क्रिसमस का नाम सुनते ही सबसे पहले दिमाग में हर भार, लाइट्स से सजा क्रिसमस ट्री आता है। फिर सर्दी, बर्फ, चॉकलेट और सांता क्लॉज़। क्रिसमस कई सालों से यूरोपियन और अमरिकन देशों में मनाया जा रहा है। भारत में भी ये पूरे जोर शोर से मनाया जाता है। छुट्टियों का वक्त होता है और हर कोई नए साल की खुमारी में होता है। ऐसे में क्रिसमस का नाम ही जहन को सुकून देता है। पर क्रिसमस मनाते क्यों हैं? आखिर क्या हुआ था इस दिन? हम आपको बताते हैं।

यीशु जन्म कथा

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कई हज़ार वर्षों पहले नासरत नाम की जगह पर रोम का शासन था। रोमन सैनिक आम जनता पर अत्याचार करते थे। अत्याचारों से बचाने के लिये भगवान ने स्वर्ग से अपने बेटे को भेजा और इसके लिये  गेब्रियाल नाम का एक दूत नासरत में मरियम नाम की महिला के पास संदेश लेकर गया। दूत ने कहा कि वो भगवान की शक्ति से गर्भवती होकर एक लड़के को जन्म देगी और उसे लड़के का नाम यीशू रखना है | जब ये सारी बातें हो रही थी, उस वक़्त मरियम की युसुफ नाम के शख्स से मंगनी हुई थी | युसुफ को जैसे ही इस बात की खबर लगी तो, वह बदनामी के डर से मरियम से रिश्ता ख़त्म करने का सोचने लगा था, तभी दूत युसुफ की बात को जानकर उसे यह समझाया कि तुम फ़िक्र मत करो | मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती होगी | दूत की बातों से तसल्ली पाकर युसुफ ने मरियम से विवाह कर घर ले आया | नासरत उस समय रोमन साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था | मरियम की गर्भवस्था के दौरान रोमन राज्य की जनगणना का समय आ गया | युसुफ जनगणना में अपना और मरियम का नाम दर्ज़ कराने हेतु उसे येरूशलम् बेथलहम साथ ले आया | बेथलहम पहुँचकर जब उन्हें सराय में जगह नही मिली तो उन दोनों ने पास के ही एक गौशाला में शरण लिया | वहाँ रहते हुए जब मरियम के जनने के दिन नज़दीक आ गये तो, उसने वहीं पर एक बच्चें को जन्म दिया और कपड़े से लपेटकर घास से बने बिछौने पर लिटा दिया | बच्चें को लिटाकर मरियम ने उसका नाम यीशू रखा |
गौशाला के पास रहने वाले गडरिये यह खबर पाते ही, उस बच्चे के दर्शन के भागे चले आए कि उनका मोक्षदाता धरती में जन्म ले चुका है | यीशू के जन्म की सूचना पाकर पास के तीन ज्योतिषी दौड़े चले आए और भगवान यीशू का यशोगान करने लगे | इन्हीं ज्योतिषियों ने अपने साथ सोने, मूर और लुबान उनके चरणों में अर्पित कर दिया | कहा जाता है कि ज्योतिषियों को एक तारे ने सूचना दी थी | इसलिए क्रिसमस में तारों का बहुत अधिक महत्व है | यही वजह है कि क्रिसमस मे बनाई जाने वाली झाकियों में भेड़, गाय, बकरी, घास, गढ़रीयें, राजा आदि एक साथ दिखते है | यह भी मान्यता है कि उस तारें ने धरती पर ईश्वर के आगमन के संकेत दिए थे| उस दिन एक तारा आसमान में बहुत चमक रहा था तो लोग समझ गए कि भगवान ने जन्म ले लिया है।

छोटी उम्र में ही दिखाए चमत्कार

यीशु जन्म से ही बहुत चमत्कारी और जल्दी सीखने वाले थे। 12 साल की उम्र में ही उन्होंने मंदिर में टीचर्स से बातचीत शुरू कर दी। टीचर हैरान थे कि इतना छोटा बच्चा परमेश्वर के बारे में सब कुछ कैसे जानता है। एक बार यीशू का परिवार त्योहार मनाने गया। वापसी के वक्त यीशु साथ मे नहीं थे। परिवार वालों ने सब जगह ढूंढा, लेकिन वो नहीं मिले। बाद में जब वो ढूंढते हुए मंदिर पहुंचे तो देखा कि यीशु मंदिर के टीचर्स से बातें कर रहा है और उनसे सवाल पूछ रहा है। यीशु के माता पिता ने कहा कि वो यहां क्यों बैठा है और हमारे साथ क्यों नहीं आया। तब यीशु ने कहा कि आपको पता नहीं है मुझे मेरे पिता के घर रहना है। यीशु ने कई चमत्कार भी किए। जैसे, उसने कुछ छोटी मछलियों और थोड़ी-सी रोटियों से हज़ारों लोगों को खाना खिलाया। बीमार लोगों को ठीक किया, यहाँ तक कि मरे हुओं को भी ज़िंदा किया।
यीशु धीरे धीरे बड़ा हुआ और जवान होने पर युहन्ना ने उन्हें बपतिस्मा दिया। यूहन्ना उन लोगों को बपतिस्मा देता था, जो अपने गलत कामों के लिए माफी माँगना चाहते थे। मगर यीशु ने कोई गलत कान नहीं किया था। फिर भी उसने बपतिस्मा लिया। दरअसल यीशु के पिता एक बढ़ई थे तो यीशु ने भी वही काम करना सुरू कर दिया। पर परमेश्वर ने अपने बेटे को ज़मीन पर बढ़ई बनाने के लिये नहीं भेजा था। उसे ज़रूरी काम करने के लिये भेजा गया था और वो काम करने का वक्त आ चुका था। इसलिये यीशु युहन्ना के पास बपतिस्मा लेने गया। जैसे ही यीशु ने बपतिस्मा लिया तो आकाश से कबूतर उड़े और आवाज आई ये मेरा बेटा है औ में खुश हूं।बपतिस्मे के बाद, यीशु को कई बातों के बारे में गहराई से सोचना था। इसलिए वह 40 दिन के लिए एक सुनसान जगह चला गया। वहाँ शैतान उसके पास आया। शैतान ने तीन बार कोशिश की कि यीशु, परमेश्वर के नियम के खिलाफ काम करे, लेकिन यीशु ने हर बार उसकी कोशिश नाकाम कर दी। उसके बाद यीशु वहाँ से लौट गया। लौटते वक्‍त वह कुछ आदमियों से मिला जो उसके पहले चेले बने।

एक राजा के तौर पर

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यीशु के चमत्कारों को देखते हुए लोगों ने उनको मानना शुरू कर दिया। एक दिन दो अंधे भिखारियों की आँखें खोलने के बाद यीशु यरुूशलेम के पास आया और अपने चेलों से कहा कि कु‘गाँव में जाओ, वहाँ तुम्हें एक गधे का बच्चा मिलेगा। उसे खोलकर मेरे पास ले आओ।’ गधा आने पर यीशु उस पर सवार होकर यरूशलेम पहुंच गए। वहां भीड़ ने उनका स्वागत किया। अपने कपड़े उतार कर ज़मीन पर कालीन के तौर पर बिछा दिये गए। पुराने ज़माने में इस्राएल में जो भी नया राजा बनता था, वह गधे पर सवार होकर यरूशलेम आता था। मंदिर में यीशु ने कई अंधों और लूले-लंगड़ों को ठीक किया। जब छोटे-छोटे बच्चों ने यह देखा, तो वे यीशु की जय जयकार करने लगे।

यीशु की गिरफ्तारी

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यीशु की ख्याति देखकर रोमन सम्राट और धर्म गुरू गुस्सा हो गए थे और यीशु को पकड़ने के लिये दांव पेंच खेलने लगे एक दिन यीशु के अनुयायी बाहर पहरे पर थे। यीशु ने उनसे कहा जागते रहो, लेकिन वो बाद में सो  जाते। यीशु ने उन्हें तीन बार जगाया, लेकिन वो हर बार सो जाते। आखिरी बार जब यीशु उनके पास आया, तो उसने उनसे कहा: ‘तुम ऐसे समय पर कैसे सो सकते हो? वह घड़ी आ गयी है, जब मुझे मेरे दुश्मनों के हाथ सौंप दिया जाएगा।’
यीशु, बात कर ही रहा था कि लोगों का शोरगुल सुनायी देने लगा। जब उसने नज़र उठायी तो देखा कि कई आदमी मशाल, तलवार और लाठी लिए चले आ रहे थे। जब वे नज़दीक आए, तो भीड़ में से एक आदमी निकलकर यीशु के पास आया। उसने यीशु को चूमा। यहूदा का यीशु को चूमना एक निशानी थी। इससे यहूदा के साथ आए लोगों को पता चल जाता कि वही यीशु है, जिसे वे पकड़ना चाहते हैं। तब यीशु के दुश्मनों ने आगे बढ़कर उसे दबोच लिया। लेकिन पतरस इतनी आसानी से उन्हें यीशु को नहीं ले जाने दे सकता था। उसने तुरंत अपनी तलवार निकाली और अपने पास खड़े आदमी पर चला दी। उस आदमी का सिर तो बच गया, लेकिन दायाँ कान चला गया। पर यीशु ने उस आदमी का कान छुआ और उसे फिर से जोड़ दिया।
यीशु ने पतरस से कहा: ‘तलवार को म्यान में रखो। तुम क्या सोचते हो, अगर मैं चाहूँ तो क्या अपने बचाव के लिए हज़ारों स्वर्गदूत नहीं बुला सकता?’ अब समय आ गया है और मुझे जाना चाहिए। ऐसा कहकर यीशु सैनिकों के साथ चले गए।

यीशु को सूली पर लटकाना

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जब यीशु को धर्म-गुरु पकड़कर ले गए, तब सारे अनुयायी डर गए बस पतरस और युहन्ना ही थे जो कि उनका पीछा करते रहे। यीशु को कैफै के घर ले जाया गया जहां पर बहुत से धर्म गुरु इकट्ठे थे। यीशु पर मुकदमा चलाया गया। यीशु के खिलाफ झूठ बोलने के लिए कई आदमियों को बुलाया गया। वहाँ हाज़िर सारे धर्म-गुरु कहने लगे: ‘यीशु को जान से मार डालना चाहिए।’ अगले दिन शुक्रवार को काफी पैरवियों के बाद पिलातुस ने यीशु को मारने का हुक्म सुनाया। यीशु के हाथ में कीलें ठोंक कर सूली पर लटकाया गया। यीशू के साथ दो अन्य मुलजिमों को लटकाया गया जिनको मौत की सजा दी गई थी।

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