो के लोग भारी संख्या में आते है। मेंले में हर वर्ष लोगों के लिए हैप्पी बाबा छपार वाले व दुर्गा सेवा दल द्वारा लोगों के लिए लंगर लगाया जाता है। मेले की तैयारी कई दिन पहले ही आरंभ हो जाती है। गूगा पीर माड़ी को रंग कर खूब सजाया जाता है। मेले के पहले दिन औरतें भारी संख्या में आती है। बाकी दिनों का मेला पुरुषों का माना जाता है। मेले की जड़े दूर- दूर तक फैली हुई है। मेले में नाटक, सर्कस, ढोल ढोली व लड़कों का भांगड़ा देखने योग्य होता है। लोगों की भारी संख्या जमा करने के लिए पंजाबी गायकों का भी सहारा लिया जाता है। मेले मे भारी संख्या में सर्कर्स, झूले व खिलौने की दुकाने लगती है। मेले की मान्यता है कि  यदि किसी को साँप ने काट लिया हो या साँप का विष लगने से शरीर का कोई अंग गल गया हो तो इस स्थान पर माथा टेकने से ठीक हो जाता है और इतना ही नहीं यदि कोई साँप का काटा व्यक्ति इस गाँव की हद में आ जाए तो विष उसी समय उतर जाता है और दर्द बंद हो जाता है। इस स्थान पर बहुत से लोगों में नाहरसिंह वीर और साबल सिंह वीर की सवारी भी आती है। यह एक सिद्ध स्थान है और यहाँ पर प्रत्येक इच्छा पूर्ण होती है। जो फल राजस्थान में जाहरवीर बाबा और गुरु गोरखनाथ जी के दर्शनों का है, वही फल इस स्थान पर जाहरवीर बाबा के दर्शनों से प्राप्त होता है। यही कारण है कि इस मेले में भक्त दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं।

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