इन्द्र का जीवन
इंद्र के पिता का नाम त्वष्टा या द्यौः मिलता है और माता शवसी। शची जिसे इंद्राणी कहते हैं वो उनकी पत्नी है जिसकी गणना सप्तमात्रिकाओं में होती है। इन्द को कई जगह कश्यप और अदिति का पुत्र भी बताया गया है तो कहीं पर प्रजापति का पुत्र माना गया है । बलि, जंयत, सीताहुप्त, रुपमेया, रुभास और पांडव अर्जुन इन्द्र के ही पुत्र हैं। वेदों में अग्नि और सूर्य के साथ इसकी गणना होती है। इंद्र गर्जन और बारिश के महान योद्धा है। वह साहस और ताकत का प्रतीक है।इन्द्र का पराक्रम
इन्द्र के पराक्रम से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित है। कहा जाता है कि राम रावण के युद्ध के समय जब रावण अपनी ताकत के बल पर रथ से युध्ध कर रहा था और भगवान राम पैदल युद्ध कर रहे थे तब युद्ध को सामान्य करने के लिए इन्द्र ने अपना शक्तिशाली रथ भगवान राम को भेंट किया। जिसमें इन्द्र का कवच, बड़ा धनुष, बाण तथा शक्ति भी थे। विनीत भाव से हाथ जोड़कर मातलि ने रामचंद्र से कहा कि वे रथादि वस्तुओं को ग्रहण करें। युद्ध-समाप्ति के बाद राम ने मातलि को आज्ञा दी कि वह इन्द्र का रथ आदि लौटाकर ले जाए। वहीं दूसरी कथा यह भी है कि वृत्रासुर त्वष्टा ऋषि का यज्ञ-पुत्र था। इन्द्र द्वारा वृत्रासुर का वध करने पर इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा। इससे बचने के लिए इन्द्र अपना लोक छोड़कर एक अज्ञात सरोवर में जा छिपे। ब्रह्महत्या के भय से वे बहुत वर्षों तक उस सरोवर से नहीं निकले। इन्द्र के न रहने पर देवलोक में इन्द्रासन सूना हो गया। राजा के न रहने से बड़ी अव्यवस्था हो गई। बहुत सोच-विचार के बाद गुरु बृहस्पति ने कहा, ‘‘इस समय भूलोक में नहुष का राज है। वह बहुत ही समर्थ, योग्य और चक्रवर्ती सम्राट हैं। इन्द्र के वापस आने तक उन्हें इंद्र की पदवी देकर इन्द्रासन पर बैठा दिया जाए। नहुष को इन्द्र की पदवी देकर इन्द्रासन सौंप दिया गया किन्तु स्वर्ग के शासन और वैभव को देखकर नहुष लोभ मे पड़ गया और उसने इन्द्र की पत्नी को पाना चाहा। लाख मना करने पर भी जब वो नहीं माना तो इन्द्राणी ने कहा कि वो सप्तऋषियों के साथ पालकी से आए वो तब विवाह करेगीं। भोग में लिप्त नहुष ने ऐसा किया वो पालकी पर बैठकर सप्तऋषियों द्वारा उन्हें कहांर बना कर जाने लगा। ऋषियों के धीरे चलने पर उसने उनसे बैरुखी करी। इससे क्रोधित होकर ऋषियों ने उसे श्राप दे दिया कि वो सर्प बन जाएगा और उससे स्वर्ग का सिंहासन भी छिन लिया। इधर इन्द्र का प्रायश्चित भी पूरा हो गया था और उन्होंने फिर से स्वर्ग पर अपना शासन स्थापित कर लिया।इन्द्र का भोग विलास
देवराज इन्द्र को उनके पराक्रम के साथ-साथ भग विलास के लिए भा जाना जाता है। वो स्वंय या अपनी अप्सराओं द्वारा समय-समय पर ऋषियों की साधना को भंग करते आएं है। काम और क्रोध से जुड़ी हुआ ऐसा ही प्रसंग पद्ममपुराण में मिलता है जिसमें अपनी कामवासना के कारण देवराज इन्द्र गौतम ऋषि के क्रोध के भागी बने थे। इन्द्र के अधिकतर चित्रों में उनके शरीर पर असंख्य आंखें बनी हुई दिखाई देती है। वास्तव में वो आंखें गौतम ऋषि के श्राप का परिणाम है। देवराज इन्द्र स्वर्गलोक में अप्सराओं से घिरे रहने के बाद भी कामवासना से घिरे रहते थे। एक दिन वो धरती पर विचरण कर रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक कुटिया के बाहर गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या दैनिक कार्यों में व्यस्त हैं। अहिल्या इतनी सुंदर और रूपवती थी कि इन्द्र उन्हें देखकर मोहित हो गए और रोज वहां आने लगे। इस तरह उन्होंने गौतम ऋषि के बाहर आने जाने का समय भी ज्ञात कर लिया। सूर्य उदय होने से पूर्व ही गौतम ऋषि नदी में स्नान करने के लिए चले जाते थे इसलिए एक दिन इन्द्र ने समय से पूर्व ही सूर्य उदय का माहौल बना दिया। ऋषि को लगा की बाहर जाने का समय हो गया है औऱ वो चले गए। इधर इन्द्र गौतम ऋषि का भेष धारण कर अहिल्या के साथ भोग-विलास संभोग करने लगे। जब गौतम ऋषि को लगा कि अभी सुबह नहीं हुई है तो वो वापस अपनी कुटिया में आए और अपनी पत्नी और इन्द्र को भोग करता देख क्रोधित हो गए उन्होंने अहिल्या को पत्थर बनने का श्राप दे दिया और कहा कि जब भगवान राम धरती पर आएगें तब तुम्हारा कल्याण होगा। वहीं इन्द्र को उन्होंने पूरे शरीर पर हजार योनियां उत्पन्न होने का श्राप दे दिया जिसके बाद लज्जापूर्ण इन्द्र ने उनसे क्षमा मांगी तो ऋषि ने योनियों को हजार नेत्रों में परिवर्तित कर दिया। इसी कारण से इन्द्र को ‘देवराज’ की उपाधि देने के साथ ही उन्हें देवताओं का राजा भी माना जाता है लेकिन उनकी पूजा एक भगवान के तौर पर नहीं की जाती। इन्द्र द्वारा ऐसे ही अपराधों के कारण उन्हें दूसरे देवताओं की तुलना में ज्यादा आदर- सत्कार नहीं दिया जाता है।इन्द्र का स्वरुप
इन्द्र वृहदाकार है। देवता और मनुष्य उसके सामर्थ्य की सीमा को नहीं पहुँच पाते। वह सुन्दर मुख वाले हैं। उनका प्रमुख शस्त्र वज्र है। उसकी भुजाएँ भी वज्रवत् पुष्ट एवं कठोर हैं। उनके चार हाथ हैं जिनमें से दो हाथों में वज्र और एक हाथ में गदा तथा एक हाथ जांघ पर रखा हुआ है। वह सफेद ऐरावत हाथी की सवारी करते है। उच्चैःश्रवा उनका घोड़ा है। इन्द्र का निवास स्थान अमरावती है। यह नंदन वन में पारिजात पाए जाते हैं। इन्द्र स्वर्ग के स्वामी है। इन्द का शरीर पृथ्वी के आकार का दस गुना है। वह सर्वशक्तिमान है। सोमरस इन्द्र का परम प्रिय पेय है। वह विकट रूप से सोमरस का पान करता है। उससे उसे स्फूर्ति मिलती है। वृत्र के साथ युद्ध के अवसर पर पूरे तीन सरोवरों को उसने पीकर सोम-रहित कर दिया था। इन्द्र को कभी-कभी धनुष-बाण और अंकुश से युक्त भी बतलाया गया है। उसका रथ स्वर्णाभ है। दो हरित् वर्ण अश्वों द्वारा वाहित उस रथ का निर्माण देव-शिल्पी ऋभुओं द्वारा किया गया था। हिन्दू मन्दिरों में प्रायः पूर्व दिशा के रक्षक देवता के रूप में इन्द्र की प्रतिष्टा होती है। इन्द्र देवताओं के राजा और स्वर्ग के शासक है। वह सभी दुष्ट शक्तियों के खिलाफ देवताओं और मानव जाति के संरक्षक हैं। उन्हें अक्सर खजाने के भगवान के रूप में जाना जाता है जो दिव्य हथियार वज्र से मानव जाति की रक्षा करते हैं। इन्द्र को वह प्रजनन देवता माना जाता है है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इन्द्र ने ही धरती पर जल का आगमन किया था। उनमें योद्धाओं को पुनर्जिवित करने की क्षमता है। इन्द्र राक्षसों का संहार करते हैं और अपने अनुयायियों की रक्षा करते हैं। उन्होंने राक्षस वाला को मार डाला था क्योंकि उसने संसार से समस्त गायों को चुरा लिया था ताकि लोग गाय का दूध ना पी सकें और धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति ना कर सकें।To read this article in English Click here