हिन्दू धर्म के अनुसार नवग्रहों की व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वता है। व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना ग्रहों के चाल का परिणाम होता है। केवल, प्रकृति ही नहीं अपितु व्यक्ति का जीवन और उसका व्यवहार भी ग्रहों की चाल से प्रभावित होता है। ग्रहों का असर व्यक्ति के जीवन पर बहुत अच्छे या बुरे प्रभाव डालता है। जहां एक तरफ ग्रहों की अच्छी चाल का जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है वहीं ग्रहों के प्रतिकूल होने पर व्यक्ति के जीवन में परेशानियाँ आने लगती है। ग्रहों की अशुभ स्थिति ग्रह दोष जैसी समस्याएं लेकर आती है। ग्रह की अच्छी स्थिति व्यक्ति को बलवान बनाती है लेकिन निर्बल ग्रह की स्थिति व्यक्ति को सम्पत्ति हीन और दुर्बल बनाती है। इन्हीं ग्रहों में से एक शुक्र ग्रह। शुक्र ग्रह का संस्कृत भाषा में एक अर्थ है शुद्ध एंव स्वच्छ। भृगु ऋषि के पुत्र शुक्र ग्रह दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य का प्रतिनिधित्व करता है। भागवत पुराण में लिखा गया है कि शुक्र महर्षि भृगु ऋषि के पुत्र हैं और बचपन में इन्हें कवि या भार्गव नाम से भी जाना जाता था। शास्त्रों में शुक्र देव के रूप का वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है - शुक्र श्वेत वर्ण के हैं और ऊँट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार होते हैं। इनके हाथों में दण्ड, कमल, माला और धनुष-बाण भी है। शुक्र ग्रह का संबंध धन की देवी माँ लक्ष्मी जी से है, इसलिए हिन्दू धर्म के अनुयायी धन-वैभव और ऐश्वर्य की कामना के लिए शुक्रवार के दिन व्रत धारण करते हैं। सौरमंडल में शुक्र को छठा ग्रह माना जाता है। खगोलिय पिंड के अनुसार शुक्र एक प्रत्यक्ष ग्रह है। आकाश में शुक्र ग्रह को आसानी से देखा जा सकता है। इसे संध्या और भोर का तारा भी कहते हैं। आकाश में सबसे तेज चमकदार तारा शुक्र ही है। ज्योतिष और वैज्ञानिकों का मानना है कि शुक्र की किरणों का हमारे शरीर और जीवन पर अकाट्य प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार ग्रहीय स्थिति दशा होती है, जिसे शुक्र दशा कहा जाता है। यह जातक पर 20 वर्षों के लिये सक्रिय होते है। यह किसी भी ग्रह दश से लंबी होती है। इस दशा में जातक की जन्म-कुण्डली में शुक्र सही स्थाण पर होने से उसे कहीं अधिक धन, सौभाग्य और विलासिता सुलभ हो जाती है। इसके अलावा कुण्डली में शुक्र अधिकतर लाभदायी ग्रह माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मीन राशि में स्थित शुक्र को उच्च का शुक्र भी कहा जाता है। मीन राशि के अतिरिक्त शुक्र वृष तथा तुला राशि में स्थित होकर भी बलशाली हो जाते हैं जो कि इनकी अपनी राशियां हैं। कुंडली में शुक्र का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बना देता है तथा उसकी इस सुंदरता और आकर्षण से सम्मोहित होकर लोग उसकी ओर खिंचे चले आते हैं तथा विशेष रूप से विपरीत लिंग के लोग। शुक्र के प्रबल प्रभाव वाले जातक शेष सभी ग्रहों के जातकों की अपेक्षा अधिक सुंदर होते हैं। शुक्र को हिन्दू कैलेण्डर के ज्येष्ठ माह का स्वामी भी माना गया है। यह कुबेर के खजाने के रक्षक माने गए हैं। यदि शुक्र की स्थिति खराब होती है तो व्यक्ति को धन-धान्य की हानी होती है। गुप्त रोग इत्यादि परेशानियों से गुजरना पड़ता है। इसलिए शुक्र का सही रहना व्यक्ति के जीवन में अत्यंत आवश्यक है।
शुक्र ग्रह

शुक्र की उत्पति

पुराणों के अनुसार शुक्र ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि के पुत्र है। भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिस से धाता ,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ| भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए| महर्षि अंगिरा के पुत्र जीव तथा महर्षि भृगु के पुत्र कवि समकालीन थे |यज्ञोपवीत संस्कार के बाद दोनों ऋषियों की सहमति से अंगिरा ने दोनों बालकों की शिक्षा का दायित्व लिया| अंगिरा अपने पुत्र जीव की शिक्षा कि ओर विशेष ध्यान देने लगे व कवि कि उपेक्षा करने लगे|कवि ने इस भेदभाव पूर्ण व्यवहार को जान कर अंगिरा से अध्ययन बीच में ही छोड़ दिया और गौतम ऋषि के पास पहुंच कर उनसे शिक्षा ग्रहण की। महर्षि गौतम के उपदेशानुसार कवि ने गोदावरी के तट पर शिव की कठिन आराधना की| स्तुति व आराधना से प्रसन्न हो कर महादेव ने कवि को मृतसंजीवनी नामक विद्या प्रदान की। जिससे मरे हुए व्यक्ति को भी जीवित किया जा सकता था। साथ ही कवि को शुक्र देव के रुप में ग्रह की दर्जा दिया गया। संजीवनी विद्या प्राप्त कर कवि दानवों के गुरु बन गए और देवो द्वारा उन्हें मारे जाने पर वो फिर से दावनों को जीवित करने लगे जिससे तंग आकर देव महादेव के सामने गए और अपनी व्यथा सुनाने लगे। जिसे महादेव ने कवि को अपने मुख से निगल लिया। किन्तु बार-बार तपस्या करने से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें अपने शिशन से बाहर निकाल दिया। और कहा कि आज से तुम शुक्र के नाम से जाने जाओगे। तब से कवि शुक्राचार्य के नाम से विख्यात हुए|
वहीं ज्योतिष शास्त्रों में एक और कथा प्रचलित है कि जब भगावन विष्णु बामन अवतार लेकर बली से दान लेने आए तो शुक्राचार्य ने दान देने वाले कलश में सूक्ष्म रुप से घूस गए। संकल्प विरोचन कुमार बलि जल से भरा कलश हाथ में ले कर करने लगे| पर कलश के मुख से जल कि धारा नहीं निकली| भगवान विष्णु समझ गए कि कुलगुरु शुक्राचार्य अपने शिष्य का हित साधने के लिए सूक्ष्म रूप में कलश के मुख में स्थित हो कर बाधा उपस्थित कर रहे हैं| उन्हों ने एक तिनका उठा कर कलश के मुख में दाल दिया जिस से शुक्र का एक नेत्र नष्ट हो गया और उस ने कलश को छोड दिया |कलश से जलधारा बह निकली| तभी से शुक्राचार्य को एक नेत्र का भी कहा जाता है।

शुक्र का स्वरुप

हिन्दू मान्यतानुसार शुक्र का वर्ण श्वेत है| गले में माला है| उनके चारों हाथों में दण्ड,रुद्राक्ष की माला ,पात्र व वर मुद्रा है |शुक्र की जलीय प्रकृति है । इनको ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। ये हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं। स्कन्द पुराण में शुक्र को वर्षा लाने वाला ग्रह कहा गया है| दैत्यों का गुरु होने के कारण इनकी भोग विलास की प्रकृति है|

शुक्र ग्रह का जीवन पर असर

शुक्र को एक शुभ ग्रह के रुप में पूजा जाता है। सभी शुभ काम शुक्र को देखकर किए जाते हैं। शुक्र एक रचनात्मक ग्रह है।यह कलात्मक प्रतिभा, शारीरिक और भौतिक जीवन, विपरीत लिंग, खुशी और प्रजनन, स्त्री गुण और संगीत और नृत्य जैसे सभी रचनात्मक कार्यों का प्रतिनिधित्व करता है। अगर शुक्ल प्रसव के चार्ट में मजबूत है, तो व्यक्ति सराहनीय प्रकृति होगी और सुखद रिश्ते का आनंद उठाएगा। शुक्र भरानी, पुरा फाल्गुनी और पुरा अशधा नक्षत्रों या चंद्र मकानों के स्वामी है। शुक्र स्त्रीग्रह, कामेच्छा, वीर्य, प्रेम वासना, रूप सौंदर्य, आकर्षण, धन संपत्ति, व्यवसाय आदि सांसारिक सुखों के कारक है। गीत संगीत, ग्रहस्थ जीवन का सुख, आभूषण, नृत्य, श्वेत और रेशमी वस्त्र, सुगंधित और सौंदर्य सामग्री, चांदी, हीरा, शेयर, रति एवं संभोग सुख, इंद्रिय सुख, सिनेमा, मनोरंजन आदि से संबंधी विलासी कार्य, शैया सुख, काम कला, कामसुख, कामशक्ति, विवाह एवं प्रेमिका सुख, होटल मदिरा सेवन और भोग विलास के कारक ग्रह शुक्र जी माने जाते हैं। सभी भोग-विलास एवं वैभव की वस्तुएं शुक्र के शुभ होने पर व्यक्ति को मिलती है। शुक्र के शुभ वाला व्यक्ति देखने में काफी आकर्षक होता है। जिन स्त्रियों का शुक्र उच्च होता है वो आकर्षक होती हैं। यह लोग फैशन, सिनमा जैसे पेशे से जुड़े होते हैं। किन्तु यदि शुक्र अशुभ हो तो व्यक्ति को आर्थिक कष्ट होता है। शुक्र के अशुभ होने पर स्त्री सुख में कमी, प्रमेह, कुष्ठ, मधुमेह, मूत्राशय संबंधी रोग, गर्भाशय संबंधी रोग और गुप्त रोगों की संभावना बढ जाती है और सांसारिक सुखों में कमी आती प्रतीत होती है। शुक्र के साथ यदि कोई पाप स्वभाव का ग्रह हो तो व्यक्ति काम वासना के बारे में सोचता है। पाप प्रभाव वाले कई ग्रहों की युति होने पर यह कामवासना भडकाने के साथ-साथ बलात्कार जैसी परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है। शुक्र के साथ मंगल और राहु का संबंध होने की दशा में यह घेरेलू हिंसा का वातावरण भी बनाता है। जब शुक्र खराब होता है तो किसी भी कारण से दांत खराब होने लगते है। पति-पत्नी में झगड़े होने शुरु हो जाते हैं। घर की दक्षिण-पूर्व दिशा के दूषित होने से भी शुक्र ग्रह खराब फल देने लगता है। शारीरिक रूप से गंदे बने रहने पर या गंदे-फटे कपड़े पहनने से भी शुक्र मंदा हो जाता है। घर की साफ-सफाई को महत्व न देने से भी शुक्र खराब हो जाता है। शुक्र के खराब होने से शरीर में त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न होने लगते हैं लगातार अंगूठे में दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठे का बेकार हो जाना शुक्र के खराब होने की निशानी है।

शुक्र शांति के उपाय

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शुक्र का शुभ होना बहुत आवश्यक है। शुभ शुक्र की शांति के लिए शुक्र से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए। जैसे चांदी, चावल, दूध, श्वेत वस्त्र आदि। शुक्र शांति के लिए दुर्गाशप्तशती का पाठ करना चाहिए। कन्या पूजन एवं शुक्रवार का व्रत करना चाहिए। लक्ष्मी की उपासना करने एवं शुक्रवार को व्रत रख खटाई न खाने से भी शुक्र प्रसन्न होते हैं। शुक्र को शांत करने के लिए हीरा भी धारण करना चाहिए। शुक्र के मंत्रों का जाप करना चाहिए। स्त्री का सम्मान करना चाहिए। घर को वास्तुनुसार बनाकर एवं गृह कलेश त्याग ने से भी शुक्र प्रसन्न होते हैं। सफेद वस्तुओं का दान करना भी शुभ होता है। गाय, कौवे व कुत्ते को खाना खिलाना भी शुभ माना जाता है। शुक्र को साफ-सफाई पंसद होती है। घर को सुचारु एवं साफ रखने से भी शुक्र देव की कृपा बनी रहती है।

शुक्र के अन्य नाम

भृगु, भार्गव, सित, सूरि, कवि, दैत्यगुरू, काण, उसना, सूरि, जोहरा आदि हैं।

शुक्र से जुड़े तत्व

ईष्ट देवताः इन्द्र
रंगः सफेद
धातु: चांदी
रत्न: हीरा
दिशा: दक्षिण-पूर्व
मौसम: वसंत
तत्व: पानी
वाहनः अश्व

शुक्र का नवग्रह मंत्र

ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।।

शुक्र का तांत्रिक मंत्र

ॐ शुं शुक्राय नमः

शुक्र का बीज मंत्र

ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः

शुक्र गायत्री मंत्र

ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्येदेहाय धीमहि !
तन्न: शुक्र : प्रचोदयात !

शुक्र स्तुति

शुक्रदेव तव पद जल जाता। दास निरन्तर ध्यान लगाता।।
हे उशना भार्गव भृगुनन्दन। दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन।।
भृगुकुल भूषण दूषण हारी। हरहू नेष्ट ग्रह करहु सुकारी।।
तुहि पण्डित जोषी द्विजराजा। तुम्हारे रहत सहत सब काजा।।

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