
सूर्य
नवग्रहों का पहला ग्रह रवि यानि सूर्य होते हैं। यह सप्ताह के पहले दिन यानि रविवार को संबोधित करते हैं। भगवान सूर्य का मूल अंक 1 होता है जो गिनती का भी पहला अंक हैं। जिसके कारण रवि ग्रह की महत्वता अपने आप बढ़ जाती है। बाकी सभी ग्रह रवि की ही परिकर्मा करते हैं। सूर्य सभी ग्रहों का केंद्र है और पूरे नौ ग्रह अपनी कक्षा में चलते हें। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। अत: कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। सूर्य यानि रवि उन ग्रहों में से प्रमुख हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रुप से देखा जा सकता है। सूर्य का अनुसरण शैव एवं वैष्णव मत के अनुयानि भी करते हैं। भारवर्ष में सूर्य पूजा का विशेष प्रावधान हैं। ज्योतिष में सूर्य को राजा की पदवी प्रदान की गयी है। ज्योतिष के अनुसार सूर्य आत्मा एवं पिता का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य द्वारा ही सभी ग्रहों को प्रकाश प्राप्त होता है और ग्रहों की इनसे दूरी या नजदीकी उन्हें अस्त भी कर देती है। सूर्य सृष्टि को चलाने वाले प्रत्यक्ष देवता का रूप हैं। कुंडली में सूर्य को पूर्वजों का प्रतिनिधि भी माना जाता है। सूर्य पर किसी भी कुंडली में एक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने पर उस कुंडली में पितृ दोष का निर्माण हो जाता है। व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य प्रधान जातक कार्यक्षेत्र में कठोर अनुशासन अधिकारी, उच्च पद पर आसीन अधिकारी, प्रशासक, समय के साथ उन्नति करने वाला, निर्माता, कार्यो का निरीक्षण करने वाला बनता है। बारह राशियों में से सूर्य मेष, सिंह तथा धनु में स्थित होकर विशेष रूप से बलवान होता है तथा मेष राशि में सूर्य को उच्च का माना जाता है। मेष राशि के अतिरिक्त सूर्य सिंह राशि में स्थित होकर भी बली होते हैं। यदि जातक की कुंडली में सूर्य बलवान तथा किसी भी बुरे ग्रह के प्रभाव से रहित है तो जातक को जीवन में बहुत कुछ प्राप्त होता है और स्वास्थ्य उत्तम होता है। सूर्य बलवान होने से जातक शारीरिक तौर पर बहुत चुस्त-दुरुस्त होता है।सूर्य ग्रह की उत्पति एवं असर
सूर्य यानि सौर देवता, आदित्यों में से एक हैं। इनके पति कश्यप और उनकी माता अदिति हैं। भगवान सूर्य बल के देवता हैं। इनके रथ को सात घोड़े खींचते हैं जो मनुष्य के सात चक्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान सूर्य का दिन रविवार है। सूर्य को वैष्णव द्वारा सूर्य नारायण कहा जाता है। शैव धर्मशास्त्र में, सूर्य को शिव के आठ रूपों में से एक कहा जाता है, जिसका नाम अष्टमूर्ति है। उन्हें सत्व गुण का माना जाता है और वे आत्मा, राजा, ऊंचे व्यक्तियों या पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य की अधिक प्रसिद्ध संततियों में हैं शनि , यम और कर्ण हैं। माना जाता है कि गायत्री मंत्र या आदित्य हृदय मंत्र (आदित्यहृदयम) का जप भगवान सूर्य को प्रसन्न करता है। सूर्य के साथ जुड़ा अन्न है गेहूं है। इनके बाल और हाथ सोने के हैं। सूर्य देव के रथ को 7 घोड़े खींचते हैं। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य जिस दिशा में उगते हैं वो पूर्व की दिशा होती है और जहां से अस्त होते हैं वो पश्चिम की दिशा होती है। सूर्य के उदय होने से ही प्राणी जनों के लिए सवेरा होता है और ढलने से रात होती है। सूर्य का मनुष्य के जीवन में अत्य़ाधित महत्व है। कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य शुभ फल देने वाला होता है। सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है। पहला घर सूर्य का ही होता है, इसलिए सूर्य का इस घर में होना अत्यंत शभ फलदायक होता है। सूर्य के विपरित होने पर - सिर दर्द,बुखार, नेत्र विकार,मधुमेह,मोतीझारा,पित्त रोग,हैजा,हिचकी के रोग से व्यक्ति पीड़ित हो जाता है। सूर्य को प्रसन्न करने के लिए बिना किसी से पूंछे ही मंत्र जाप, रत्न या जडी बूटी का प्रयोग कर लेना चाहिये। इससे रोग हल्का होगा और ठीक होने लगेगा। सूर्य की राशि लग्न में हो, या सूर्य लग्न बली होकर लग्न भाव में अथवा व्यक्ति की जन्म राशि सूर्य की राशि हो, तो व्यक्ति की आंखे, शहद के रंग की आंखें, शीघ्र ही क्रोधित होने वाला, कमजोर दृ्ष्टि वाला, कद में औसत होता है। सूर्य शरीर में पित्त, वायु, हड्डियां, घुटने और नाभी का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य के कारण व्यक्ति को ह्रदय रोग, हड्डियों का टूटना, माइग्रेन, पीलिया, ज्वर, जलन, कटना, घाव, शरीर में सूजन, विषाक्त, चर्म रोग, कोढ, पित्तीय संरचना, कमजोर दृष्टि, पेट, दिमागी, गडबडी, भूख की कमी जैसे रोग प्रभावित कर सकते हैं। सूर्य देव की प्रसन्नता के लिए इन्हें नित्य अर्घ्य देना चाहिए।प्रतिदिन एक निश्चित संख्या में सूर्य मंत्र का जप करना चाहिए। सूर्य के लिए गेहूं, तांबा, रुबी, लाल वस्त्र, लाल फूल, चन्दन की लकडी, केसर आदि दान किये जा सकते है। सृष्टि में सबसे पहले सूर्यस्वरूप प्रकट हुए इसलिए इनका नाम आदित्य पड़ा। सूर्य का एक अन्य नाम सविता भी है। इन्हें दिनकर, रवि, आदित्य, भास्कर इत्यादि नाम से भी संबोधित किया जाता है।सूर्य मंत्र
* मंत्र 'ॐ घृणि सूर्याय नम:' है।सूर्य का वैदिक मंत्र
"ऊँ आसत्येनरजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतंच ।हिरण्येन सविता रथेनादेवी यति भुवना विपश्यत ।।"
सूर्य गायत्री मंत्र
ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।सूर्य बीज मंत्र
ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: ऊँ भूभुर्व: स्व: ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतम्मर्तंच। हिण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: ह्रौं ह्रीं ह्रां ऊँ सूर्याय नम: ॥सूर्य जप मंत्र
ऊँ ह्राँ ह्रीँ ह्रौँ स: सूर्याय नम:सूर्य नवग्रह मंत्र
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।।
सूर्य
चंद्रमा
मंगल
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राहू
केतु
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