हिन्दू मान्यताओं में देवी दुर्गा को सर्वोच्च देवी माना जाता है। कहा जाता है कि त्रिदवों की उत्पति करने वाली भी मां दुर्गा है। देवी दुर्गा को मां दुर्गा के रुप में संबोधित किया जाता है। देवी दुर्गा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिक हैं। दैवी दुर्गा दैविय शक्ति और स्त्री शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। जो यह बताती हैं कि स्त्री कमजोर नहीं हैं। वो शांत भी है और समय आने पर दुष्टों का संहार भी कर सकती है। दुर्गा माता के इन्हीं गुणों के कारण उन्हें सर्वोच्च देवी की संज्ञा दी गई हैं। संस्कृत में दुर्गा का शाब्दिक अर्थ वह है जो अजेय और अयोग्य है। हिंदू मान्यता में देवी दुर्गा का जन्म उन राक्षसों को नष्ट करने के लिए हुआ था जिन्होंने स्वर्ग में देवताओं के अस्तित्व को समाप्त करने की धमकी दी थी। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा त्रिदेव ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु (रक्षक ), और शिव ( विनाशक ) के संयुक्त ऊर्जा से उभरी है। मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर से युद्ध करने के लिए जन्म लिया था, कथा के अनुसार राक्षस महिषासुर को वरदान दिया गया था की वह और इंसान और भगवान द्वारा नहीं मारा जा सकता। यहां तक कि ब्रह्मा, विष्णु), और शिव भी उसे रोकने में नाकाम रहे ,इसलिए एक स्त्री ऊर्जा की उपस्थिति नरसंहार करने के लिए की गयी ,जिसने तीनो लोको में तहलका मचा दिया था। मां दुर्गा ने महिषासुर, मधु-कैटभ और चंड-मुंड एवं शुभं-निशुंभ जैसे राक्षसों का संहार किया और धरती पर स्त्री शक्ति का सृजन किया। मां दुर्गा को हमेशा शेर के साथ देखा जाता है इसलिए इन्हें शेरोंवाली माता भी कहा जाता है। देवी दुर्गा को समर्पित नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा का त्योहार समस्त भारत एंव नेपाल में धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। देवी दुर्गा के नौ रुपों की पूजा सर्वत्र होती है।
मां दुर्गा

देवी दुर्गा का स्वरुप

देवी दुर्गा को को हिंदू ग्रंथों में कई तरह से चित्रित किया गया है। मां देवी दुर्गा का स्वरूप, बेहद आकर्षक है, उनके मुख में सौम्यता और स्नेह झलकता है। उनके दस हाथ हैं, जिसमें हर एक में एक विशेष शस्त्र है। मां दुर्गा की सवारी शेर है, जो हिमावंत पर्वत से लाया गया था। दुर्गा, एक बाघ या शेर पर सवार एक भव्य नारी योद्धा है। दुर्गा को महिषासुर मर्दिनी बाघ पर सवार एक निडर रूप में जिसे अभय मुद्रा के नाम से जाना जाता है| दुर्गा माँ आठ या दस हाथ होने के रूप में वर्णित की गयी है। यह 8 हाथ चतुर्भागों या हिंदू धर्म में दस दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह सभी दिशाओं से अपने भक्तों की रक्षा करती है। दुर्गा माँ के हाथ में शंख "प्रणवा " या " ॐ " का प्रतिक है,जिसकी ध्वनि भगवान की उपस्थिति का प्रतिक है। धनुष और तीर ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं। धनुष और तीर दोनों एक हाथ में पकड़ कर " माँ दुर्गा " यह दर्शा रही है ऊर्जा के दोनों रूपों पर नियंत्रण कैसे किया जाता है। वज्र दृढ़ता का प्रतीक है। दुर्गा के भक्त वज्र की तरह शांत होने चाहिए। व्रज की तरह वह सभी को तोड़ सकता है जिससे भी वह टकराता है। दुर्गा माँ के हाथ में कमल पूरी तरह से खिला हुआ नहीं है ,यह सफलता नहीं बल्कि अन्तिम की निश्चितता का प्रतीक है। संस्कृत में कलम को "पंकजा" कहा `जाता है जिसका मतलब है कीचड़ में जन्मा हुआ। इस प्रकार, कमल वासना और लालच की सांसारिक कीचड़ के बीच श्रद्धालुओं का आध्यात्मिक गुणवत्ता के सतत विकास के लिए खड़ा है। " सुदर्शन -चक्र " एक सुंदर डिस्कस ,जो देवी की तर्जनी के चारों ओर घूमती है, उसे नहीं छूते है,पूरी दुनिया दुर्गा की इच्छा एवं उनके आदेश का प्रतीक है। वह बुराई को नष्ट करने और धर्म के विकास के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करने के लिए इस अमोघ हथियार का उपयोग करती है। तलवार जो माँ दुर्गा एक हाथ में पकड़ती है वह ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है ,जो तेज़ होता है। सभी संदेहों से मुक्त है जो ज्ञान , तलवार की चमक का प्रतीक है। दुर्गा त्रिशूल या " त्रिशूल " तीन गुणों का प्रतीक है- सातवा (निष्क्रियता ), राजस ( गतिविधि) और तामस (गैर गतिविधि)- और वह तीन प्रकार के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दुःख मिटाती है। क्रूर राक्षस महिषासुर की हत्या के लिए उन्हें महिषासुरा-मर्दिनी के रूप में जाना जाता है। उसके जन्म पर उसे एक भयंकर बाघ पर चढ़ाया गया था और बहुत खूबसूरत और क्रूर दिखता था। देवी का दुर्गा रूप शक्ति की सबसे पूजनिय अवतार है। ब्रह्मांड की मां के रूप में देवी दुर्गा का अपने बच्चों के लिए प्यार हमेशा स्थायी है। उनकी पूजा उनके क्रूर और मातृ रूप दोनों के लिए की जाती है। वह वास्तव में महिला गतिशीलता का प्रतीक है। उन्हें भगवान शिव की शक्ति और ऊर्जा के पीछे बल माना भी जाता है।

देवी दुर्गा की उत्पती और महिषासुर का वध

एक बार की बात है, एक भैंसा दानव था, जिसे महिषासुर के नाम से जाना जाता था, जो बड़ा शक्तिशाली था। वह सभी देवताओं का वध करना चाहता था, ताकि वह संसार में सर्वोच्चम हो सकें। उसने ब्रहमा जी की तपस्या कर वरदान मांगा कि देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।' वर प्राप्त करके लौटने के बाद महिषासुर समस्त दैत्यों का राजा बन गया। उसने दैत्यों की विशाल सेना का गठन कर पाताल लोक और मृत्युलोक पर आक्रमण कर समस्त को अपने अधीन कर लिया। भगवान विष्णु ने कहा ने सभी देवताओं के साथ मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्ति की आराधना की। सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। हिमवान ने भगवती की सवारी के लिए सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए। उन्हे हर भगवान और देवता ने कुछ न कुछ अवश्यन दिया था, भगवान शिव ने त्रिशुल, भगवान विष्णुक ने चक्र, भगवान वायु ने तीर आदि दिए। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया। भगवती दुर्गा हिमालय पर पहुंचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। महिषासुर के असुरों के साथ उनका भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी मारे गए। फिर विवश होकर महिषासुर को भी देवी के साथ युद्ध करना पड़ा। महिषासुर ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर देवी को छल से मारने का प्रयास किया लेकिन अंत में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर का मस्तक काट दिया। कहते हैं कि देवी कात्यायनी को ही सभी देवों ने एक एक हथियार दिया था और उन्हीं दिव्य हथियारों से युक्त होकर देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध किया था। इस प्रकार मां दुर्गा, आज भी बुरी बाधाओं का वध करने के लिए पूजी जाती हैं। साल में चैत्र माह की नवरात्रि मुख्ये होती है।
यह भी कहा जाता है कि पुरातन काल में दुर्गम नाम का एक अत्यंत बलशाली दैत्य हुआ करता था। उसने ब्राहमाजी को प्रसन्न कर के समस्त वेदों को अपनें आधीन कर लिया, जिस कारण सारे देव गण का बल क्षीण हो गया। इस घटना के उपरांत दुर्गम नें स्वर्ग पर आक्रमण कर के उसे जीत लिया।और तब समस्त देव गण एकत्रित हुए और उन्होने देवी माँ भगवती का आह्वान किया और फिर देव गण नें उन्हे अपनी व्यथा सुनाई। तब माँ भगवती नें समस्त देव गण को दैत्य दुर्गम के प्रकोप से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। माँ भगवती नें दुर्गम का अंत करने का प्रण लिया है, यह बात जब दुर्गम को पता चली तब उसने सवर्ग लोग पर पुनः आक्रमण कर दिया। और तब माँ भगवती नें दैत्य दुर्गम की सेना का संहार किया और अंत में दुर्गम को भी मृत्यु लोक पहुंचा दिया। माँ भगवती नें दुर्गम के साथ जब अंतिम युद्ध किया तब उन्होने भुवनेश्वरी, काली, तारा, छीन्नमस्ता, भैरवी, बगला तथा दूसरी अन्य महा शक्तियों का आह्वान कर के उनकी सहायता से दुर्गम को पराजित किया था। इस भीषण युद्ध में विकट दैत्य दुर्गम को पराजित करके उसका वध करने पर माँ भगवती दुर्गा नाम से प्रख्यात हुईं।

मां दुर्गा की सवारी शेर

एक धार्मिक कथा अनुसार माँ पार्वती नें भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक चली इस कठोर तपस्या के फल स्वरूप माँ पार्वती नें शिवजी को तो पा लिया पर तप के प्रभाव से वह खुद सांवली पड़ गयी। विनोद में एक दिन शिवजी नें माँ पार्वती को काली कह दिया, यह बात माँ पार्वती को इतनी बुरी लग गयी की उन्होने कैलाश त्याग दिया और वन गमन किया। वन में जा कर उन्होने घोर तपस्या की। उनकी इस कठिन तपस्या के दौरान वहाँ एक भूखा शेर, उनका भक्षण करने के इरादे से आ चढ़ा। लेकिन तपस्या में लीं माँ पार्वती को देख कर वह शेर चमत्कारिक रूप से वहीं रुक गया और माँ पार्वती के सामने बैठ गया। और उन्हे निहारता रहा। माँ पार्वती नें तो हठ ले ली थी की जब तक वह गौरी (रूपवान) नहीं हो जाएंगी तब तक तप करती ही रहेंगी। शेर भी भूखा प्यासा उनके सामने बरसों तक बैठा रहा। अंत में शिवजी प्रकट हुए और माँ पार्वती को गौरी होने का वरदान दे कर अंतरध्यान हो गए। इस प्रसंग के बाद पार्वती माँ गंगा स्नान करने गईं तब उनके अंदर से एक और देवी प्रकट हुई। और माँ पार्वती गौरी बन गईं। और उनका नाम इसीलिए गौरी पड़ा। और दूसरी देवी जिनका स्वरूप श्याम था उन्हे कौशकी नाम से जाना गया। स्नान सम्पन्न करने के उपरांत जब माँ पार्वती (गौरी) वापस लौट रही थीं तब उन्होने देखा की वहाँ एक शेर बैठा है जो उनकी और बड़े ध्यान से देखे जा रहा है। शेर एक मांस-आहारी पशु होने के बावजूद, उसने माँ पर हमला नहीं किया था यह बात माँ पार्वती को आश्चर्यजनक लगी। फिर उन्हे अपनी दिव्य शक्ति से यह भास हुआ की वह शेर तो तपस्या के दौरान भी उनके साथ वहीं पर बैठा था। और तब माँ पार्वती नें उस शेर को आशीष दे कर अपना वाहन बना लिया।

मां दुर्गा ने किया मधु-कैटभ का वध

पौराणिक कथा अनुसार एक बार भगवान् विष्णु क्षीर सागर शेषशैया पर योगनिद्रा में थे। सम्पूर्ण संसार जल विलीन हो चूका था। तब मधु कैटभ नामक दो दैत्य श्री हरि के कर्ण के मैल से प्रकट हुए। वे बड़े बलशाली और भीमाकार थे| बाहर आते ही उनकी नजर ब्रह्मा जी पर पड़ी जो श्री विष्णु के नाभि कमल पर विराजमान थे। ब्रह्मा जी जानते थे कि इन दोनों महाबलवान दैत्यों से सिर्फ विष्णु जी ही मुझे बचा सकते हैं। उन्हें अपने प्राण बचाने के लिए गहरी निद्रा में योगमाया के प्रभाव में सोये हुए हरि को जगाना जरुरी था| इसके साथ साथ सम्पूर्ण जगत को चलाने वाली योगमाया की माया मधु कैतभ पर भी असर करवानी थी अत: उन्होंने मन ही मन विष्णु जी की आँखों में बसने वाली योगनिद्रा से प्रार्थना शुरू कर दी| ब्रह्मा जी की विनती पर अव्यक्तजन्मा उनके समक्ष खड़ी हो गयी| इसी के साथ योगमाया के नेत्रों से आ जाने पर भगवान विष्णु शय्या से जग उठे| श्री हरि ने उनसे 5000 वर्षो से बाहूयुद्ध किया| तब महामाया ने मधु कैतभ को अपने योग माया में कैद कर लिया| इसी माया के प्रभाव से उन दोनों दानवो ने विष्णु से कोई भी वर मांगने की बात कही| भगवान विष्णु ने उनके प्राण मांग लिए| मधु कैतभ ने प्रभु से कहा की जिस जगह जल न हो वही हम्हारा वध करो| तब श्री हरि ने अपनी जाँघों पर लेकर उनका वध किया। इस तरह महामाया ने बिना युद्ध लिए सिर्फ अपनी माया से मधु कैटभ के वध होने में मुख्य भूमिका निभाई |

मां दुर्गा की पूजा

मां दुर्गा की पूजा यूं तो रोजाना की जाती है किन्तु नवरात्रों और दुर्गा पूजा के दिन माता को पूजे जाने का विशेष महत्व है। माता की पूजा के लिए सर्वप्रथम सूर्य उदय से पहले स्नान करे और स्वच्छ और साफ कपड़े पहने । एक लकड़ी की सीट (पाटा) पर एक लाल कपड़ा बिछाकर और उस पर मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो को इस्तापित करें। कुश बिछा कर बैठे। फिर इस पूजा की सामग्री को जमाये रोली , मोली , लाल फूल, घी की मिठाई, दीया इत्यादि। माता को फल का भोग लगाएं। इसके बाद धूप, नैवेध चढा कर दुर्गा चालीसा एवं दुर्गा स्तुति का पाठ करें, माता के 108 नाम का जाप करें और अंत में आरती करके मां का आशीर्वदा ग्रहण करें।

मां दुर्गा का मूल मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
एवं
ॐ श्री दुर्गायः नमः

श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा। प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥
रक्षा कर प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजे॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावै। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावे। मोह मदादिक सब विनशावै॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥
जब लगि जियउं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

श्री दुर्गा स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु बुद्दिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु निन्द्रारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु शुधारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु तृष्णारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु लज्जारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु श्रद्धारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु कान्तिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु स्मृतिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु दयारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु त्रुष्टिरुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:
या देवी सर्वभूतेषु मातारुपेन संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम:

मां दुर्गा के 108 नाम

1. सती : अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली
2. साध्वी : आशावादी
3. भवप्रीता : भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली
4. भवानी : ब्रह्मांड में निवास करने वाली
5. भवमोचनी : संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली
6. आर्या : देवी
7. दुर्गा : अपराजेय
8. जया : विजयी
9. आद्य : शुरुआत की वास्तविकता
10. त्रिनेत्र : तीन आंखों वाली
11. शूलधारिणी : शूल धारण करने वाली
12. पिनाकधारिणी : शिव का त्रिशूल धारण करने वाली
13. चित्रा : सुरम्य, सुंदर
14. चण्डघण्टा : प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली
15. सुधा : अमृत की देवी
16. मन : मनन-शक्ति
17. बुद्धि : सर्वज्ञाता
18. अहंकारा : अभिमान करने वाली
19. चित्तरूपा : वह जो सोच की अवस्था में है
20. चिता : मृत्युशय्या
21. चिति : चेतना
22. सर्वमन्त्रमयी : सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली
23. सत्ता : सत-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है
24. सत्यानन्दस्वरूपिणी : अनन्त आनंद का रूप
25. अनन्ता : जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं
26. भाविनी : सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत
27. भाव्या: भावना एवं ध्यान करने योग्य
28. भव्या: कल्याणरूपा, भव्यता के साथ
29. अभव्या : जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
30. सदागति : हमेशा गति में, मोक्ष दान
31. शाम्भवी : शिवप्रिया, शंभू की पत्नी
32. देवमाता : देवगण की माता
33. चिन्ता : चिन्ता
34. रत्नप्रिया : गहने से प्यार करने वाली
35. सर्वविद्या : ज्ञान का निवास
36. दक्षकन्या : दक्ष की बेटी
37. दक्षयज्ञविनाशिनी : दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली
38. अपर्णा : तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली
39. अनेकवर्णा : अनेक रंगों वाली
40. पाटला : लाल रंग वाली
41. पाटलावती : गुलाब के फूल
42. पट्टाम्बरपरीधाना : रेशमी वस्त्र पहनने वाली
43. कलामंजीरारंजिनी : पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली
44. अमेय : जिसकी कोई सीमा नहीं
45. विक्रमा : असीम पराक्रमी
46. क्रूरा : दैत्यों के प्रति कठोर
47. सुन्दरी : सुंदर रूप वाली
48. सुरसुन्दरी : अत्यंत सुंदर
49. वनदुर्गा : जंगलों की देवी
50. मातंगी : मतंगा की देवी
51. मातंगमुनिपूजिता : बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय
52. ब्राह्मी : भगवान ब्रह्मा की शक्ति
53. माहेश्वरी : प्रभु शिव की शक्ति
54. इंद्री : इंद्र की शक्ति
55. कौमारी : किशोरी
56. वैष्णवी : अजेय
57. चामुण्डा : चंड और मुंड का नाश करने वाली
58. वाराही : वराह पर सवार होने वाली
59. लक्ष्मी : सौभाग्य की देवी
60. पुरुषाकृति : वह जो पुरुष धारण कर ले
61. विमिलौत्त्कार्शिनी : आनन्द प्रदान करने वाली
62. ज्ञाना : ज्ञान से भरी हुई
63. क्रिया : हर कार्य में होने वाली
64. नित्या : अनन्त
65. बुद्धिदा : ज्ञान देने वाली
66. बहुला : विभिन्न रूपों वाली
67. बहुलप्रेमा : सर्व प्रिय
68. सर्ववाहनवाहना : सभी वाहन पर विराजमान होने वाली
69. निशुम्भशुम्भहननी : शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
70. महिषासुरमर्दिनि : महिषासुर का वध करने वाली
71. मसुकैटभहंत्री : मधु व कैटभ का नाश करने वाली
72. चण्डमुण्ड विनाशिनि : चंड और मुंड का नाश करने वाली
73. सर्वासुरविनाशा : सभी राक्षसों का नाश करने वाली
74. सर्वदानवघातिनी : संहार के लिए शक्ति रखने वाली
75. सर्वशास्त्रमयी : सभी सिद्धांतों में निपुण
76. सत्या : सच्चाई
77. सर्वास्त्रधारिणी : सभी हथियारों धारण करने वाली
78. अनेकशस्त्रहस्ता : कई हथियार धारण करने वाली
79. अनेकास्त्रधारिणी : अनेक हथियारों को धारण करने वाली
80. कुमारी : सुंदर किशोरी
81. एककन्या : कन्या
82. कैशोरी : जवान लड़की
83. युवती : नारी
84. यति : तपस्वी
85. अप्रौढा : जो कभी पुराना ना हो
86. प्रौढा : जो पुराना है
87. वृद्धमाता : शिथिल
88. बलप्रदा : शक्ति देने वाली
89. महोदरी : ब्रह्मांड को संभालने वाली
90. मुक्तकेशी : खुले बाल वाली
91. घोररूपा : एक भयंकर दृष्टिकोण वाली
92. महाबला : अपार शक्ति वाली
93. अग्निज्वाला : मार्मिक आग की तरह
94. रौद्रमुखी : विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा
95. कालरात्रि : काले रंग वाली
96. तपस्विनी : तपस्या में लगे हुए
97. नारायणी : भगवान नारायण की विनाशकारी रूप
98. भद्रकाली : काली का भयंकर रूप
99. विष्णुमाया : भगवान विष्णु का जादू
100. जलोदरी : ब्रह्मांड में निवास करने वाली
101. शिवदूती : भगवान शिव की राजदूत
102. करली : हिंसक
103. अनन्ता : विनाश रहित
104. परमेश्वरी : प्रथम देवी
105. कात्यायनी : ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय
106. सावित्री : सूर्य की बेटी
107. प्रत्यक्षा : वास्तविक
108. ब्रह्मवादिनी : वर्तमान में हर जगह वास करने वाली


मां दुर्गा
मां दुर्गा की आरती

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी|
तुमको निशि दिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी||
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को|
उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको||
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै|
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पार साजै||
केहरि वाहन राजत, खडूग खप्पर धारी|
सुर - नर मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी||
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती|
कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति||
शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती|
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मतमाती||
चण्ड - मुण्ड संहारे, शौणित बीज हरे|
मधु - कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे||
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी|
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी||
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरु|
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरू||
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता|
भक्तन की दुःख हरता, सुख सम्पत्ति करता||
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी|
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी||
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती|
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति||
अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावे|
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख - सम्पत्ति पावे||
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