
ददरी मेला उत्तर प्रदेश के प्रमुख पशु मेले में से एक है। यह मेला कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर-नवंबर) के दिन गंगा नदी में पवित्र डुबकी लेने वाले लोगों के साथ शुरू होता है। यह मेला महर्षि भृगु के शिष्य दर्दर मुनी के सम्मान में सालाना आयोजित किया जाता है। यह एक महीने का मेला दो चरणों में आयोजित किया जाता है।
उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध बलिया शहर से 5 किलोमीटर दूर ददरी में इस मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला दो सप्ताह तक मनाया जाता है और मवेशियों के व्यापार के लिए दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करता है।
कहा जाता है कि विष्णु को लात मारने पर महर्षि भृगु को जो श्राप मिला था, उससे मुक्ति इसी क्षेत्र में ही उन्हें मिली थी। तपस्या पूरी होने पर भृगु के शिष्य दर्दर मुनि के नेतृत्व में यज्ञ हुआ, जिसमें 88 हजार ऋषियों का यहां समागम हुआ। उसके बाद से शुरू हुई यह परम्परा समय के साथ 'लोक मेला' में तब्दील हो गयी। मेला का इंतजार जिले के उन लोगों को तो रहता ही है जो दूसरे शहर या विदेश में हैं, पूरे पूर्वांचल व बिहार के लोग भी उतनी ही बेसब्री से इसकी राह देखते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन से लगने वाला ददरी मेला का मीना बाजार की अपनी ही खासियत होती है। करीब डेढ़ किमी की परिधि में मीना बाजार लगता है। मेले में चेतक प्रतियोगिता व दंगल के साथ ही अखिल भारतीय कवि सम्मेलन, मुशायरा, लोक गीत, कव्वाली आदि कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।

ददरी मेला की पौराणिक कथा
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है। माना जाता है की पाँच हज़ार ईसा पूर्व दर्दर मुनि सरयू नदी की जलधारा को अयोध्या से भृगुगुप्त मे ले आये और उस का गंगा से संगम करवा दिया जिस से उन्होने विलुप्त हो रही गंगा की धारा को बचा लिया गया। ब्रह्मा जी के छोटे बेटे महर्षि भृगु जो की दर्दर मुनि के गुरु थे ददरी मेले का आयोजन अपने प्रिय शिष्य के इस कार्य के संपन्न होने पर और अपने ग्रन्थ भृगु संहिता के लोकार्पण पर किया था। महर्षि भृगु द्वारा आयोजित इस मेले मे 88 हज़ार लोगो ने भाग लिया था।To read this Article in English Click here