भारत में सिंधी समुदाय के लोग भगवान झूलेलाल में गहरी आस्था रखते हैं। भगवान झूलेलाल सिंधी समुदायों के ईष्ट देव हैं। हिन्दू समुदाय के भगवान वरुण ही भगवान झूलेलाल के रुप में सिंधी समाज द्वारा पूजे जाते हैं। भगवान वरुण यानि झूलेलाल को सर्वज्ञानी कहा जाता है। वह सभी जल निकायों का स्वामी है और ऋग्वेद में सबसे प्रमुख देव में से एक है। भगवान झूलेलाल को वेदों में वर्णित जल के देवता वरुण के अवतार माने जाते है। वेदों में वरुण देव को सागर के देवता सत्य के रक्षक और दिव्यदृष्टि वाले देव के रूप वर्णित किया गया है। देवताओं के तीन वर्गो (पृथ्वी स्थान, वायु स्थान और जल) का देव माना जाता है। ऋग्वेद के सातवें मंडल में वरुण के लिए सुंदर प्रार्थना गीत मिलते हैं। उनके पास जादुई शक्ति मानी जाती थी, जिसका नाम था माया। वरुण देवताओं के देवता हैं। देवताओं के तीन वर्गों (पृथ्वी,वायु और आकाश) में वरुण का सर्वोच्च स्थान है। देवताओं में तीसरा स्थान ‘वरुण’ का माना जाता है जो समुद्र के देवता, विश्व के नियामक और शसक सत्य के प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन रात के कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता के रूप में जाने जाते हैं। ऋग्वेद का 7वां मंडल वरुण देवता को समर्पित है। कहते हैं कि किसी भी रूप में उनका दुरुपयोग सही नहीं है। वह क्रोधित हो जाएं तो दंड के रूप में लोगों को जलोदर रोग देते हैं। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज पूजा जाता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके बागे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगल कामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बने रहे।भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस को सिंधी समाज चेटीचंड के रूप में मनाया जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार सिंध का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा था जिसके कारण सिंधी समाज ने 40 दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान वरुण यानि झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाउंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। भगवान वरुण को झूलेलाल, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुसलमान भी पूजते हैं।
भगवान झूलेलाल

भगवान झूलेलाल की जन्म कथा

सिंध समाज द्वारा भगवान झूलेलाल के अवतरण से संबधित कथा है कि सिंध का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर खूब अत्याचार करता था। इससे दुःखी होकर सिंधी समाज के लोगों ने 40 दिनों तक खूब जप, तप ध्यान किया। इससे प्रसन्न होकर वरुण देव एक मछली के रुप में सिंधु नदी में प्रकट हुए। मत्स्य रुप में प्रकट होकर वरुण देव ने कहा कि मैं आज से 40 दिनों बाद चैत्र शुक्ल द्वितीया को जन्म लेकर आप लोगों को मिरखशाह के अत्याचार से मुक्ति दिलाउंगा। ठीक चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन अपने कथन के अनुसार वरुण देव ने एक बालक के रुप में जन्म लिया। इस बालक का नाम उडेरोलाल रखा गया। कुछ ही दिनों में यह बालक अपनी प्रतिभा और चमत्कारों के कारण झूलेलाल, लालसांई, के नाम से जाना जाने लगा। इन्हें मुसलमान भी ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से पूजते हैं। इनके जन्मदिवस को चेटीचंड के नाम सिंधी समाज बड़े ही धूम धाम से मनाते हैं। वहीं हिन्दू मान्यतानुसार भगवान वरुण भगवान मित्रा से बहुत करीबी से जुड़े हुए है। वरुण आदित्य में से एक है और माना जाता है कि वह प्राणी थे, जब वे प्राणी अभी भी ईश्वर की तरह थे और अभी तक राक्षसों में अपमानित नहीं हुए थे। देवता ग्रहों से चंद्रमा और सोमा के रूप में भी जुड़ा हुआ है। वरुण को खगोलीय जल बारिश, महासागरों आदि के धारक के रूप में याद किया जाता है। उन्हें अत्यधिक क्रोधित माना जाता था और इसलिए उनके गलत कर्मों के लिए प्राणियों को दंडित करने के लिए डर से पूजा की जाती थी। उन्हें भगवान यम की तरह मृतकों का स्वामी भी माना जाता था और यदि उन्होंने चुना तो अमरत्व प्रदान कर सकते थे। बाद की उम्र में, भगवान वरुण भगवान इंद्र से रुक गए थे। कारण इस घटना द्वारा वैदिक इतिहास में सूचीबद्ध किया जा सकता है क्योंकि पौराणिक कथाओं का कहना है कि इंद्र द्वारा वरुण की आपूर्ति की गई थी। जैसा कि इंद्र एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो ब्रह्मांड के सभी जल राक्षस वृत्रा से वापस प्राप्त कर सकता था। वृत्रा एक राक्षस था जिसने ब्रह्मांड के सभी जल चुरा लिया, जो भगवान वरुना के प्रभारी थे। फिर वरुण महासागरों और नदियों का देवता बन गया; अभी भी महत्वपूर्ण है, लेकिन शायद ही कभी वह भव्यता के साथ था। डूबने वालों की आत्माएं उसके पास गईं, और नागाओं ने भाग लिया। मकर या समुद्र राक्षस भगवान वरुण यानि भगवान झूलेलाल का पर्वत है। भगवान वरुण में एक हाथ में सांप से बने नाक या लासो होते हैं।

झूलेलाल जयंती

भगवान झूलेलाल के अवतरण के दिन को सिंधी समाज में झूलेलाल जयंती के रुप में मनाया जाता है। झूलेलाल को सिंधियों के अष्ट देव (सामुदायिक भगवान) के रूप में स्थापित किया है। झूलेलाल को दुनिया भर के सभी सिंधियों द्वारा सम्मानित किया जाता है। उपासक भगवान झूलेलालजी को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसांईं, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से पूजते हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी चैत्र मास के चन्द्रदर्शन के दिन भगवान झूलेलालजी का उत्सव संपूर्ण विश्व में चेटीचंड के त्योहार के रूप में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। चूंकि भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है, इसलिए काष्ठ का एक मंदिर बनाकर उसमें एक लोटी से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाकर, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है, भगवान वरुणदेव का स्तुति गान करते हैं एवं समाज का परंपरागत नृत्य छेज करते हैं।यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है। झूलेलाल उत्सव चेटीचंड, जिसे सिन्धी समाज सिन्धी दिवस के रूप में मनाता चला आ रहा है, पर समाज की विभाजक रेखाएं समाप्त हो जाती हैं। चैत्र के शुभ महीने का दूसरा दिन सिंधी समुदाय के प्रमुख त्यौहार चेती चंद के रूप में पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। त्योहार पारंपरिक दुनिया भर में पारंपरिक धूमधाम और आनंद के साथ मनाया जाता है।हिन्दू चैत्र माह में वसंत ऋतु में चेटी चंड उत्सव मनाया जाता है। सिंधी समुदाय के लिए इस उत्सव को उडेरोलाल के जन्मदिन के रूप में मनाते है। चलिओ उर्फ़ चालिहो को चालिहो साहिब के नाम से भी जाना जाता है, यह चालीस दिनों तक मनाया जाने वाला उत्सव है। हर साल जुलाई और अगस्त माह के बीच यह उत्सव आता है, हिन्दू कैलेंडर के अनुरूप तारीख बदल सकती है। यह उत्सव वरुण देव का आभार व्यक्त करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

भगवान झूलेलाल चालीसा

ॐ श्री वरुणाय नमः

दोहा
जय जय जल देवता, जय ज्योति स्वरूप |
अमर उडेरो लाल जय, झूलेलाल अनूप ||

चौपाई
रतनलाल रतनाणी नंदन | जयति देवकी सुत जग वंदन ||
दरियाशाह वरुण अवतारी | जय जय लाल साईं सुखकारी ||
जय जय होय धर्म की भीरा | जिन्दा पीर हरे जन पीरा ||

संवत दस सौ सात मंझरा | चैत्र शुक्ल द्वितिया भगऊ वारा ||
ग्राम नसरपुर सिंध प्रदेशा | प्रभु अवतरे हरे जन कलेशा ||

सिन्धु वीर ठट्ठा राजधानी | मिरखशाह नऊप अति अभिमानी ||
कपटी कुटिल क्रूर कूविचारी | यवन मलिन मन अत्याचारी ||

धर्मान्तरण करे सब केरा | दुखी हुए जन कष्ट घनेरा ||
पिटवाया हाकिम ढिंढोरा | हो इस्लाम धर्म चाहुँओरा ||

सिन्धी प्रजा बहुत घबराई | इष्ट देव को टेर लगाई ||
वरुण देव पूजे बहुंभाती | बिन जल अन्न गए दिन राती ||

सिन्धी तीर सब दिन चालीसा | घर घर ध्यान लगाये ईशा ||
गरज उठा नद सिन्धु सहसा | चारो और उठा नव हरषा ||

वरुणदेव ने सुनी पुकारा | प्रकटे वरुण मीन असवारा ||
दिव्य पुरुष जल ब्रह्मा स्वरुपा | कर पुष्तक नवरूप अनूपा ||

हर्षित हुए सकल नर नारी | वरुणदेव की महिमा न्यारी ||
जय जय कार उठी चाहुँओरा | गई रात आने को भौंरा ||

मिरखशाह नऊप अत्याचारी | नष्ट करूँगा शक्ति सारी ||
दूर अधर्म, हरण भू भारा | शीघ्र नसरपुर में अवतारा ||

रतनराय रातनाणी आँगन | खेलूँगा, आऊँगा शिशु बन ||
रतनराय घर ख़ुशी आई | झूलेलाल अवतारे सब देय बधाई ||
घर घर मंगल गीत सुहाए | झूलेलाल हरन दुःख आए ||
मिरखशाह तक चर्चा आई | भेजा मंत्री क्रोध अधिकाई ||
मंत्री ने जब बाल निहारा | धीरज गया हृदय का सारा ||

देखि मंत्री साईं की लीला | अधिक विचित्र विमोहन शीला ||
बालक धीखा युवा सेनानी | देखा मंत्री बुद्धि चाकरानी ||

योद्धा रूप दिखे भगवाना | मंत्री हुआ विगत अभिमाना ||
झूलेलाल दिया आदेशा | जा तव नऊपति कहो संदेशा ||

मिरखशाह नऊप तजे गुमाना | हिन्दू मुस्लिम एक समाना ||
बंद करो नित्य अत्याचारा | त्यागो धर्मान्तरण विचारा ||

लेकिन मिरखशाह अभिमानी | वरुणदेव की बात न मानी ||
एक दिवस हो अश्व सवारा | झूलेलाल गए दरबारा ||

मिरखशाह नऊप ने आज्ञा दी | झूलेलाल बनाओ बन्दी ||

किया स्वरुप वरुण का धारण | चारो और हुआ जल प्लावन ||
दरबारी डूबे उतराये | नऊप के होश ठिकाने आये ||

नऊप तब पड़ा चरण में आई | जय जय धन्य जय साईं ||
वापिस लिया नऊपति आदेशा | दूर दूर सब जन क्लेशा ||
संवत दस सौ बीस मंझारी | भाद्र शुक्ल चौदस शुभकारी ||

भक्तो की हर आधी व्याधि | जल में ली जलदेव समाधि ||
जो जन धरे आज भी ध्याना | उनका वरुण करे कल्याणा ||

दोहा
चालीसा चालीस दिन पाठ करे जो कोय |
पावे मनवांछित फल अरु जीवन सुखमय होय ||

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