भगवान विष्णु का स्वरुप
भगवान विष्णु ने यूं तो कई अवतार लिए है जिनमें उनके कई स्वरुप हैं। किन्तु भगवान विष्णु का मुख्य स्वरुप बादलों के रंगो की तरह काला और नीला है। कमल से भी सुंदर उनके कमल नयन है जो एक समान दृष्टि का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान विष्णु के चार हाथ हैं। जिनमें नीचे वाले बाएँ हाथ में कमल , नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी) ,ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख और पर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं। विष्णु जी के चार हाथ जीवन के इन चार चरणों को दर्शातें हैं पहला- ज्ञान की खोज, दूसरा- पारिवारिक जीवन, तीसरा- वन में वापसी और चौथा संन्यास। कौस्तुभ मणि जगत् के निर्लेप, निर्गुण तथा निर्मल क्षेत्रज्ञ स्वरूप का प्रतीक है। उनके कानों के दो कुंडल दो विपरित चीज़ों के जोड़ को दर्शाते हैं। जैसे ज्ञान और अज्ञान, सुख और दुख आदि। उनके मुकुट पर लगा मोर पंख, उनके कृष्ण अवतार को दर्शाता है। ऐसा माना भी जाता है कि ये विष्णु जी ने कृष्ण भगवान से लिया है। विष्णु जी की छाती पर बना श्रीवस्ता उनका लक्ष्मी जी के लिए प्रेम को दर्शाता है। पुराणानुसार विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी हैं जो धन और वैभव की देवी हैं। कामदेव विष्णु जी के पुत्रहैं। विष्णु जी निवास क्षीर सागर है। विष्णु जी का गदा बुद्धि का सूचक है। उनका शंख पंचमहाबूतों के उदय का कारण तमस अंहकार है। गले में उनकी वैजयन्ती माला पंचमहाभूतों का संघात है। भगवान विष्णु के पीला रंग अति प्रिय है वो पीले रंग के वस्त्र यानि पीताम्बरी में अपने शेषनाग पर विराजमान रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि विष्णु जी की नाग पर लेटे हुए रूप का अर्थ है कि मनुष्यों को सुख और खुशियों के साथ-साथ कई समस्याओं से भी उसी वक्त गुज़रना पड़ता है। यानि सुख के साथ दर्द भी। इसीलिए जीवन के इस सच को वो सांपों के ऊपर लेटकर मुस्कुराते हुए दर्शाते हैं।भगवान विष्णु के दशावतार
भगवान विष्णु ने जब जब धरती पर पाप बढ़ा तब तब कई अवतार लिए हैं। दुष्टों एवं पापियों के संहार के लिए भगवान विष्णु ने प्रत्येक युग में कोई ना कोई अवतार लिया है भगवान के इन्हीं दस अवतारों को दशावतार कहा गया है। भगवान विष्णु के चार अवतार सतुयग में दिखाई पड़े थे। तीन अवतार उन्होंने त्रेतायुग में लिए थे एवं द्वापरयुग में उन्होंने एक अवतार लिया था और एक अवतार कलयुग के प्रारंब में लिया था। भगवान विष्णु कलयुग के अतं में जब पाप हद से ज्यादा बढ़ जाएगा फिर अवतारल लेगें। उनके दशावतार इस प्रकार हैं-1. मत्स्य अवतार :
मछली-अवतार जिसमें भगवान विष्णु ने मनु को बचाया एवं राक्षसों की हत्या करके वैदिक ग्रंथों को बचाया पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार लिया था। इसकी कथा इस प्रकार है- कृतयुग के आदि में राजा सत्यव्रत हुए। राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई। उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया। मछली और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा, तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई। राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि ये मेरा मत्स्यावतार है।
2. कूर्म अवतार :
कुर्मा, कछुए का अवतार, जिन्होंने समुद्र मंथन में मदद की। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है- एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया। इंद्र जब भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने समुद्र मंथन करने के लिए कहा। तब इंद्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए।भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ।
3. वराह अवतार :
सूअर-अवतार, जिसने समुद्र से पृथ्वी को बचाया और हिरण्याक्ष की हत्या की। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने दूसरा अवतार वराह रूप में लिया था। वराह अवतार से जुड़ी कथा इस प्रकार है- पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।
4. भगवान नृसिंह :
आंशिक रूप से मनुष्य और आंशिक शेर अवतार, जिन्होंने राक्षस हिरण्यक्श्यप को मारा और बेटे प्रहलाद की रक्षा की। भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था। इस अवतार की कथा इस प्रकार है- धर्म ग्रंथों के अनुसार दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया।हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
5. वामन अवतार :
बौने ब्राह्मण अवतार का अवतार जिन्होंने दानव-राजा बाली को हराया । एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।
6. परशुराम अवतार
कुल्हाड़ी के साथ ऋषि जिन्होंने हजारों सशस्त्र राजाओं का मारा था। प्राचीन समय में महिष्मती नगरी पर शक्तिशाली हैययवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन(सहस्त्रबाहु) का शासन था। वह बहुत अभिमानी था और अत्याचारी भी। एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन कराने का आग्रह किया। तब सहस्त्रबाहु ने घमंड में आकर कहा कि आप जहां से चाहें, भोजन प्राप्त कर सकते हैं, सभी ओर मेरा ही राज है। तब अग्निदेव ने वनों को जलाना शुरु किया। एक वन में ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे। अग्नि ने उनके आश्रम को भी जला डाला। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया कि भगवान विष्णु, परशुराम के रूप में जन्म लेंगे और न सिर्फ सहस्त्रबाहु का नहीं बल्कि समस्त क्षत्रियों का सर्वनाश करेंगे। इस प्रकार भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया। और राजाओं का खात्मा किया।
7. श्रीराम अवतार :
अयोध्या के राजा राम और हिंदू महाकाव्य रामायण के नायक राम का अवतार। त्रेतायुग में राक्षसराज रावण का बहुत आतंक था। उससे देवता भी डरते थे। उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु ने अनेक राक्षसों का वध किया और मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवन यापन किया। पिता के कहने पर वनवास गए। वनवास भोगते समय राक्षसराज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण कर ले गया। सीता की खोज में भगवान लंका पहुंचे, वहां भगवान श्रीराम और रावण का घोर युद्ध जिसमें रावण मारा गया। इस प्रकार भगवान विष्णु ने राम अवतार लेकर देवताओं को भय मुक्त किया।
8. श्रीकृष्ण अवतार :
द्वारका के राजा कृष्ण का अवतार। द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था। भगवान श्रीकृष्ण ने इस अवतार में अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया। कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने ही किया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बने और दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान विष्णु का ये अवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
9. बुद्ध अवतार :
दुनिया को ज्ञान देने के लिए लिया अवतार। धर्म ग्रंथों के अनुसार बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे परंतु पुराणों में वर्णित भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के समीप कीकट में हुआ बताया गया है और उनके पिता का नाम अजन बताया गया है।
10. कल्कि अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे।
भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के अन्य अवतार
श्री सनकादि मुनि :धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोक पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोकों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन नाम से युक्त होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियों के रूप में अवतार लिया।
नारद अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार देवर्षि नारद भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि, ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। श्रीमद्भागवतगीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं।
नर-नारायण :
सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार लिया। इस अवतार में वे अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। उनका संपूर्ण वेष तपस्वियों के समान था।
कपिल मुनि :
भगवान विष्णु ने कपिल मुनि के रूप में अवतार लिया था। इनके पिता का नाम महर्षि कर्दम व माता का नाम देवहूति था। भगवान कपिल के क्रोध से ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। भगवान कपिल सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। कपिल मुनि भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक हैं।
दत्तात्रेय अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय भी भगवान विष्णु के अवतार है। देवी अनसुईया के आशीर्वाद स्वरुप उनका जन्म हुआ था।
यज्ञ :
भगवान विष्णु के सातवें अवतार का नाम यज्ञ है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था।
भगवान ऋषभदेव :
भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में आठवांं अवतार लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार महाराज नाभि की कोई संतान नहीं थी। इस कारण उन्होंने अपनी धर्मपत्नी मेरुदेवी के साथ पुत्र की कामना से यज्ञ किया। यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने महाराज नाभि को वरदान दिया कि मैं ही तुम्हारे यहां पुत्र रूप में जन्म लूंगा।
आदिराज पृथु :
भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम आदिराज पृथु है।
भगवान धन्वन्तरि :
धर्म ग्रंथों के अनुसार जब देवताओं व दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से सबसे पहले भयंकर विष निकला जिसे भगवान शिव ने पी लिया। इसके बाद समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, देवी लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, कल्प वृक्ष, अप्सराएं और भी बहुत से रत्न निकले। सबसे अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। यही धन्वन्तरि भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं। इन्हें औषधियों का स्वामी भी माना गया है।
मोहिनी अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले। जैसे ही अमृत मिला अनुशासन भंग हुआ। देवताओं ने कहा हम ले लें, दैत्यों ने कहा हम ले लें। इसी खींचातानी में इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भाग गया। सारे दैत्य व देवता भी उसके पीछे भागे। असुरों व देवताओं में भयंकर मार-काट मच गई। देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया। भगवान ने मोहिनी रूप में सबको मोहित कर दिया किया।
हयग्रीव अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए। वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दु:खी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा को दे दिए।
श्रीहरि अवतार :
धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में त्रिकूट नामक पर्वत की तराई में एक शक्तिशाली गजेंद्र अपनी हथिनियों के साथ रहता था। एक बार वह अपनी हथिनियों के साथ तालाब में स्नान करने गया। वहां एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और पानी के अंदर खींचने लगा। गजेंद्र और मगरमच्छ का संघर्ष एक हजार साल तक चलता रहा। अंत में गजेंद्र शिथिल पड़ गया और उसने भगवान श्रीहरि का ध्यान किया। गजेंद्र की स्तुति सुनकर भगवान श्रीहरि प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया। भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया।
महर्षि वेदव्यास :
पुराणों में महर्षि वेदव्यास को भी भगवान विष्णु का ही अंश माना गया है। भगवान व्यास नारायण के कलावतार थे। वे महाज्ञानी महर्षि पराशर के पुत्र रूप में प्रकट हुए थे।इन्होंने ही महाभारत ग्रंथ की रचना भी की।
14 हंस अवतार :
एक बार भगवान ब्रह्मा अपनी सभा में बैठे थे। तभी वहां उनके मानस पुत्र सनकादि पहुंचे और भगवान ब्रह्मा से मनुष्यों के मोक्ष के संबंध में चर्चा करने लगे। तभी वहां भगवान विष्णु महाहंस के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सनकादि मुनियों के संदेह का निवारण किया। इसके बाद सभी ने भगवान हंस की पूजा की। इसके बाद महाहंसरूपधारी श्रीभगवान अदृश्य होकर अपने पवित्र धाम चले गए।
भगवान विष्णु का मंत्र
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्।विश्वाधारं गगनसदृशं मेघ वर्णं शुभांगम्।।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
अर्थातः जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।
भगवान विष्णु की पूजा विधि
भगवान विष्णु की पूजा यूं तो किसी भी दिन की जा सकती है किन्तु विशेष रुप से गुरुवार को पूजा करने का विशेष फल प्राप्त होता है। पूजा के लिए सर्वप्रथम गणेश पूजन करें। गणेश जी को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें। अब भगवान विष्णु का पूजन शुरू करें। भगवान विष्णु का आवाहन करें। आवाहन यानी कि बुलाना। भगवान विष्णु को अपने आसन दें। अब भगवान विष्णु को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। अब भगवान को वस्त्र पहनाएं। वस्त्रों के बाद आभूषण और फिर यज्ञोपवित (जनेऊ) पहनाएं। अब पुष्पमाला पहनाएं। सुगंधित इत्र अर्पित करें। अब तिलक करें। तिलक के लिए अष्टगंध का प्रयोग करें। अब धूप व दीप अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल विशेष प्रिय है। तुलसी दल अर्पित करें। भगवान विष्णु के पूजन में चावल का प्रयोग नहीं किया जाता है। तिल अर्पित कर सकते हैं। श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक लगाएं। आरती करें। आरती के पश्चात् परिक्रमा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। भगवान नारायण के पूजन के समय ‘‘ऊँ नमो नारायणाय मंत्र’’ का जप कर सकते है।भगवान विष्णु का मूल मंत्र
‘‘ऊँ नमो नारायणाय मंत्र’’
भगवान विष्णु के 108 नाम
1। नारायण : ईश्वर, परमात्मा2। विष्णु : हर जगह विराजमान रहने वाले
3। वषट्कार: यज्ञ से प्रसन्न होने वाले
4। भूतभव्यभवत्प्रभु: भूत, वर्तमान और भविष्य के स्वामी
5। भूतकृत : सभी प्राणियों के रचयिता
6। भूतभृत : सभी प्राणियों का पोषण करने वाले
7। भाव : सम्पूर्ण अस्तित्व वाले
8। भूतात्मा : ब्रह्मांड के सभी प्राणियों की आत्मा में वास करने वाले
9। भूतभावन : ब्रह्मांड के सभी प्राणियों का पोषण करने वाले
10। पूतात्मा : शुद्ध छवि वाले प्रभु
11। परमात्मा : श्रेष्ठ आत्मा
12। मुक्तानां परमागति: मोक्ष प्रदान करने वाले
13। अव्यय: : हमेशा एक रहने वाले
14। पुरुष: : हर जन में वास करने वाले
15। साक्षी : ब्रह्मांड की सभी घटनाओं के साक्षी
16। क्षेत्रज्ञ: : क्षेत्र के ज्ञाता
17। गरुड़ध्वज: गरुड़ पर सवार होने वाले
18। योग: : श्रेष्ठ योगी
19। योगाविदां नेता : सभी योगियों का स्वामी
20। प्रधानपुरुषेश्वर : प्रकृति और प्राणियों के भगवान
21। नारसिंहवपुष: : नरसिंह रूप धरण करने वाले
22। श्रीमान् : देवी लक्ष्मी के साथ रहने वाले
23। केशव : सुंदर बाल वाले
24। पुरुषोत्तम : श्रेष्ठ पुरुष
25। सर्व : संपूर्ण या जिसमें सब चीजें समाहित हों
26। शर्व : बाढ़ में सब कुछ नाश करने वाले
27। शिव : सदैव शुद्ध रहने वाले
28। स्थाणु : स्थिर रहने वाले
29। भूतादि : सभी को जीवन देने वाले
30। निधिरव्यय : अमूल्य धन के समान
31। सम्भव : सभी घटनाओं में स्वामी
32। भावन : भक्तों को सब कुछ देने वाले
33। भर्ता : सम्पूर्ण ब्रह्मांड के संचालक
34। प्रभव : सभी चीजों में उपस्थित होने वाले
35। प्रभु : सर्वशक्तिमान प्रभु
36। ईश्वर : पूरे ब्रह्मांड पर अधिपति
37। स्वयम्भू : स्वयं प्रकट होने वाले
38। शम्भु : खुशियां देने वाले
39। आदित्य : देवी अदिति के पुत्र
40। पुष्कराक्ष : कमल जैसे नयन वाले
41। महास्वण : वज्र की तरह स्वर वाले
42। अनादिनिधन : जिनका न आदि है एयर न अंत
43। धाता : सभी का समर्थन करने वाले
44। विधाता : सभी कार्यों व परिणामों की रचना करने वाले
45। धातुरुत्तम : ब्रह्मा से भी महान
46। अप्रेमय : नियम व परिभाषाओं से परे
47। हृषीकेशा : सभी इंद्रियों के स्वामी
48। पद्मनाभ : जिनके पेट से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई
49। अमरप्रभु : अमर रहने वाले
50। विश्वकर्मा : ब्रह्मांड के रचयिता
51। मनु : सभी विचार के दाता
52। त्वष्टा : बड़े को छोटा करने वाले
53। स्थविष्ठ : मुख्य
54। स्थविरो ध्रुव : प्राचीन देवता
55। अग्राह्य : मांसाहार का त्याग करने वाले
56। शाश्वत : हमेशा अवशेष छोड़ने वाले
57। कृष्ण : काले रंग वाले
58। लोहिताक्ष : लाल आँखों वाले
59। प्रतर्दन : बाढ़ के विनाशक
60। प्रभूत : धन और ज्ञान के दाता
61। त्रिककुब्धाम : सभी दिशाओं के भगवान
62। पवित्रां : हृदया पवित्र करने वाले
63। मंगलपरम् : श्रेष्ठ कल्याणकारी
64। ईशान : हर जगह वास करने वाले
65। प्राणद : प्राण देने वाले
66। प्राण : जीवन के स्वामी
67। ज्येष्ठ : सबसे बड़े प्रभु
68। श्रेष्ठ : सबसे महान
69। प्रजापति : सभी के मुख्य
70। हिरण्यगर्भ : विश्व के गर्भ में वास करने वाले
71। भूगर्भ : खुद के भीतर पृथ्वी का वहन करने वाले
72। माधव : देवी लक्ष्मी के पति
73। मधुसूदन : रक्षक मधु के विनाशक
74। ईश्वर : सबको नियंत्रित करने वाले
75। विक्रमी : सबसे साहसी भगवान
76। धन्वी : श्रेष्ठ धनुष- धारी
77। मेधावी : सर्वज्ञाता
78। विक्रम : ब्रह्मांड को मापने वाले
79। क्रम : हर जगह वास करने वाले
80। अनुत्तम : श्रेष्ठ ईश्वर
81। दुराधर्ष : सफलतापूर्वक हमला न करने वाले
82। कृतज्ञ : अच्छाई- बुराई का ज्ञान देने वाले
83। कृति : कर्मों का फल देने वाले
84। आत्मवान : सभी मनुष्य में वास करने वाले
85। सुरेश : देवों के देव
86। शरणम : शरण देने वाले
87। शर्म :
88। विश्वरेता : ब्रह्मांड के रचयिता
89। प्रजाभव : भक्तों के अस्तित्व के लिए अवतार लेने वाले
90। अह्र : दिन की तरह चमकने वाले
91। सम्वत्सर : अवतार लेने वाले
92। व्याल : नाग द्वारा कभी न पकड़े जाने वाले
93। प्रत्यय : ज्ञान का अवतार कहे जाने वाले
94। सर्वदर्शन : सब कुछ देखने वाले
95। अज : जिनका जन्म नहीं हुआ
96। सर्वेश्वर : सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी
97। सिद्ध : सब कुछ करने वाले
98। सिद्धि : कार्यों के प्रभाव देने वाले
99। सर्वादि : सभी क्रियाओं के प्राथमिक कारण
100। अच्युत : कभी न चूकने वाले
101। वृषाकपि: धर्म और वराह का अवतार लेने वाले
102। अमेयात्मा: जिनका कोई आकार नहीं है।
103। सर्वयोगविनि: सभी योगियों के स्वामी
104। वसु : सभी प्राणियों में रहने वाले
105। वसुमना: सौम्य हृदय वाले
106। सत्य : सत्य का समर्थन करने वाले
107। समात्मा: सभी के लिए एक जैसे
108। सममित: सभी प्राणियों में असीमित रहने वाले
भगवान विष्णु जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय।।।॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय।।।॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय।।।॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय।।।॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय।।।॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय।।।॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय।।।॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय।।।॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय।।।॥
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