
यमराज की उत्पति
यमराज के देवता एक अलग लोक में विराजमान रहते है जिससे 'यमलोक' कहा जाता है। हिदुओं का विश्वास है कि मनुष्य मरने पर उसको शुभ और अशुभ कृत्यों का हिसाब देना पड़ता है और इसीलिए वो सब से पहले यमलोक में जाता है। वहाँ यमराज के देवता विचार करके उसे स्वर्ग या नरक में भेजते हैं। यह माना जाता है कि मृत्यु के समय यम के दूत ही आत्मा को लेने के लिये आते हैं। यमराज विश्वकर्मा की कन्या संज्ञा और सूर्यदेव के पुत्र थे। उनके जन्म से पहले जब संज्ञा ने अपने पति सूर्यदेव को देखा तो उनके तेज प्रकाश को देखकर वो भयभीत हो गई और सूर्य को देखकर भय से संज्ञा ने आँखें बंद कर ली। तब सूर्य देव क्रोधित होकर ने उन्हें श्राप दे दिया कि तुम्हारा पुत्र प्राण हरण करने वाला होगा। सूर्य देव के श्राप से ही देवी संज्ञा ने लोगों के प्राण हरने वाले पुत्र यमराज को जन्म दिया। किन्तु संज्ञा के फिर से सूर्यदेव को शांत नजरों से देखने पर उन्हें सूर्यदेव ने वरदान दिया कि तुम्हारी जो कन्या होगी वो यमी कहलाएगी। शीतल और चंचल होगी। यम की बहन यमी को यमुना नदी के नाम से जाना जाता है। भगवान शनि भी यम के भाई हैं। संज्ञा की परछाई छाया से शनि देव का जन्म हुआ था।यम राज के प्रसिद्ध मंदिर
यम धर्मराज मंदिरचित्रगुप्त मंदिर
यम का स्वरुप
यम राज का स्वरूप बड़ा ही भयावह दिखाई पड़ता है। दण्ड के द्वारा जीव को शुद्ध करना ही इनके लोक का मुख्य कार्य है। उन्हें लाल वस्त्रों में सज्जित, हरे वर्ण और रक्ताभ आँखों वाले राजसी स्वरूप में वर्णित किया गया है। वह खोपड़ी से अलंकृत गदा और एक पाश धारण करते हैं उनके सर पर सिंह के मुख वाला मुकुट, विशाल शरीर, लंबी मूंछें है। इनका वाहन काला भैंसा तथा यह यमलोक में निवास करते हैं। कौए और कबूतर यम राज के संदेश वाहक हैं। चार आँखों वाले दो कुत्ते उनके यमलोक के प्रवेशद्वार की रक्षा करते हैं। दीपावली से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यमराज की आराधना करके मनुष्य उनकी कृपा का सम्पादन करता है। ये निर्णेता हम से सदा शुभकर्म की आशा करते हैं।यमदेव का यमलोक
यमदेव मनुष्य का प्राण हरण करते हैं। यमदेव का साथ देने के लिए पाप-पुण्यों का लेखा जोखा उनके सहयोगी चित्रगुप्त करते हैं। वो यमराज की मनुष्य के कर्म निर्धारण में सहायता करते हैं। चित्रगुप्त के कहे अनुसार यमराज मनुष्यों के प्राण हरण करने धरती पर आते हैं। दक्षिण दिशा के इन लोकपाल की संयमनीपुरी समस्त प्राणियों के लिए, जो अशुभकर्मा है, बड़ी भयप्रद है। यमराज को नरक त्रिलोक का राजा माना जाता है कहते हैं कि नरक दक्षिण की ओर पृथ्वी से नीचे जल के ऊपर स्थित है। उस लोक में सूर्य के पुत्र पितृराज भगवान यम हैं। वे अपने सेवकों सहित रहते हैं तथा भगवान की आज्ञा का उल्लंघन न करते हुए, अपने दूतों द्वारा वहां लाए हुए मृत प्राणियों को उनके दुष्कर्मों के अनुसार पाप का फल दंड देते हैं। यमपुरी या यमलोक का उल्लेख गरूड़ पुराण और कठोपनिषद ग्रंथ में मिलता है। मृत्यु के बारह दिनों के बाद मानव की आत्मा यमलोक का सफर प्रारंभ कर देती है। यमलोक के इस रास्ते में वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है। वैतरणी नदी विष्ठा और रक्त से भरी हुई है। जिसने गाय को दान किया है वह इस वैतरणी नदी को आसानी से पार कर यमलोक पहुंच जाता है अन्यथा इस नदी में वे डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें निकालकर धक्का देते रहते हैं। यमपुरी पहुंचने के बाद आत्मा 'पुष्पोदका' नामक एक और नदी के पास पहुंच जाती है जिसका जल स्वच्छ होता है और जिसमें कमल के फूल खिले रहते हैं। इसी नदी के किनारे छायादार बड़ का एक वृक्ष है, जहां आत्मा थोड़ी देर विश्राम करती है। यहीं पर उसे उसके पुत्रों या परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण का भोजन मिलता है जिससे उसमें पुन: शक्ति का संचार हो जाता है। पुराणों के अनुसार यमलोक एक लाख योजन क्षेत्र में फैला और इसके चार मुख्य द्वार हैं। इसमें से दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। यह घोर अंधकार और भयानक सांप और सिंह से घिरा रहता है। पश्चिम का द्वार रत्नों से जड़ित है। इस द्वार से ऐसे जीवों का प्रवेश होता है जिन्होंने तीर्थों में प्राण त्यागे हो। उत्तर का द्वार भिन्न-भिन्न स्वर्ण जड़ित रत्नों से सजा होता है, जहां से वही आत्मा प्रवेश करती है जिसने जीवन में माता-पिता की खूब सेवा की हो और जो हमेशा सत्य बोलता रहा हो। पूर्व का द्वार हीरे, मोती, नीलम और पुखराज जैसे रत्नों से सजा होता है। इस द्वार से उस आत्मा का प्रवेश होता है, जो योगी, ऋषि, सिद्ध या संबुद्ध है।यमराज के मंत्र
ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात्।

यम राज के अन्य नाम
धर्मराज
मृत्यु देव
अन्तक
वैवस्वत
काल
सर्वभूतक्षय
औदुभ्बर
दघ्न
नील
परमेष्ठी
वृकोदर
चित्र
चित्रगुप्त
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