काल भैरव का स्वरुप
भगवान काल भैरव शिव का ही स्वरुप एंव अंश हैं। वो अपने भक्तों को संरक्षण प्रदान करते हैं। उनकी आत्मा को शुद्ध कर भाग्योदय करते हैं। भगवान काल भैरव का स्वरुप देखने में भयंकर प्रतीत होता है। इनका कठोर शरीर नीले या काले रंग से ढका हुआ होता है। इनका चेहरा झुका हुआ एवं गुस्से से भरा होता है। बाघ की तरह इनके बाल व मूंछे होती हैं। इनके गले में चारों तरफ सांप लिपटा होता है। यह खोपड़ी की माला धारण किए रहते हैं। उनकी चार भुजाएं है। यह कुत्ते की सवारी करते हैं। कुत्ता इनका वाहन है। भैरव को दक्षिण दिशा का प्रतिक माना गया है। इनकी पूजा दक्षिण दिशा में ही होती है। यह देवी भैरवी से भी संबधित हैं। भैरव भक्तों के कष्ट दूर कर उनका शुद्धिकरण करते हैं। यह सभी देवताओं के कोतवाल होते हैं। कुत्ते को भगवान भैरव का स्वरुप मानकर शनिवार को उसे खाना खिलाना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से भगवान भैरव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। भगवान भैरव की मूर्ति सदैव मंदिरो के बाहर रखी जाती है क्योंकि उन्हें सरंक्षक माना जाता है। कहते हैं कि मंदिर के बंद होने के बाद चाबियाँ भगवान भैरव को आत्मसमर्पण कर दी जाती है ताकि वे इस जगह का ख्याल रखेंगे। भगवान काल भैरव नवग्रह के दोषों को भी दूर करते हैं। अक्सर कुंडली में राहू दोष होने के कारण भक्त भैरव की पूजा करते हैं ताकि इन दोषों से छुटकारा मिल सके।भगवान भैरव की उत्पति कथा
भगवान भैरव की उत्पति के विषय में कई कथाएं वर्णित है। एक कथा के अनुसार ‘शिवपुराण’के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा। तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा और विष्णु के बीच स्वंय को श्रेष्ठ साबित करन की बहस छिड़ गई। जब इसका नतीजा नहीं निकला तो वो दोनों चारों वेदों के पास गए और पूछा कि हम दोनों में से श्रेष्ठ कौन है। प्रत्येक वेद ने दोनों की बात सुनकर एक ही जवाब दिया की देवों के देव महादेव सबसे श्रेष्ठ है। वो सृष्टि के विनाशक हैं। किन्तु इस बास से ब्रहमा सहमत नहीं हुए और भगवान शिव का एवं उनकी वेशभूषा का मजाक बना कर हंसने लगे तभी वहां शिवजी आ गए उन्होंने अपना उपहास उड़ाने वाले ब्रह्मा को कुछ नहीं कहा किन्तु उनके शरीर से एक रौद्र रुप प्रकट हुआ जिसने अपने नाखुन के वार से ब्रहमा के पांच सिर में से एक सिर को मार दिया। इन्हें ही भैरव कहा गया। ब्रहम हत्या करने के कारण भैरव को ब्रह्म हत्या दोष लग गया। जिसके प्रायश्चित के लिए भगवान शिव ने उन्हें समस्त तीर्थ स्थलों की यात्रा करने को कहा। भगवान भैरव ने सभी जगह की यात्रा की अंत में वो शिव की नगरी काशी आए। काशी पहुंचते ही उन्हें ब्रहमा हत्या के श्राप से मुक्ति मिल गई और भगवान शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया। वहीं एक कथा यह भी है कि भगवान शिव की पत्नी सती के पिता दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ रखा था जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था। किन्तु शिव को नहीं उन्होंने बुलाया था जिससे गुस्सा होकर सती ने उसी यज्ञ में कूदकर अपनी जान दे दी। जिसके कारण शिव सती के वियोग में उनकी जलती चिता को लेकर तांडव करन लगे। ऐसा करने से प्रलय की उत्पति होने लगी जिसे रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए। यह टुकड़े जहां-जहां गिरे वहां देवी का स्वरुप बन गए। तभी से सती के टुकड़े जहां जहां गिरे थे वहां वहां भगवान शिव भैरव के रुप में उनका संरक्षण करते हैं। उनके मंदिर के बाहर भैरव का मंदिर भी अवश्य होता है।भगवान भैरव की पूजा-अर्चना
भगवान काल भैरव की सवारी कुत्ता है। उन्हें चमेली का फूल प्रिय है इसलिए इसकी अत्यंत विशेषता है। भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है। भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। भगवान भोलेनाथ ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया है तथा काल भैरव जी अदृश्य रूप में ही पृथ्वी पर काशी नगरी में निवास करते हैं। काल भैरव का शृंगार अन्य देवताओं के विपरीत भिन्न ढंग से होता है। उनकी कोई मूर्त नहीं। एक तिकोने पत्थर को ही प्रतीक स्वरूप मानकर पूजा जाता है। भैरव जी को चमेली के तेल में सिंदूर डालकर चोला चढ़ाया जाता है। चमेली के तेल में ही काजल मिलाकर काले रंग का चोला भी बनाया जाता है। भैरव तो श्रद्धा के भूखे हैं। मां की आराधना उपरांत अगर इनके दर्शन न किए जाएं तो मां की पूजा भी अधूरी मानी जाती है। काल भैरव अष्टमी के दिन रात के बारह बजे काल भैरव के मंदिर में जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं और उनको नीले रंग के फूल चढाएं। अगर आप अपनी किसी खास मनोकामना को पूरा करना चाहते है तो इसके लिए आज के दिन किसी पुराने काल भैरव के मंदिर में जाकर वहां की साफ़ सफाई करे और काल भैरव को सिंदूर और तेल का चोला चढ़ाएं। शनिवार के दिन रात में बारह बजे काल भैरव के मंदिर में जाकर उन्हें दही और गुड़ का भोग लगाएं। गुप्त नवरात्रि के दिन काल भैरव की साधना करते हैं तो वह अधिक फलदायी होती है। कई बार ऐसा भी होता है कि यदि कोई साधक भगवान भैरव की साधना में अधिक लीन हो जाता है तो काल भैरव उस व्यक्ति के शरीर में भी प्रवेश कर जाते हैं। भगवान भैरव को अपने शरीर में बुलाने के लिए आयाहि भगवन रुद्रो भैरवः भैरवीपते। प्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि। मंत्र का जाप करें। इसके बाद संकल्प किया जाता है कि मैं काल भैरव को अपने शरीर में लाने का प्रयोग कर रहा हूं। काल भैरव की प्रार्थना करने के लिए आप उनके मंदिर में जाकर, उड़द, दूध, दही, फूल आदि को चढ़ाकर भी बाबा भैरव को खुश किया जा सकता है। इसके अलावा किसी भी ऊपरी बाधा से आपको छुटकारा मिल सकता है। बकरे का मांस और शराब भगवान भैरव का पसंदीदा भोजन है। इस प्रकार कई बार लोग प्रसाद के रूप में बकरे की बली देकर शराब की बोतलों को भी प्रसाद के रुप में चढ़ाते हैं।काल भैरव की अराधना करने के लिए यदि ये मंत्र जपे जाते हैं तो मनोकामना जल्द पूरी होती है और काल भैरव भी खुश होंते हैं।
1.ॐ कालभैरवाय नमः।
2.ॐ भयहरणं च भैरवः।
3.ॐ हीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय हीं।
4.ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः।
5.ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्।