मंगल का स्वरुप
मंगल के सवरुप को एक क्रोधित ग्रह के रुप में वर्णित किया जाता है। जिनका रंग लाल होता है। मंगल सप्ताह के दिन मंगलवार का शासक होता है। हिन्दू धर्म के अनुसार मंगल ग्रह को मंगल देव का प्रतिनिधित्व माना जाता है, जो एक युद्ध के देवता है। संस्कृत में इन्हें भौम अर्थात भूमि का पुत्र कहा गया है। शास्त्रों में मंगल देव के स्वरूप का वर्णन करते हुए उनकी चार भुजाएँ बतायी गई हैं। वह अपने एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में गदा, तीसरे हाथ में कमल तथा चौथे हाथ में शूल लिए हुए हैं। इसके साथ ही मंगल ग्रह का संबंध हनुमान जी भी है। मंगलवार के जातक हनुमान जी का व्रत धारण करते हैं। हनुमान जी अपने भक्तों की भूत-पिशाच से रक्षा करते हैं। मंगल ग्रह की सवारी भेड़ होती है। यह तीन नक्षत्रों मृगशिरा, घनिष्ठा एवं चित्रा के स्वामी हैं। लाल रंग के कारण, मंगल को संस्कृत में 'अंगारका' भी कहा जाता है।मंगल की उत्पति
मंगल ग्रह की उत्पति से संबधित कथा हिन्दू पुराणों में वर्णिँत है। कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या में लीन थे। जिसके कारण उनके लालाट यानि माथे के पसीने की तीन बूंदे धरती पर गिर गईं थी। । इन बूंदों से पृथ्वी ने एक सुंदर और प्यारे बालक को जन्म दिया, जिसकी चार भुजाएं थीं और वय रक्त वर्ण का था। इस पुत्र को पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरु किया। तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया। कुछ बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया। मंगल लोक शुक्र लोक, शुक्र के निवास स्थान से भी ऊपर स्थित था। यही भौम सूर्य के परिक्रमा करते ग्रहों में मंगल ग्रह के स्थाण पर सुशोभित हुआ। इसलिए मंगल ग्रह की छवी पृथ्वी से काफी मिलती है। पृथ्वी का पुत्र होन के कारण मंगल पृथ्वी के समान ही दिखाई पड़ते हैं।मंगल का जीवन पर असर
मंगल ग्रह मनुष्यों के जीवन पर बहुत असर डालता है। ज्योतिष शास्त्र में मंगल को सेनापति माना गया है। जिनकी कुंडली में मंगल शुभ स्थिति में होते हैं, वे उच्च स्तरीय साहसिक कार्य करते हैं, मंगल की प्रधानता वाले जातक साहसी, स्वस्थ और आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। ये अपने सिद्धांतों एवं निर्णयों पर अडिग रहते हैं। मेष, मंगल, वृश्चिक राशि के स्वामी होते हैं। लग्न कुंडली के दशम भाव में मंगल विशिष्ट माने गए हैं। सेना, पुलिस, जमीन, डॉक्टरी अध्ययन एवं हथियार संचालन इनके विषय हैं। हमारे शास्त्रों में मंगल को भूमि पुत्र भी कहा गया है। मकर राशि में 28 डिग्री अंश पर उच्च के तथा इन्हीं अंशों पर कर्क राशि में नीच के कहलाते हैं। दशम भाव सबसे बली भाव है, तो तृतीय एवं छठे भाव में भी यह कारक होते हैं। सूर्य, चंद्र, बृहस्पति इनके मित्र ग्रह हैं एवं इनके साथ युति शुभ मानी गई है जबकि बुध एवं राहु इनके शत्रु हैं। इनके विपरीत यदि मंगल नीच के हैं या पाप ग्रहों से प्रभावित होते हैं तो जातक के हिंसात्मक कार्यों में लिप्त होने की संभावनाएं पाई जाती हैं। चौथे भाव के मंगल शास्त्रों में अशुभ माने गए हैं। विवाह प्रकरणों में मंगल की विशेष भूमिका होती है। जिन जातकों के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में मंगल हो, तो ऐसे जातक को मांगलिक कहा जाता है एवं इनके रिश्ते उसी जातक से किए जाते हैं जो मांगलिक हो। यद्यपि शास्त्रों में मांगलिक दोषों का परिहार भी बताया गया है परंतु इसकी जांच विज्ञ-ज्योतिषी से करा कर ही संबंध तय करने चाहिएं। मंगल प्रधान जातकों का भाग्योदय देरी से होता है। यदि कोई जातक शारीरिक व्याधियों से ग्रसित रहता है, ऋण ग्रस्तता, जिगर के रोग, होंठ निरंतर फटना या नीचे के होंठ का फटना आदि हों तो समझें मंगल उचित परिणाम नहीं दे रहे हैं। भाइयों से आपसी विवाद, अचल संपत्ति को लेकर झगड़ा-फसाद या न्यायिक प्रक्रिया में उलझना, अग्रि प्रकोप आदि अशुभ मंगल के कारण होता मंगल पित्त कारक है। यह अत्यंत उग्र है एवं उत्तेजना पैदा करता है। यह सिर, मज्जा, पित्त, हीमोग्लोबिन तथा गर्भाशय का नियमन करता है। अत: इससे संबंधित सभी रोग मंगल के प्रकोप से होते हैं। मंगल दुर्घटना, चोट, मोच, जलन, शल्यक्रिया, उच्चरक्तचाप, पथरी, हथियारों एवं विष से क्षति देता है।मंगल के कारण ही गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली,रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग,रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर,दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर,अग्निदाह, चोट इत्यादि रोग होते हैंमंगल शांति उपाय
यदि किसी जातक को मंगल ग्रह के विपरीत परिणाम प्राप्त हो रहे हों तो उनकी अशुभता को दूर करने के लिए मंगल शांति के कार्य करने चाहिए। जिसके लिए सर्वप्रथम मंगल के देवता हनुमान जी के मंदिर में लड्डू या बूंदी का प्रसाद वितरण करना चाहिए। हनुमान चालीसा, हनुमत-स्तवन, हनुमद्स्तोत्र का पाठ करें। विधि-विधानपूर्वक हनुमान जी की आरती एवं शृंगार करें। हनुमान मंदिर में गुड़-चने का भोग लगाएं। शिव के पुत्र होने के नाते मंगल को प्रसन्न करने के लिए शिव की पूजा करना भी लाभदायक होता है। मंगल को शुभ करने के लिए पितरों का आशीर्वाद लें। लाल कनेर के फूल, रक्त चंदन आदि डाल कर स्नान करें। मूंगा, मसूर की दाल, ताम्र, स्वर्ण, गुड़, घी, जायफल आदि दान करें, मंगल यंत्र बनवा कर विधि-विधानपूर्वक मंत्र जप करें और इसे घर में स्थापित करें, मूंगा धारण करें। एवं मंगल के मंत्रों का जाप करें।मंगल से जुड़े तत्व
रंगः लालधातुः पीतल
रत्नः लाल
दिशाः दक्षिण
तत्वः आग
ऋतुः ग्रीष्मकालीन
नक्षत्रः मृगशिषा, चित्रा, घनिष्ठा
गृह संबधः मंगल सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति के अनुकूल है, बुध के प्रति शत्रुतापूर्ण, शुक्र और शनि के तटस्थ है।
मंगल मंत्र
ॐ अंगारकाय नम:।’ॐ अंङ्गारकाय विद्यमहे, शक्ति हस्ताय’ धीमहि, तन्नौ भौम: प्रचोदयात्।।
मंगल का गायत्री मंत्र
ऊँ क्षिति पुत्राय विदमहे लोहितांगाय धीमहि-तन्नो भौम: प्रचोदयातनवग्रह मंगल मंत्र
"धारनीगरभा संधूत विद्याध कांती समप्रभाम।कुमारराम शक्तिथस्थम चा मंगलम प्राणामामहम "।।
मंगल का वैदिक मंत्र
ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्।अपां रेतां सि जिन्वति।।
मंगल का तांत्रिक मंत्र
ॐ अं अंङ्गारकाय नम:मंगल का बीज मंत्र
ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमःTo read this article in English Click here