चौधरी चरण सिंह लोक दल के नेता और भारत के सातवें प्रधान मंत्री थे। जिन्होंने 24 जनवरी 1979 से 28 जुलाई 1979 तक प्रधानमंत्री के रुप में देश का नेतृत्व किया। शीर्ष भारतीय राजनीतिक नेता चौधरी चरण सिंह की समाधि देश की राजधानी दिल्ली स्थित किसान घाट के रुप में जानी जाती है क्योंकि चौधरी तरण सिंह को देश के प्रधानमंत्री से ज्यादा किसान नेता के रुप में जाना जाता है। चौधरी चरण सिंह भारत के गृहमंत्री भी रहे उनका कार्यकाल 24 मार्च 1977 – 1 जुलाई 1978 तक रहा। वहीं चरण सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। उपप्रधानमंत्री के रुप में उनका कार्यकाल 24 मार्च 1977 – 28 जुलाई 1979 तक रहा। चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 में हुआ था। स्वतंत्रता प्राप्ति में अहम भूमिका अदा करने के बाद 29 मई 1987 को उनका निधन हो गया। चौधरी चरण सिंह के द्वारा किए गए कार्यों को याद करते हुए और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रत्येक वर्ष 29 मई को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है। इस अवसर पर उनकी समाधी पर जाकर देश के बड़े नेता उन्हें नमन करते हैं।

चौधरी चरण सिंह पुण्यतिथि

चौधरी चरण सिंह का जीवन परिचय

चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के नूरपुर ग्राम में एक मध्यम वर्गीय कृषक परिवार में हुआ था। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह थे। चौधरी चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द के पास भूपगढी आकर बस गये थे। चौधरी चरण सिंह को यहीं से किसानों का मसीहा बनने की प्रेरणा प्राप्त हुई। चौधरी चरण सिंह को परिवार में शैक्षणिक वातावरण प्राप्त हुआ था। स्वयं इनका भी शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान रहा था। मैट्रिकुलेशन के लिए इन्हें मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय में भेज दिया गया। 1923 में 21 वर्ष की आयु में इन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली। दो वर्ष के पश्चात् 1925 में चौधरी चरण सिंह ने कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें पक्ष न्यायपूर्ण होता था। चौधरी चरण सिंह का व्यक्तित्व साफ छवी का था वो अपनी छवी पर एक दाग भी नहीं लगने देना चाहते थे। 1929 में चौधरी चरण सिंह का विवाह मेरठ में जाट परिवार की ही लड़की से हिंदू रीति-रिवाजों के साथ सम्पंन हुआ। स्वतंत्रता संग्राम उन दिनों चरम पर था ऐसे में चौधरी चरण सिंह कैसे पीछे हट सकते थे उन्होंने अपनी वकालत छोड़ कर स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होना जरुरी समझा। वो कांग्रेस से जुड़ गए जो उस समय सबसे बड़ी पार्टी थी। कांग्रेस में उन्हें प्रमुख कार्यकर्ता के रुप मे जाना जाता था। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया। चौधरी चरण सिंह 1987 में 84 वर्ष की आयु में 29 मई को निधन हो गए। सत्याग्रह आंदोलन के एक सक्रिय प्रचारक, उन्होंने पूरे जीवन में महात्मा गांधी की आज्ञा का पालन किया और कई बार जेल गए। हालांकि, कांग्रेस पार्टी के साथ उनका कार्यकाल तब तक बना रहा जब तक उन्होंने नेहरू द्वारा समाजवादी विशेषताओं के आधार पर भूमि सुधार से संबंधित निर्णयों के खिलाफ सक्रिय रूप से अपनी आवाज़ उठाना शुरू नहीं कर दिया था ।

चौधरी चरण सिंह का राजनैतिक जीवन

चौधरी चरण सिंह किसानों के नेता माने जाते रहे थे। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। जादी के प्रति चौधरी चरण सिंह दीवाने थे। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ था, जिससे प्रभावित होकर युवा चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो उन्होंने हिंडन नदी पर नमक बनाकर उनका साथ दिया। जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। जिसके बाद 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री बने। साल 1977 में वो केंद्र सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने। वह आजादी की लड़ाई और आपातकाल में जेल में रहे। इंदिरा गांधी ने एक महीने के भीतर ही चरण सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। यह राजनीति की हैरान करने वाली घटना थी। साथ ही दूसरी घटना यह हुई कि चरण सिंह ने संसद का सामना किए बिना प्रधानमंत्री पद से हट गए। बड़े नेताओं की राजनीतिक उच्चाकांक्षा के कारण जनता पार्टी में टूट के बाद 15 जुलाई, 1979 को मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस और सीपीआई के समर्थन से जनता (एस) के नेता चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री बने। राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने निर्देश दिया था कि चरण सिंह 20 अगस्त तक लोकसभा में अपना बहुमत साबित करें। पर इस बीच इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को ही यह घोषणा कर दी कि वह चरण सिंह सरकार को संसद में बहुमत साबित करने में साथ नहीं देगी। नतीजतन चरण सिंह ने लोकसभा का सामना किए बिना ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति ने 22 अगस्त, 1979 को लोकसभा भंग करने की घोषणा कर दी। लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ और इंदिरा गांधी 14 जनवरी, 1980 को प्रधानमंत्री बन गईं।

चौधरी चरण सिंह पुण्यतिथि कार्यक्रम

चौधरी चरण सिंह किसानों के नेता माने जाते रहे हैं। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई 1952 को यूपी में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला। उन्होंने लेखापाल के पद का सृजन भी किया। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। चरण सिंह को लोगों की जरूरतों का ख्याल रखने में सक्षम एक प्रभावी प्रधानमंत्री होने का श्रेय दिया जाता है। उनकी पुण्यतिथि पर उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी जाती है। चौधऱी चरण सिंह के सुधारों को याद किया जाता है। उनकी पुण्यतिथि पर किसान घाट में कई बड़े नेता एकत्र होकर उनकी समाधी पर नमन करते हैं। उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं। किसान आज भी अपने प्रथन नायक के रुप में चौधरी चरण सिंह को मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता इस दिन हवन-पूजा पाठ कर गरीबों में दान-पुण्य करते हैं। जगह-जगह मीठे पानी का शर्बत बांटा जाता है। कई संगोष्ठियाों, चर्चाओं का आयोजन किया जाता है।

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