देवियों को ऊर्जा का स्त्रोत माना जाता है। कई राक्षसों का संहार करने के लिए देवियों ने धरती पर अवतरण लिया था। महिषासुर, मधु-कैटभ इत्यादि कई राक्षसो का संहार देवियों ने किया था। हिन्दू मान्यतानुसार देवियों के 108 रुप प्रचलित है। ऐसा भी कहा जाता है कि जब देवी सती यज्ञ में समाहित होकर जल गई थीं तो भगवान शिव उनके जलते शरीर को लेकर इधर-उधर भागन लगे थे। जिससे सृष्टि में प्रलय की स्थित उत्पन्न हो गई थी तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए। यही टुकड़े देवियों के कई रुप बने। इन्हें शक्तिपीठ भी कहा जाता है। देवियां मातृशक्ति का एक रुप है। प्रत्येक देवियों की अलग-अलग मान्यताएं। उनकी अलग कथाएं हैं।
देवी लक्ष्मी धन और वैभव की देवी मानी जाती है। वो भगवान विष्णु की पत्नी है। उन्हीं के समान उनके हाथ में पुष्प और चक्र सुशोभित है वो कमल के पुष्प पर विराजती हैं। श्री देवी प्राय: द्विभुज है और अपने हाथों में सनाल कमल धारण करती हैं। कभी कभी एक हाथ में कमल और दूसरे में बिल्व फल धारण करती हैं। श्री लक्ष्मी को दो हाथी स्नान भी कराते रहते है। श्री देवी की मूर्तियाँ बौद्ध कला में भी लोकप्रिय थीं। साँची की कला में श्री की कतिपय विशिष्ट मूर्तियाँ हैं। मनुष्य गण धन, वैभव के लिए माता लक्ष्मी की आराधना करते हैं। देवी लक्ष्मी को समर्पित दीपावली की पूजी होती है।
देवी सरस्वती ब्रहमा की पत्नी एवं बेटी दोनों है। उन्हें विद्या की देवी कहा जाता है। कहते हैं माता सरस्वती की अराधना करने से बुद्धि, विद्या और ज्ञान का संचार होता है। देवी सरस्वती ज्ञान और वीणा की देवी भी कहीं जाती है। सरस्वती चतुर्भुजी हैं और उनके आयुध पुस्तक, अक्षमाला, वीणा या कमंडलु हैं। एक हाथ प्राय: वरद मुद्रा में रहता है। कमंडलु का विधान ब्रह्मा की पत्नी के रूप में है किंतु पृथक् प्रतिमा में सरस्वती के हाथ में वीणा ही रहती है और कभी कभी कमल रहता है। इनका वाहन हंस है। महाविद्या सरस्वती के रूप में देवी के आयुध अक्षा, अब्ज, वीणा और पुस्तक हैं। वंसत पंचमी को माता सरस्वती की भक्तगण पूजा करते हैं। इसे सरस्वती पूजा भी कहा जाता है।
देवी पार्वती शिव की पत्नी सती का ही दूसरा रुप हैं। देवी पार्वती के कई रुप संसार मे प्रचलित है। देवी पार्वती के तप के कारण ही दुर्गा एवं काली का जन्म हुआ था। शिव की पत्नी गौरी मूर्तिशास्त्र में अनेक नाम और आयुधों से जानी जाती हैं। द्वादश गौरी की सूची में उमा, पार्वती, गौरी, ललिता, श्रियोत्तमा, कृष्णा, हेमवती, रंभा, सावित्री, श्रीखंडा, तोतला और त्रिपुरा के नाम से प्रसिद्ध हैं। शिवरात्रि और सावन की हरियाली तीज एंव हरितालिका व्रत माता पार्वती को समर्पित हैं।
मां दुर्गा- माता दुर्गा शेर पर सवार होकर दुष्टों, और दानवो का संहार करती है। एक पैर से उसे पदाक्रांत करती हैं और दो हाथों में शूल पकड़े हुए उसे दैत्य की छाती में चुभोती हैं। इनके आठ प्रतिहार हैं जिनके नाम बेताल, कोटर, पिंगाक्ष, भृकुटि, धुम्रक, कंकट, रक्ताक्ष और सुलोचन अथवा त्रिलोचन हैं। माता दुर्गा को समर्पित नवरात्रि एवं दुर्गा पूजा हिन्दू मान्यता में बहुत प्रचलित है। माता दुर्गा के नौ रुपों की पूजा इन दिनों की जाती है। माता दुर्गा मधु-कैटभ और महिषासुर जैसे राक्षसों का संहार करने वाली स्त्री शक्ति की संचालिका हैं।
मां काली देवी पार्वती का ही क्रोध रुप है। देवी पार्वती को दंड देने वाली माता माना जाता है। जो पापियों को बख्शति नहीं है उनका संहार करती हैं। इनका रूप क्रूर है, शरीर में मांस नहीं है और मुख विकृत है। आँखें लाल और केश पीले हैं। इनका वाहन शव और वर्ण कला है। भुजंग भूषण है और वे कपाल की माला धारण करती हैं। किंतु चामुंडा के रूप में देवी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह कृशोदरी हैं। मूर्तिशास्त्रीय परंपरा के अनुसार ये षोडशभुजी हैं तथा इनके आयुध त्रिशूल, खेटक, खड्ग, धनुष, अंकुश, शर, कुठार, दर्पण, घटा, शंख, वस्त्र, गदा, वज्र, दंड और मुद्गर हैं। चामुंडा के रूप में देवी का स्वरूप, जैसा उपलब्ध मूर्तियों से पता चलता है, द्विभुज और चतुर्भुज भी है।देवी काली को समर्पित काली पूजा की जाती है। कई योगी, साधु महात्मा एवं तांत्रिक माता काली की अराधना कर शक्ति संपन्न बनते हैं।