चेटी चंद की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता है कि विक्रम संवत 1007 सन 951 ईस्वी में सिंध प्रांत के नरसपुर नगर में भगवान झूले लाल का जन्म रतन लाल लुहाना के घर माता देवकी के गर्भ से हुआ था। भगवान झूले लाल को लाल साईं, उडेरो लाल, वरुण देव और ज़िंदा पीर के नाम से भी जाना जाता है। सिंध प्रदेश के ठट्ठा नामक नगर में एक मिरखशाह नामक राजा राज करता था. वो बड़ा ही क्रूर और निर्दयी थावह हिन्दुओं पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालता था। एक बार उसने धर्म परिवर्तन के लिए सात दिन की मोहलत दी। तब कुछ लोग परेशान होकर सिंधु नदी के किनारे आ गए और भूखे-प्यासे रहकर वरूण देवता की उपासना करने लगे। तब प्रभु का हृदय पसीज गया और वे मछली पर दिव्य पुरुष के रूप में अवतरित हुए। भगवान ने सभी भक्तों से कहा कि तुम लोग निडर होकर जाओ मैं तुम्हारी सहायता के लिए नसरपुर में अपने भक्त रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा। बड़े होने पर जब राजा का अत्याचार नहीं घटा तो वरूण देव उसे दंडित किया। उन्होंने कहा कि ‘’ईश्वर एक है और हम सब को मिलकर शांति के साथ रहना चाहिए’’। वहीं यह भी कहा जाता है कि समुद्री मार्ग से व्यापार करने वालों का समान लूट लिया जाता थाय़ समुद्री तूफान, जीव-जंतु, चट्टामनें व समुद्री दस्यु गिरोह जो लूटपाट मचा कर व्यापारियों का सारा माल लूट लेते थे। इसलिए इनके यात्रा के लिए जाते समय ही महिलाएं वरुण देवता की स्तुति करती थीं व तरह-तरह की मन्नते मांगती थीं। चूंकि भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं अत: यह सिंधी लोग के आराध्य देव माने जाते हैं। जब पुरुष वर्ग सकुशल घर लौट आता था तब चेटीचंड को उत्सव के रूप में मनाया जाता था। मन्नतें मांगी जाती थी और भंडारा किया जाता था।कैसे मनाते है चेटी चंद उत्सव
- 1. चेटी चंड की शुरुआत सुबह टिकाणे (मंदिरों) के दर्शन और बुज़ुर्गों के आशीर्वाद से होती है।
- 2. चेटी चंड के दिन सिंधी समाज के लोग नदी और झील के किनारे पर बहिराणा साहिब की परंपरा को पूरा करते हैं। बहिराणा साहिब, इसमें आटे की लोई पर दीपक, मिश्री, सिंदूर, लौंग, इलायची, फल रखकर पूजा करते हैं और उसे नदी में प्रवाहित किया जाता है। इस परंपरा का उद्देश्य है, मन की इच्छा पूरी होने पर ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करना और जलीय जीवों के भोजन की व्यवस्था करना।
- 3. इस मौके पर भगवान झूले लाल की मूर्ति पूजा की जाती है। पूजन के दौरान सभी लोग एक स्वर में जय घोष करते हुए कहते हैं ‘’चेटी चंड जूं लख-लख वाधायूं’’ ।
- 4. चेटी चंड के मौके पर जल यानि वरुण देवता की भी पूजा की जाती है। क्योंकि भगवान झूले लाल को जल देवता के अवतार के तौर पर भी पूजा जाता है। इस दिन सिंधु नदी के तट पर ‘’चालीहो साहब’’ नामक पूजा-अर्चना की जाती है। सिंधी समुदाय के लोग जल देवता से प्रार्थना करते हैं कि वे बुरी शक्तियों से उनकी रक्षा करें।
- 5. चेटी चंड के मौके पर सिंधी समाज में नवजात शिशुओं का मंदिरों में मुंडन भी कराया जाता है।
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