भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड समेत नेपाल में दिवाली के बाद,  चार दिन का उत्सव मनाया जाता है जिसे छठ कहते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को होने कि वजह से इसका नाम छठ पूजा पड़ा है। ये एक बहुत कठित व्रत होता है जिसमें कि सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। इस व्रत को अधिकतर महिलाएं रखती हैं, लेकिन कुछ पुरुष भी ये पर्व मनाते हैं। पारिवारिक सुख शांति के लिये रखे जाने वाले इस व्रत को लगातार 36 घंटे रखा जाता है। ये इतना मुश्किल होता है कि पानी तक भी नहीं पिया जाता है।

छठ पूजा
 
इस व्रत को कोई महिला तब तक करती है जब तक कि उसके घर में अगली पीढ़ी कि कोई विवाहिता इसे रखना शुरू ना कर दे। इस पर्व में शुद्धता का बहुत अहम स्थान है, चाहे वो तन की हो, घर की हो या मन की। चारों दिन व्रत के साथ महिलाओं को पूजा भी करनी जरूरी होती है। व्रत रखने वाली महिलाओं को "परवैतिन"  कहा जाता है। यही नहीं व्रत करने वालों को बिस्तर पर सोने कि भी मनाही होती है और ज़मीन पर सोना होता है। साथ ही सिलाई वाले कपड़े नहीं डालने होते हैं। मतलब जींस, शर्ट छोड़ कर पुरुषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहननी होती है।

छठ पूजा और व्रत

Chhath Puja

पहला दिन

पहले दिन होती है “नहाय खाय”। इसमें खुद को और घर को साफ सुथरा कर के व्रत कि शुरूआत की जाती है। सबसे पहले कद्दू की सब्जी, दाल और चावल व्रत रखने वाले को खिलाए जाते हैं, फिर अन्य लोग खाते हैं। यहीं से व्रत की शुरूआत हो जाती है।

दूसरा दिन

दूसरे दिन को “खरना” कहा जाता है। इसमें गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है। साथ में रोटी भी होती है। नमक और चीनी से परहेज रखा जाता है।

तीसरा दिन

तीसरे दिन सूर्य भगवान की अंतिम किरण यानि "प्रत्यूषा" की पूजा की जाती है।  सभी व्रत करने वाली महिलाएं एक टोकरी में पूजा का सारा सामाने ले कर नदी के घाट पर जाती हैं और सूर्य को दूध, जल का अर्घ्य दिया जाता है। छठी मइया की पूजा की जाती है। अपने साथ महिलाएं प्रसाद भी ले जाती हैं जो कि टिकरी के नाम से जाना जाता है। ये अर्घ्य सामूहिक रूप से दिया जाता है।

चौथा दिन

चौथे दिन कि सुबह सूर्य की पहली किरण यानी ऊषा तो अर्घ्य दिया जाता है। जिस घाट पर ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया गया होता है उसी घाट पर सुबह चढ़ते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूजा पाठ करके कच्चा दूध और प्रसाद खाकर व्रत पूरा किया जाता है।

छठ पर्व की मान्यता

ये पर्व आस्था का एक जीता जागता उदाहरण है। सूर्य भगवान जो कि हमें रोज साक्षात दर्शन देते हैं उन्हें साक्षी मानकर पूजा अर्चना की जाती है। ये इतना कठित व्रत है, लेकिन व्रत रखने वाले में इतनी ऊर्जा आ जाती है कि उन्हें इसके बारे में पता भी नहीं चलता। माना जाता है कि सच्ची निष्ठा और साफ दिल के साथ व्रत रखा जाए तो जो कुछ भी मुराद मन में हो वो पूरी होती ही है।
                                                         आप सभी को छठ पूजा की शुभकामनाएं

छठ पूजा विधी और भजनों के वीडियो देखें

नहाय खायए - 17 नवंबर 2023
खरना - 18 नवंबर 2023
अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य - 19 नवंबर 2023
उदयीमान सूर्य को अर्घ्य - 20 नवंबर 2023


सूर्योदय समय छठ पूजा के दिन - 06:28 ए एम
सूर्यास्त समय छठ पूजा के दिन - 05:14 पी एम
षष्ठी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 18, 2023 को 09:18 ए एम बजे
षष्ठी तिथि समाप्त - नवम्बर 19, 2023 को 07:23 ए एम बजे











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