हिन्दू धर्म में नवग्रहों की बहुत मान्यता है। नवग्रहों को ध्यान में रखकर ही मनुष्यगण कोई भी कार्य का प्रारंभ करते हैं। एक व्यक्ति के जीवन पर इन नवग्रहों का बहुत प्रभाव पड़ता है। यह नवग्रह उसके शुभ एवं अशुभ फलों को प्रदान करते हैं उसके जीवन की दिशा व दशा तय करते हैं। इन्हीं नवग्रहों में से सातवें ग्रह के रुप में शनि को जाना जाता है। शनि ग्रह को शनि देव के रुप में माना जाता है। शनि देव नवग्रह के सातवें एवं सबसे श्रेष्ठ ग्रह है। शनि का नाम सुनते ही मनुष्य से लेकर देवता तक कांप उठते हैं। शनि को कर्मफलदाता एवं न्यायप्रिय देवता कहा जाता है। शनि देव को समर्पित दिन शनिवार है जिस दिन शनिदेव की विशेष रुप से पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में शनि ग्रह शनि देव के रूप में पूजा जाता है। पौराणिक शास्त्रों में शनि को सूर्य देव का पुत्र माना गया है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि सूर्य ने श्याम वर्ण के कारण शनि को अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया था। तभी से शनि सूर्य से शत्रु का भाव रखते हैं। हाथी, घोड़ा, मोर, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा, गिद्ध और कौआ शनि की सवारी हैं। शनि इस पृथ्वी में सामंजस्य को बनाए रखता है और जो व्यक्ति के बुरे कर्म करता है वह उसको दण्डित करता है। हिन्दू धर्म में शनिवार के दिन लोग शनि देव की आराधना में व्रत धारण करते हैं तथा उन्हें सरसों का तेल अर्पित करते हैं। खगोल विज्ञान के अनुसार शनि एक ऐसा ग्रह है जिसके चारो ओर वलय (छल्ला) हैं। यह सूर्य से छठा तथा सौरमंडल में बृहस्पति के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह पीले रंग का ग्रह। शनि के वायुमंडल में लगभग 96 प्रतिशत हाइड्रोजन और 3 प्रतिशत हीलियम गैस है। शनी शब्द संस्कृत के शनैः से बना है जिसका अर्थ धीरे-धीरे चलना होता है। शनि को सूर्य का परिक्रमण करने में 30 वर्ष का समय लग जाता है। ज्योतिष में शनि ग्रह का बड़ा महत्व है। हिन्दू ज्योतिष में शनि ग्रह को आयु, दुख, रोग, पीड़ा, विज्ञान, तकनीकी, लोहा, खनिज तेल, कर्मचारी, सेवक, जेल आदि का कारक माना जाता है। यह मकर और कुंभ राशि का स्वामी होता है। तुला राशि शनि की उच्च राशि है जबकि मेष इसकी नीच राशि मानी जाती है। शनि का गोचर एक राशि में ढ़ाई वर्ष तक रहता है। ज्योतिषीय भाषा में इसे शनि ढैय्या कहते हैं। शनि की दशा साढ़े सात वर्ष की होती है जिसे शनि की साढ़े साती कहा जाता है। जो व्यक्ति के जीवन में बहुत अहम होती है। शनि की ढैय्या एवं साढेसाती से बचने के लिए मनुष्य गण शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय करते हैं। शनि को शनैश्वर एवं शनिदेव इत्यादि कई नामों से भी जाना जाता है। शनि ग्रह के नाम से भारतवर्ष मे कई मदिंर प्रचलित हैं।
शनि

शनि देव की उत्पति

हिन्दू पुराणों में शनिदेव के जन्म को लेकर कथा प्रचलित है। स्कंदपुराण अनुसार राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था जिसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी। संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानों ने जन्म लिया। लेकिन संज्ञा सूर्य के ताप को ज्यादा दिन सहन नहीं कर पाई और अपनी अक्श छाया को पति के पास छोड़कर जंगल में घोड़ी का रुप धारण कर तपस्या करने चली गई। छाया से सूर्यदेव को शनि के रुप में पुत्र प्राप्त हुआ क्योंकि छाया गर्भावस्था के दौरान भगवान शिव की तपस्या में लीन रहती थी और खान-पान पर ध्यान नहीं देती थी जिसके तप से शनि देव का व्रण काला हुआ। जब शनिदेव का जन्म हुआ तो रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रूक गयी। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव अपने किये का पश्चाताप करने लगे और अपनी गलती के लिये क्षमा याचना कि इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। लेकिन पिता पुत्र का संबंध जो एक बार खराब हुआ फिर नहीं सुधरा आज भी शनिदेव अपने पिता सूर्य के विरोधी हैं। भगवान शिव की कठीन तपस्या करने के कारण शिव ने प्रसन्न होकर शनि को न्याय और कर्म का देवता बना दिया। शनि को नवग्रहों में श्रेष्ठ स्थान दिया गया।

शनि का स्वरुप

मत्स्य पुराण के अनुसार शनि की कांति इंद्रनीलमणि जैसी है। कौआ उसका वाहन है। उसके हाथों में धनुष बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा हैं। शनि का विकराल रूप भयानक है। वह पापियों के संहार के लिए उद्यत रहता है। शनि देव लम्बे पतले शरीर वालें, रंग में पीलापन लिए होता है. लम्बे और मुडे हुए नाखून, बडे बडे दांत, वाररोग, आलसी,रुखे उलझे बाल वाले है. शनि देव वायु तत्व रोग, पित्त प्रधान, गर्दन, हड्डियां, दान्त, प्रदूषण के कारण होने वाले रोग, मानसिक विक्षेप, पेट के रोग, चोट, आघात, अंगहीन, कैन्सर, लकवा, गठिया, बहरापन,लम्बी अवधि के रोग देता है। शास्त्रों में वर्णन है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी और पुरुष प्रधान ग्रह है। इसका वाहन गिद्ध है। शनिवार इनका दिन है। स्वाद कसैला तथा प्रिय वस्तु लोहा है। शनि मकर और कुंभ राशियों के स्वामी तथा मृत्यु के देवता है। यह ब्रह्म ज्ञान के भी कारक है, इसीलिए शनि प्रधान लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हैं। शनि एक मात्र ऐसे ग्रह है जो मोक्ष दिला सकता हैं।

शनि देव का जीवन पर प्रभाव

कुछ ग्रंथों में, शनि देव को कृष्णृष्टि (बुरी आंखों वाला) भी कहा जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि प्रथम भाव में हो वह व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है। यदि शनि अशुभ फल देने वाला है तो व्यक्ति रोगी, गरीब और बुरे कार्य करने वाला होता है। जिन जातकों के जन्म काल में शनि वक्री होता है वे भाग्यवादी होते हैं। उनके क्रिया-कलाप किसी अदृश्य शक्ति से प्रभावित होते हैं। वे एकांतवासी होकर प्रायः साधना में लगे रहते हैं।धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि में शनि वक्री होकर लग्न में स्थित हो तो जातक राजा या गांव का मुखिया होता है और राजतुल्य वैभव पाता है। शनि की स्थिति यदि शुभ है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति और उन्नति करता रहता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। व्यक्ति के बाल और नाखून मजबूत होते हैं। शनि न्यायप्रिय देव है वो व्यक्तियो को उनके क्रमों के अनुसार फल देते हैं। शनि की कृपा होने मनुष्य रंक से राजा बन जाता है और वहीं उनकी कू-दृष्टि पड़ने से राजा से रंक बन जाता है। शनि कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं करते। शनि के शुभ होने वाला व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज में उसका मान-सम्मान खूब रहता हैं। धन की किसी भी प्रकार से कभी नहीं रहती और व्यक्ति हर तरह की घटना-दुर्घटना से बचा रहता है।
वहीं दूसरी ओर शनि की कू-दृष्टि पड़ने के पीछे मनुष्य जनो के पूर्व के बुरे कर्म होते हैं। शनि व्यर्थ में किसी को परेशान नहीं करते। यदि शरीर में थकान का एहासास होने लगे या साफ-सफाई नहाने धोने में मन ना लगे तो यह शनि का प्रकोप होता है। शनि के प्रकोप के कारण नए कपड़े जल्दी फटने लगते है। व्यक्ति को भारी आर्थिक नुकसान होने लगता है। घर में तेल, दाल की बर्बादी होने लगती है। भोजन ग्रहण करने में मन नहीं लगता। सिर में दर्द रहने लगता है। घर की वायव्य दिशा के खराब होने से शनि भी खराब हो जाता है। जुआ खेलना, शराब पीना, पराई स्त्री से संबध रखना, भोग-विलास में लिप्त रहना भी शनि को क्रोधित करता है। किसी की चुगली करना, झूठ बोलना, भगवान की पूजा ना करना भी शनि के क्रोध का कारण है। शनि के अशुभ हने से व्यक्ति बीमार रहने लगता है। समय पूर्व आंखें कमजोर होने लगती हैं, बाल झड़ जाते हैं। कनपटी की नसों में दर्द बना रहता है। अनावश्यक चिंता और घबराहट बढ़ जाती है। हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, तब जोड़ों का दर्द भी पैदा हो जाता है।

शनि शांति उपाय

शनि की ढैय्या एवं साढेसाती तथा उसके अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए शनि देव की अराधना करनी चाहिए। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ और जूता दान देना चाहिए। कुत्ते और कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलानी चाहिए। घर एवं अपने शरीर की साफ-सफाई रखनी चाहिए। शनिवार के दिन सरसों के तेल का दान करना चाहिए। एवं शनिदेव के मंदिर में सरसों के तेल का दीप जलाना चाहिए। चींटियों को प्रतिदिन खाना खिलाना चाहिए। विकलागों की मदद करनी चाहिए। कटु वचन नहीं बोलना चाहिए। शनिवार के दिन उड़द दाल की खिचड़ी खाने से भी शनि दोष के कारण प्राप्त होने वाले कष्ट में कमी आती है। मंगलवार के दिन हनुमानजी के मंदिर में तिल का दीया जलाने से भी शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। शनि देव हिंदू शास्त्रों में सबसे बड़ी परेशानी देने वाले के साथ-साथ महानतम शुभचिंतक के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि विशेष प्रार्थना और अनुष्ठान शनि देव के बुरे प्रभाव से बचने में मदद करते हैं। शनि की बुरी दशा चल रही है तो आप शनि-शांति के लिए महामृत्युंजय जाप, शनि मंत्र का जाप, काली चालीसा, श्रीदुर्गा सप्तशती का अर्गला स्तोत्र का पाठ का जाप, शनि चालीसा, शनि स्तोत्र का पाठ, सात बार या तीन बार हनुमान चालीसा, सुंदरकांड का पाठ, हनुमानजी की काले तिलों से पूजा, शनि मंत्र व हनुमानजी का मंत्र कर सकते हैं. शनि की बुरी दशा चलने पर कुंडली दिखाकर नीलम धारण करने की बात भी कही जाती है, खत्म करने के लिए चावल, तिल, उड़द, लोहा, तेल, काले वस्त्र, गुड, खाना, रोटी, तिल लड्डू, काला चना, लोहे की कोई वस्तु दान करें इससे आपको लाभ शनि देव को खुश करने के लिए गाय और कुत्ते को रोटी खिलाएं. चींटी को आंटा और शक्कर खिलएं. साथ ही गरीबों की सेवा करें.मांस-मदिरा का सेवन न करना, प्रत्येक शनिवार को वट और पीपल वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पूर्व कड़वे तेल का दीपक जलाकर शुद्ध कच्चा दूध एवं धूप अर्पित करना भी शनिदेव के प्रकोप से बचाता है एवं उन्हें प्रसन्न करता है। ।

शनि से जुड़े तत्व

रंगः काला,नीला
दिनः शनिवार
दिशाः पश्चिम दिशा
वाहनः कौवा
ग्रह संबधः बुध व शुक्र शनि के मित्र ग्रह हैं। सूर्य,चन्द्र तथा मंगल शनि के शत्रु ग्रह माने जाते हैं, शनि के साथ गुरु सम संबन्ध रखता है।
राशि स्वामित्वः मकर व कुम्भ
ईष्ट देवः ब्रह्मा एवं शिव का
नक्षत्रः नीलम

शनि के अन्य नाम

कोणस्थ,पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मन्द, पिप्पलाश्रय

शनि मंत्र

|| ओम प्रम प्रीम प्रोम साहा शनय नामहा ||
|| ओम खम खेम खोम साहा शनय नामहा ||

शनि का नवग्रह मंत्र

ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शं योरभि स्त्रवन्तु न:।।

शनि का तांत्रिक मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नमः।।

शनि का बीज मंत्र

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।

शनि गायत्री मंत्र

ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि !
तन्नो मन्दः प्रचोदयात !
ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि !
तन्न: सौरि: प्रचोदयात !

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