हनुमान जी का स्वरुप
हिँदू महाकाव्य रामायण के अनुसार, हनुमान जी को वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया जाता है। इनका शरीर अत्यंत शक्तिशाली एवं बलशाली है। उनके कंधे पर जनेऊ लटका रहता है। हनुमान जी को मात्र एक लंगोट पहने अनावृत शरीर के साथ दिखाया जाता है। वह मस्तक पर स्वर्ण मुकुट एवं शरीर पर स्वर्ण आभुषण पहने दिखाए जाते है। उनकी वानर के समान लंबी पूँछ है। उनका मुख्य अस्त्र गदा माना जाता है। यह हमेशा हनुमान जी के साथ रहता है। हनुमान जी के ह्रदय में राम और सीता समाहित रहते है। वो हमेशा राम नाम जपते रहते हैं।हनुमान जी का जन्म और जीवन
हनुमान जी, हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रामायण में एक पौराणिक चरित्र है। शिव पुराण के अनुसार हनुमान जी को, भगवान शिव का दसवां अवतार माना जाता है। भगवान हनुमान के जन्म और जीवन से जुड़े कई प्रसिद्ध किस्से हैं। जब भगवान शिव को पता चला कि भगवान विष्णु राम का अवतार लेकर धरती पर प्रकट होने वाले हैं तो उन्होंने भी भगवान राम के के साथ रहने की इच्छा प्रकट की। जब सती ने इसका विरोध प्रदर्शन किया और कहा कि वह उन्हें स्मरण करेंगी तो शिव ने केवल खुद का एक हिस्सा पृथ्वी पर भेजने का वादा किया और इसलिए कैलाश पर उनके साथ रहे। शिव ने आखिरकार एक बंदर का रूप धारण करने का निर्णय लिया, क्योंकि यह विनम्र होता है। इसलिए शिव को लगा कि एक सेवक की तरह वह इस रुप में भगवान के साथ रह पाएगें। भगवान शिव ने हनुमान के रुप में अंजना माता के गर्भ से जन्म लिया। उन्हें श्राप मिला था कि उनका पुत्र बंदर की तरह होगा। भगवामन हनुमान जन्म से ही बलशाली और नटखट थे। एक दिन माता की अनुपस्थित में हनुमान को भूख लगी और आकाश में सूर्य के चमकता देख उन्हें लगा कि यह कोई फल है इसलिए वो सूर्य को खाने उसकी ओर उड़ चले। भगवान सूर्य ने उन्हें अबोध शिशु समझकर अपने तेज से नहीं जलने दिया। जिस समय हनुमान सूर्य को पकड़ने के लिये लपके, उसी समय राहु सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहता था। हनुमानजी ने सूर्य के ऊपरी भाग में जब राहु का स्पर्श किया तो वह भयभीत होकर वहाँ से भाग गया। उसने इन्द्र के पास जाकर शिकायत की। राहु की बात सुनकर इन्द्र घबरा गये और उसे साथ लेकर सूर्य की ओर चल पड़े। राहु को देखकर हनुमानजी सूर्य को छोड़ राहु पर झपटे। राहु ने इन्द्र को रक्षा के लिये पुकारा तो उन्होंने हनुमानजी पर वज्रायुध से प्रहार किया जिससे वे एक पर्वत पर गिरे और उनकी बायीं ठुड्डी टूट गई। हनुमान की यह दशा देखकर वायुदेव को क्रोध आ गया क्योंकि वह हनुमान को अपना पुत्र मानते थे। वो हनुमान को मूर्छित अवस्था में लेकर पहाड़ की गुफा में चले गए और पृथ्वी की सारी हवा बंद कर दी। जिससे पृथ्वी पर तबाही मचने लग गई। सभी जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, मनुष्य, देव तड़पने लगे। फिर सभी देवी देवता और इन्द्र पवन देव के पास आए और उनसे माफी मांगी। ब्रह्मदेव ने हनुमान को दुबारा जीवित कर दिया और उन्हें सभी देवताओं ने बलशाली होने का आशीर्वाद प्रदान किया। इन्द्र ने हनुमान को वज्र की तरह कठोर बनने का आशीर्वाद दिया। तब पवन देव ने धरती में हवा का संचार किया। तभी से हनुमान को पवनपुत्र भी कहा जाने लगा।राम और हनुमान
भगवान राम के प्रति हनुमान की भक्ति किसी से छिपी नहीं है। भक्तों में हनुमान को परम भक्त कहा जाता है उनके जैसी भक्ति आज तक किसी ने नहीं की। सीती वियोग के बाद जब भगवान राम उन्हें खोजने निकले तो राम की भेंट हनुमान से हुई। सीता को ढूंढने एंव रावण को मारने के लिए राम सेतु(पुल) का निर्माण करने में हनुमान ने अहम भूमिका अदा की है। रावण की लंका में जाकर उसकी सोने की नगरी को जलाकर कोयला भगवान हनुमान ने ही बनाया था। लक्ष्मण जी के मूर्छित हो जाने पर हनुमान जी है संजीवनी बूटी लाने गए और वो पूरे विशाल पर्वत को ही उठा लाए थे। तब जाकर लक्ष्मण जी को होश आया था। भगवान राम के प्रति हनुमान का प्रेम इतना अधिक था कि एक बार माता सीता सिंदूर लगा रहीं थी। हनुमान ने माता सीता को सिंदूर लगाते देखा और पूछा कि यह क्या दर्शाता है? माता सीता ने उत्तर दिया कि यह परंपरागत विवाहित महिलायें अपने पति के जीवन की दीर्घकालिकता के लिए सिंदूर लगाती है। तो हनुमान गये और उन्होंने अपने पूरे शरीर के ऊपर सिंदूर से लेप कर लिया, जिससे राम और सीता प्रभावित हुए और हनुमान से कहा कि जो कोई भी आपको सिंदूर को प्रदान करेगा, उनकी सभी बाधाएं उनके जीवन से हटा दी जाएंगी। वहीं सीता ने हनुमान के परमप्रिय भक्त और अमर होन का वरदान दिया। हनुमान ने अपने सूर्य भगवान से अपने अधिकांश कौशल सीखे और शास्त्रों को महारत हासिल की थी। एकाग्रता की उनकी जबरदस्त शक्ति शास्त्रों को जानने के लिए केवल 60 घंटे की आवश्यकता होती है। गुरु दक्षिणा के रूप में, उन्होंने सूर्य और पुत्र बंदर राजा, सुग्रिवा की सेवा करने का फैसला किया था।भगवान हनुमान और शनी
ब्रह्मा के कानून के अनुसार भगवान हनुमान माँ सीता की तलाश में लंका पहुंचने तक भगवान् शनि, रावण की कारावास में थे। जब हनुमान जी की पूंछ पर आग लगा दी गई तो उन्होंने अपनी पूंछ की मदद से लंका को आग लगा दी। तब उन्होंने भगवान शनी को रावण के महल के तहखाने में पाया और उन्हें रावण की कैद से आजादी दिलाई। लंका को राख में मिलाने शनि देव ने हनुमान की मदद की। चूंकि भगवान शनि हनुमान से प्रसन्न हुए थे इसलिए उन्होंने सेवा के लिए उससे पूछा इस पर, श्री हनुमान से भगवान शनि से वादा किया गया था कि वे उन लोगों को परेशान नहीं करेंगें जो भगवान हनुमान के भक्त हैं। तब से जो हनुमान की पूजा करते हैं उन्हें शनि देव परेशान नहीं करते।हनुमान और भीम
हनुमान को भी महाभारत में उल्लेख किया गया है और महान महाकाव्य में भीम के मित्र के रूप में विशेषताएं हैं क्योंकि उनमें से दोनों पवन भगवान के आशीर्वाद से पैदा हुए थे। वह कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों के पास खड़े थे और अर्जुन के रथ को सुरक्षित रखा था। नुमान को भीम का भाई माना जाता है क्योंकि उनके पिता भी पवनदेव थे। पांडवों के वनवास के दौरान, हनुमान भीम के सामने एक कमजोर और वृद्ध बंदर के रूप में भेस बदल कर गए ताकि वह उनके अहंकार को कम कर सकें। हनुमान ने अपनी पूंछ को भीम के रास्ते को रोक दिया था। भीम ने अपनी पहचान बताते हुए उनसे रास्ते से हटने को कहा। हनुमान, ने हटने से इन्कार कर दिया। जब भीम ने दोबारा कहा तो उन्होंने कहा मेरी पूंछ हटाकर निकल जाओ तब भीम ने उनकी पूंछ को हटाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी महान ताकत के बावजूद असमर्थ थे, तब भीम को महसूस हुआ कि वह कोई साधारण बंदर नहीं है, तब भीम ने हार मान लिया और उनका अहंकार दूर हुआ ।हनुमान जी का महत्व और पूजा
राम हनुमान जी के आदर्श देवता हैं। हनुमान जी जहां राम के अनन्यभक्त हैं, वहां राम भक्तों की सेवा में भी सदैव तत्पर रहते हैं। जहां-जहां श्रीराम का नाम पूरी श्रद्धा से लिया जाता है, हनुमान जी वहां किसी न किसी रूप में अवश्य प्रकट होते हैं। ऐसी कई कथाएं हैं जहां हनुमान जी ने श्रीराम के भक्तों का पूर्ण कल्याण किया है। हनुमान जी को भक्त शिरोमणि का पद प्राप्त है। उनका ध्यान ग्रह, मन, कर्म व विचारों के दोषों को दूर कर सुख-सफलता देने वाला माना गया है। कठिन से कठिन काम भी हनुमान जी के स्मरण मात्र से आसान हो जाते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार हनुमान जी एकमात्र ऐसे देवता हैं जो सशरीर इस पृथ्वी पर विचरण करते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं। हनुमान जी को संकटमोचन कहा गया है। हनुमान जी का नाम स्मरण करने मात्र से ही भक्तो के सारे संकट दूर हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म मंगलवार को हुआ। अत: मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। इसके अतिरिक्त शनिवार को भी हनुमान पूजा का विधान है। हनुमान जी को प्रसन्न करना बहुत सरल है। राह चलते उनका नाम स्मरण करने मात्र से ही सारे संकट दूर हो जाते हैं। रात के समय हनुमान जी के समक्ष मिट्टी के पात्र में तेल का दीपक अर्पित करें। स्त्री और पुरुष दोनों के लिए प्रतिदिन रात को अथवा हर मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी की पूजा करने का विधान है। एक चौकी, एक लाल कपड़ा, भगवान राम जी की मूर्ति माता सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ, एक कप चावल बिना टूटे हुए, तुलसी जी के कुछ पत्ते, एक धुपबत्ती का पैकेट, घी से भरा एक दिया, ताजे फूल, चन्दन या रोली, गंगाजल, और थोडा गुड और चना। क चौकी पर लाल कपडा बिछा लें चौकी न हो तो भी आप कोई लकड़ी का पटरा रख सकते है, चौकी पर हनुमान जी की फोटो या मूर्ति रख सकते हैं। हनुमान जी की आराधना करने से पहले यदि प्रभु श्री राम के निम्न मंत्र का जाप कर लिया जाए तो शीघ्र ही उत्तम एवं शुभ फलों की प्राप्ति होती है।ॐ राम ॐ राम ॐ राम ।
मंत्र स्मरण के बाद श्रीराम स्तुति और आरती करें। मान्यता है कि इस मंत्र जाप से राम का नाम किसी भी संकट में लेने पर राम भक्त हनुमान संकटमोचक बन सुख-सौभाग्य देते हैं। हनुमान चालिसा और सुन्दरकांड का पाठ करें और हनुमान जी की आरती करना न भूलें| हनुमान जी की पूजा करें प्रार्थना करें और अपनी मनोकामना मांग लें एवम हनुमान जीको प्रसाद का भोग लगायें। प्रसाद में बूंदीचूर के लड्डू और बूंदी और अपनी इच्छा अनुसार भोग लगायें, हनुमान जी की पूजा करना बड़ा ही पुन्य का काम है मन लगा के पूजा कीजिये बस दिल में श्रद्धा होनी चाहिए, हनुमान जी के नाम लेने से ही दुःख दर्द खत्म हो जाते हैं।
हनुमान जी के 108 नाम
1. आंजनेया : अंजना का पुत्र2. महावीर : सबसे बहादुर
3. हनूमत : जिसके गाल फुले हुए हैं
4. मारुतात्मज : पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय
5. तत्वज्ञानप्रद : बुद्धि देने वाले
6. कांचनाभ : सुनहरे रंग का शरीर
7. पंचवक्त्र : पांच मुख वाले
8. महातपसी : महान तपस्वी
9. लन्किनी भंजन : लंकिनी का वध करने वाले
10. श्रीमते : प्रतिष्ठित
11. सिंहिकाप्राण भंजन : सिंहिका के प्राण लेने वाले
12. गन्धमादन शैलस्थ : गंधमादन पर्वत पार निवास करने वाले
13. लंकापुर विदायक : लंका को जलाने वाले
14. सुग्रीव सचिव : सुग्रीव के मंत्री
15. धीर : वीर
16. शूर : साहसी
17. .दैत्यकुलान्तक : राक्षसों का वध करने वाले
18. .सुरार्चित : देवताओं द्वारा पूजनीय
19. महातेजस : अधिकांश दीप्तिमान
20. सीतादेविमुद्राप्रदायक : सीता की अंगूठी भगवान राम को देने वाले
21. अशोकवनकाच्छेत्रे : अशोक बाग का विनाश करने वाले
22. सर्वमायाविभंजन : छल के विनाशक
23. सर्वतन्त्र स्वरूपिणे : सभी मंत्रों और भजन का आकार जैसा
24. सर्वयन्त्रात्मक : सभी यंत्रों में वास करने वाले
25. कपीश्वर : वानरों के देवता
26. महाकाय : विशाल रूप वाले
27. सर्वरोगहरा : सभी रोगों को दूर करने वाले
28. प्रभवे : सबसे प्रिय
29. बल सिद्धिकर :
30. सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायक : ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने वाले
31. कपिसेनानायक : वानर सेना के प्रमुख
32. भविष्यथ्चतुराननाय : भविष्य की घटनाओं के ज्ञाता
33. कुमार ब्रह्मचारी : युवा ब्रह्मचारी
34. रत्नकुण्डल दीप्तिमते : कान में मणियुक्त कुंडल धारण करने वाले
35. चंचलद्वाल सन्नद्धलम्बमान शिखोज्वला : जिसकी पूंछ उनके सर से भी ऊंची है
36. गन्धर्व विद्यातत्वज्ञ, : आकाशीय विद्या के ज्ञाता
37. महाबल पराक्रम : महान शक्ति के स्वामी
38. काराग्रह विमोक्त्रे : कैद से मुक्त करने वाले
39. शृन्खला बन्धमोचक: तनाव को दूर करने वाले
40. सागरोत्तारक : सागर को उछल कर पार करने वाले
41. प्राज्ञाय : विद्वान
42. रामदूत : भगवान राम के राजदूत
43. प्रतापवते : वीरता के लिए प्रसिद्ध
44. वानर : बंदर
45. केसरीसुत : केसरी के पुत्र
46. सीताशोक निवारक : सीता के दुख का नाश करने वाले
47. अन्जनागर्भसम्भूता : अंजनी के गर्भ से जन्म लेने वाले
48. .बालार्कसद्रशानन : उगते सूरज की तरह तेजस
49. विभीषण प्रियकर : विभीषण के हितैषी
50. दशग्रीव कुलान्तक : रावण के राजवंश का नाश करने वाले
51. लक्ष्मणप्राणदात्रे : लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले
52. वज्रकाय : धातु की तरह मजबूत शरीर
53. महाद्युत : सबसे तेजस
54. चिरंजीविने : अमर रहने वाले
55. रामभक्त : भगवान राम के परम भक्त
56. दैत्यकार्य विघातक : राक्षसों की सभी गतिविधियों को नष्ट करने वाले
57. अक्षहन्त्रे : रावण के पुत्र अक्षय का अंत करने वाले
58. रामचूडामणिप्रदायक : राम को सीता का चूड़ा देने वाले
59. कामरूपिणे : अनेक रूप धारण करने वाले
60. पिंगलाक्ष : गुलाबी आँखों वाले
61. वार्धिमैनाक पूजित : मैनाक पर्वत द्वारा पूजनीय
62. कबलीकृत मार्ताण्डमण्डलाय : सूर्य को निगलने वाले
63. विजितेन्द्रिय : इंद्रियों को शांत रखने वाले
64. रामसुग्रीव सन्धात्रे : राम और सुग्रीव के बीच मध्यस्थ
65. महारावण मर्धन : रावण का वध करने वाले
66. स्फटिकाभा : एकदम शुद्ध
67. वागधीश : प्रवक्ताओं के भगवान
68. नवव्याकृतपण्डित : सभी विद्याओं में निपुण
69. चतुर्बाहवे : चार भुजाओं वाले
70. दीनबन्धुरा : दुखियों के रक्षक
71. महात्मा : भगवान
72. भक्तवत्सल : भक्तों की रक्षा करने वाले
73. संजीवन नगाहर्त्रे : संजीवनी लाने वाले
74. सुचये : पवित्र
75. वाग्मिने : वक्ता
76. दृढव्रता : कठोर तपस्या करने वाले
77. कालनेमि प्रमथन : कालनेमि का प्राण हरने वाले
78. हरिमर्कट मर्कटा : वानरों के ईश्वर
79. दान्त : शांत
80. शान्त : रचना करने वाले
81. प्रसन्नात्मने : हंसमुख
82. शतकन्टमदापहते : शतकंट के अहंकार को ध्वस्त करने वाले
83. योगी : महात्मा
84. मकथा लोलाय : भगवान राम की कहानी सुनने के लिए व्याकुल
85. सीतान्वेषण पण्डित : सीता की खोज करने वाले
86. वज्रद्रनुष्ट : वज्र से दानवों और दुष्टों को मारने वाला
87. वज्रनखा : वज्र की तरह मजबूत नाखून
88. रुद्रवीर्य समुद्भवा : भगवान शिव का अवतार
89. इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारक : इंद्रजीत के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को नष्ट करने वाले
90. पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने : अर्जुन के रथ पार विराजमान रहने वाले
91. शरपंजर भेदक : तीरों के घोंसले को नष्ट करने वाले
92. दशबाहवे : दस्द भुजाओं वाले
93. लोकपूज्य : ब्रह्मांड के सभी जीवों द्वारा पूजनीय
94. जाम्बवत्प्रीतिवर्धन : जाम्बवत के प्रिय
95. सीताराम पादसेवा : भगवान राम और सीता की सेवा में तल्लीन रहने वाले
96. सर्वबन्धविमोक्त्रे : मोह को दूर करने वाले
97. रक्षोविध्वंसकारक : राक्षसों का वध करने वाले
98. परविद्या परिहार : दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाले
99. परशौर्य विनाशन : शत्रु के शौर्य को खंडित करने वाले
100. परमन्त्र निराकर्त्रे : राम नाम का जाप करने वाले
101. परयन्त्र प्रभेदक : दुश्मनों के उद्देश्य को नष्ट करने वाले
102. सर्वग्रह विनाशी : ग्रहों के बुरे प्रभावों को खत्म करने वाले
103. भीमसेन सहायकृथे : भीम के सहायक
104. सर्वदुखः हरा : दुखों को दूर करने वाले
105. सर्वलोकचारिणे : सभी जगह वास करने वाले
106. मनोजवाय : जिसकी हवा जैसी गति है
107. पारिजात द्रुमूलस्थ : प्राजक्ता पेड़ के नीचे वास करने वाले
108. सर्वमन्त्र स्वरूपवते : सभी मंत्रों के स्वामी
हनुमान चालीसा
दोहा :श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा :
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अनजानी पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।
पैठी पताल तोरि जम कारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।
बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।
जो हनुमान जी की आरती गावै। बसी बैकुंठ परमपद पावै।
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।
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