राम का जीवन परिचय
भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी किन्तु उनकी कोई संतान नहीं थी। जिससे वह बहुत व्याकुल थे। तत्पश्चात, राजा दशरथ ने पुत्र पाने की इच्छा अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ से बताया। महर्षि वशिष्ठ ने विचार कर ऋषि श्रृंगी को आमंत्रित किया। ऋषि श्रृंगी ने राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का प्रावधान बताया। ऋषि श्रृंगी के निर्देशानुसार राजा दशरथ ने यज्ञ करवाया जब यज्ञ में पूर्णाहुति दी जा रही थी उस समय अग्नि कुण्ड से अग्नि देव मनुष्य रूप में प्रकट हुए तथा अग्नि देव ने राजा दशरथ को खीर से भरा कटोरा प्रदान किया। तत्पश्चात ऋषि श्रृंगी ने बताया हे राजन, अग्नि देव द्वारा प्रदान किये गए खीर को अपनी सभी रानियों को प्रसाद रूप में दीजियेगा। राजा दशरथ ने वह खीर अपनी तीनो रानियों कौशल्या, कैकेयी एवम सुमित्रा में बाँट दी। प्रसाद ग्रहण के पश्चात निश्चित अवधि में अर्थात चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को राजा दशरथ के घर में माता कौशल्या के गर्भ से राम जी का जन्म हुआ तथा कैकेयी के गर्भ से भरत एवम सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण तथा शत्रुधन का जन्म हुआ। राजा दशरथ के घर में चारो राजकुमार एक साथ समान वातावरण में पलने लगे। राम जन्म की ख़ुशी में तबसे लोग रामनवमी पर्व मनाते है। जब राम बड़े हुए तो संत विश्वामित्र चाहते थे कि राम राक्षसी ताड़का और उसके दो बेटों मरीच और सुबाहू को मार डालें क्योंकि वे उन्हें व उनके आश्रम को परेशान कर रहे थे। उन्हें मारने के लिए भगवान राम एवं साथ में भाई लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ बक्सर(बिहार) गए वहां उन्होंने ताड़का और उसके पुत्रों का सहांर किया। जिसके बाद विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को मिथिला ले गए। वहां मिथिला के राजा जनक की पुत्री सीता का स्वंयवर हो रहा था। राजा जनक ने यह शर्त रखी थी कि जो भी शिवजी द्वारा दिया गया धनुष तोड़ेगा सीता का विवाह उसी से होगा। किन्तु बड़े-बड़े महारथी ऐसा करने में समर्थ नहीं हो सके। अंत में श्रीराम ने धनुष तोड़ कर सीता से स्वंयवर किया। जिसके बाद वो लोग अयोध्या वापस आए। राम के विवाह के बाद उनका राजतिलक करने की तैयारी जोरों-शोरों से शुरु हो गई। किन्तु दासी मंथरा ने राम की सौतेली मां कैकयी के कान भर दिए और कैकयी ने अपने वरदान स्वरुप राजा दशरथ से अपने बेटे भरत का राज सिंहासन मांगा एवं राम को 14 वर्षों का वनवास मांग लिया। माता-पिता के वचनों का मान रखने के लिए भगवान राम वन जाने के लिए तैयार हो गए। उनके साथ उनकी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण भी वनवास को साथ गए। भरत को जब इस बात का पता चला तो वो राम को वापस लेने आए किन्तु राम ने जाने से मना कर दिया जिसके स्वरुप भरत राम के खड़ाउं यानि चरण पादूका ले गए और राजगद्दी पर उसे रख पूजा करन लगे। इधर राम सूपर्णखा जैसी राक्षसी के बहकावे में नहीं आए लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी जिस बात का बदला लेने के लिए सूपर्णखा अपने भाई रावण के पास गई और सारी बात कह सुनाई। रावण राम की पत्नी सीता का हरण करने के लिए साधु का भेष बनाकर आया और अपने साथी मारिछ को सुंदर हिरण बनाकर सीता के सामने भेज दिया। जिसे लेने के लिए सीता ने राम से अनुरोध किया। राम सीता की इच्छा पूरी करने के लिए हिरण की तरफ दौड़ पड़े। राम की आवाज सुनकर सीता ने लक्ष्मण को भी जबरदस्ती भेज दिया। लक्ष्मण ने सीता के समक्ष रेखा खींच दी जिसे लक्ष्मण रेखा कहा जाता है। सीता को रेखा पार ना करने के कहा तभी साधु का रुप बना कर रावण ने सीता को रेखा पार करने के लिए मजबूर कर दिया और उनका हरण कर के लंका ले गया। राम और लक्ष्मण जब वापस आए तो उन्हें जटायु ने सारा वृतातं सुनाया। राम सीता की खोज में निकल पड़े। रास्ते में उन्हें भक्त हनुमान मिले जिन्होंने राम को सुग्रीव से मिलाया। राम ने सुग्रीव को उसके भाई बाली पर विजय दिलाई और सुग्रीव ने अपनी वानर सेना की सहायता से राम को रावण तक पहुंचाया। जिसके बाद सभी ने मिलकर युद्ध लड़ा और राम ने रावण का संहार कर सीता को उसकी कैद से छुड़ाया। राम ने रावण के भाई विभिषण को राजगद्दी दे दी और वापस 14 वर्ष का वनवास काट अयोध्या लौट आए। राम के अयोध्या लौटने पर खुशी मनाई गई। अयोध्या पर राज करने के बाद राम ने पत्नी सीता के धरती में समाने और भाई लक्ष्मण के समाधी लेने के बाद ही अपना समय पूर्ण होता जान सरयु नदी में देहवासन कर दिया और वापस बैकुंठ को चले गए।भगवान राम का स्वरुप
भगवान राम को मर्यादापुरुषोतम राम कहा जाता है। उनका स्वरुप उनके नाम की तरह ही दिखालई पड़ता है। उनका रंग सावंला एंव शीतल है। भगवान राम सदैव मुस्कुराते रहते हैं। उनके मुख पर क्रोध नहीं झलकता। सर पर मुकुट और हाथ में धनुष बाण लिए राम को चित्रित किया जाता है। भगवान राम को सदैव आशीर्वाद देते हुए दिखाया जाता है। उनके साथ उनका पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण एवं भक्त हनुमान दिखलाई पड़ते हैं। राम को उनके वनवास के स्वरुप में धनुष बाण लिए और पीले वस्त्र धारण किए दिखाया जाता है। राम का स्वरुप अत्यंत मनमोहक है। उन्होंने अहिल्या का कल्याण किया था। उनके छूने मात्र से अहिल्या का श्राप खत्म हो गया और वो पत्थर से इंसान बन कर मुक्ति को प्राप्त हो गईं। राम ने हमेशा अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन किया। राम को एक आदर्श पुत्र, भाई, पति एवं शासक के रुप में जाना जाता है। जिन्होंने प्रजा की भलाई के लिए अपनी पत्नी का भी त्याग कर दिया था।भगवान राम की पूजा
भगवान राम की पूजा के लिए सर्वप्रथम गणेश पूजन करें। गणेश जी को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। गंध, पुष्प अक्षत से पूजन करें। अब भगवान राम का पूजन करें। भगवान राम को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं। अब पुष्पमाला पहनाएं। अब तिलक करें। ‘‘श्री रामाय नमः’’ कहते हुए भगवान राम को अष्टगंध का तिलक लगाएं। अब धूप व दीप अर्पित करें। फूल अर्पित करें। श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक लगाएं। आरती करें। आरती के पश्चात् परिक्रमा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें। पूजन के समय ‘‘ऊँ रामाय नमः’’मंत्र का जप करते रहें।राम गायत्री मंत्र :-
ॐ दाशरथये विद्महे सीतावल्भाय धीमहि ! तन्नो राम प्रचोदयात !‘ॐ ह्रां ह्रीं रां रामाय नम: इति राममूलमंत्र:!
‘ॐ जानकीकान्त तारक रां रामाय नम: ’ इति राम तारकमंत्र: !
राम मंत्र
ओम श्री राम जय राम, जय, जय राममेरे राम श्री राम जय जय राम।।
आरती श्री रामचन्द्रजी
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्।
नव कंज लोचन, कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम्।
पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्द कन्द कौशल चन्द्र दशरथ नन्द्नम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
मन जाहि राचेऊ मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो।
करुणा निधान सुजान शील सनेह जानत रावरो॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय हित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली॥