भगवान गौतम बुद्ध को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का दसवां अवतार माना जाता है। भगवान गौतम बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का अनुसरण करने का ज्ञान दिया। जिसका अर्थ था किसी भी चीज की ना अति होनी चाहिए ना वो क्षीण होना चाहिए। हमेशा मध्यम मार्ग का अमुसरण करके ही व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है। गौतम बुद्ध के अनुयायि दो वर्गों में विभक्त है एक हीनयान और एक महायान। गौतम बुद्ध को मानने वाले लोग मठों में रहते हैं। सन्यासियों के समान जीवन व्यतीत करते हैं। भगवान गौतम बुद्ध के जन्म और उनके ज्ञान प्राप्ति के दिन को बैसाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से पूरे भारत वर्ष सहित विश्व भर में मनाया जाता है। उनके अनुयायी आज भी बौद्ध धर्म का अनुसरण करते हैं। आज के युग में भी बौद्ध धर्म व्यापक रुप से फल-फूल रहा है।

गौतम बुध का जीवन परिचय
भगवाम गौतम बुद्ध के जन्म को लेकर काफी अनिश्चितता है किन्तु कई महानुभवों का मानना है कि भगवान गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व नेपाल में स्थित लुम्बिनी नामक गांव में हुआ था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने मायके देवदह जा रही थीं, तबी रास्त में उन्हें प्रसव पीड़ा होन लगी और वहीं वन में जो लुम्बिनी गांव में स्थित था उन्होंने भगवान गौतम बुद्ध को जन्म दिया। उनके जन्म के विषय में ऐसा कहा जाता है कि जब उनका जन्म हो रहा था तो सात हाथियों ने उनकी मां को घेर कर उनकी रक्षा की थी। भगवान गौतम बुद्ध के पिता कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन थे। अपने पुत्र के जन्म के सात दिन बाद ही महामाया की मृत्यु हो गई। तब राजा की छोटी रानी और गौतम बुद्ध की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया जिससे उनका नाम गौतम रखा गया। भगवान बुद्ध के जन्म का नाम सिद्धार्थ था जिसके लिए पंडितो ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो सिद्ध राजा बनेगा या सन्यासी। इस बात से चिंतित होकर उनके पिता शुद्धोधन ने सिद्धार्थ की महल से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी। महल में सिद्धार्थ को हर सुख-वैभव दिया गया। दुख से उन्हें कोसों दूर रखा गया। मात्र 16 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा से कर दिया गया जिनसे इनका एक पुत्र राहुल पैदा हुआ।बचपन से ही सिद्धार्थ गंभीर स्वभाव के होने के कारण अपना अधिकतर समय अकेले में चिंतन करके व्यतीत करते थे। एक दिन सिद्धार्थ नगर भ्रमण पर निकले तो उन्होंने रास्ते में एक वृद्ध को देखा जिसकी कमर झुकी हुई थी और वह लगातार खांसता हुआ लाठी के सहारे चला जा रहा था। थोड़ी आगे एक मरीज को कष्ट से कराहते देख उनका मन बेचैन हो उठा। उसके बाद उन्होंने एक मृतक की अर्थी देखी, जिसके पीछे उसके परिजन विलाप करते जा रहे थे। ये सभी दृश्य देख उनका मन क्षोभ और वितृष्णा से भर उठा, तभी उन्होंने एक संन्यासी को देखा जो संसार के सभी बंधनों से मुक्त भ्रमण कर रहा था। इन सभी दृश्यों ने सिद्धार्थ को झकझोर कर रख दिया उन्हें एहसास हुआ कि संसार में सुख-वैभव सब मोह-माया है असली जीवन तो ज्ञान प्राप्ति हैं। जिसके बाद उन्होंने संन्यासी बनने का निश्चय कर लिया। तब 19 वर्ष की आयु में एक रात सिद्धार्थ गृह त्याग कर इस क्षणिक संसार से विदा लेकर सत्य की खोज में निकल पड़े।
ज्ञान की प्राप्ति
गृहत्याग के बाद उन्होंने सात दिन ‘अनुपीय’ नामक ग्राम में बिताए। फिर गुरु की खोज में वह मगध की राजधानी पहुंचे जहां कुछ दिनों तक वह ‘तपस्वी के पास रहे। इसके बाद वह एक आचार्य के साथ भी रहे लेकिन उन्हें कहीं संतोष नहीं मिला। अंत में ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं ही तपस्या शुरू कर दी। कठोर तप के कारण उनकी काया जर्जर हो गई थी लेकिन उन्हें अभी तक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई थी। घूमते-घूमते वह एक दिन गया में उरुवेला के निकट निरंजना (फल्गु) नदी के तट पर पहुंचे और वहां एक पीपल के वृक्ष के नीचे स्थिर भाव में बैठ कर समाधिस्थ हो गए। इसे बौद्ध साहित्य में ‘संबोधि काल’ कहा गया है। एक दिन सिद्धार्थ वन में तपस्या कर रहे थें कि अचानक कुछ महिलाये किसी नगर से लौट रही थीं वही रास्ते में सिद्धार्थ तप कर रहे थें। महिलाएं कुछ गीत गा रही थीं उनका एक गीत सिद्धार्थ के कानों में पड़ा था गीत था ” वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दों ” तारों को इतना छोडो भी मत कि वें टूट जायें सिद्धार्थ को कानों में पड़ गयी और वे यह जान गये की नियमित आहार-विहार से योग सिद्ध होता हैं, अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी प्राप्ति के लिये माध्यम मार्ग ही ठीक होता हैं, इसके लिये कठोर तपस्या करनी पड़ती हैं। छ: वर्षों तक समाधिस्थ रहने के बाद जब उनकी आंखें खुलीं और उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, वह वैशाख पूर्णिमा का दिन था और वह महात्मा गौतम बुद्ध कहलाए। उस स्थान को ‘बोध गया’ व पीपल का पेड़ बोधि वृक्ष कहा जाता है।गौतम बुद्ध की मृत्यु
80 वर्ष तक अपने धर्म का संस्कृत के बजाय उस समय की सीधी सरल लोकभाषा पली में प्रचार करते रहें तथा की धर्म लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी। 4 सप्ताह तक बोधिवृक्ष के नीचे रहकर धर्म के स्वरुप का चिंतन करने के बाद बुद्ध धर्म का उपदेश करने निकल पड़े। पहले उन्होंने 5 मित्रों को अपना अनुयायी बनाया और फिर उन्हें धर्म प्रचार करने के लिये भेज दिया। पाली सिद्दांत के सूत्र के अनुसार 80 वर्ष की आयु में बुद्ध ने यह घोषणा की। गौतम बुद्ध ने अपना आखिरी भोजन जिसे उन्होंने कुंडा नामक एक लोहार से एक भेंट के रूप में प्राप्त किया था उसे ग्रहण किया, जिसके कारण वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गये। गौतम बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को एक निर्दश दिया था कि वह कुंडा को समझाए कि उसने कोई गलती नहीं की हैं, उन्होंने कहा कि यह भोजन महान और अतुलनीय हैं। 483 ईसा पूर्व में उन्होंने महापरिनिर्वाण पद को प्राप्त किया। गौतम बुद्ध ने सदा अंहिसा और एकता की भावना का प्रचार किया। इन्होंने हमेशा मध्यम मार्ग का अनुसरण करने पर बल दिया।गौतम बुद्ध के उपदेश
भगवान बुद्ध ने लोगो को चार आर्य सत्य से परिचित कराया जिसके अनुसार संसार दुखों का घर है, मन ही दुख का कारण है, मन पर रोक लगाना ही निर्वाण पद की प्राप्ति है। गौतम बुद्ध ने सर्वप्रथम सारनाथ में अपने पांच शिष्यों को ज्ञान की प्राप्ति कराई। इसके बाद उन्होंने बोद्ध धर्म का प्रचार-प्रसाक किया। उन्होंने दुःख उसके कारण और निरावरण के लिये अहिंसा पर बहुत जोर दिया।महात्मा बुद्ध ने सनातन धर्म के कुछ संकल्पाओं का प्रचार और प्रसार किया था जैसे – अग्निहोत्र और गायत्री मन्त्र
ध्यान और अंत-दृष्टी
मध्य मार्ग का अनुसरण
चार आर्य सत्य
अष्टांग रास्तें
बौद्ध धर्म से संबन्धित महत्वपूर्ण शब्दावली
महाभिनिष्क्रमण – सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की उम्र मे गृह त्याग किया जिसे बौद्ध धर्म मे महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।धर्मचक्रप्रवर्तन – महात्मा बुद्ध ने पहला प्रवचन सारनाथ मे दिया जिसे बौद्ध धर्म मे धर्मचक्रप्रवर्तन कहा गया है।
महापरिनिर्वाण – महात्मा बुद्ध की 80 वर्ष की उम्र मे मृत्यु हो गई जिसे बौद्ध धर्म मे महापरिनिर्वाण कहा गया है।
निर्वाण – तृष्णा के क्षीण हो जाने की अवस्था।
बौद्ध धर्म के अष्टांगिक मार्ग
सम्यक दृष्टि – सत्य तथा असत्य को पहचानने कि शक्तिसम्यक संकल्प – इच्छा एवं हिंसा रहित संकल्प
सम्यक वाणी – सत्य एवं मृदु वाणी
सम्यक कर्म – सत्कर्म, दान, दया, सदाचार, अहिंसा इत्यादि
सम्यक आजीव – जीवन यापन का सदाचार पूर्ण एवं उचित मार्ग
सम्यक व्यायाम – विवेकपूर्ण प्रयत्न
सम्यक स्मृति – अपने कर्मो के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सजग रहने कि शिक्षा देता है
सम्यक समाधि – चित कि एकाग्रता
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