भारतवर्ष में शुरु से ही गुरुओं का महत्व रहा है। बिना गुरु के मनुष्य का जीवन कभी सफल नहीं हो सकता। ईश्वर को पहचानने एवं उसकी प्राप्ति के लिए गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है। गुरु की इसी महत्वता को मनुष्य जन के बीच फैलाने का श्रेय गुरु नानक देव जी को जाता है। गुरु नानक देव सिख धर्म के संस्थापक एवं उनके प्रथम गुरु हैं। गुरु नानक देव जी ने ना केवल सिख धर्म का अनुसरण करने वाले लोगों को ज्ञान और भक्ति का मार्ग बताया अपितु, हिन्दू-मुस्लिम सभी धर्मों को एक कर, एक ईश्वर के ज्ञान से रुबरु कराया। हिन्दू एवं मुस्लिम दो धर्मों को मिलाकर गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव रखीं। उन्होंने सिख धर्म नामक एक नया धर्म बनाया, जिसने हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों की सर्वोत्तम विशेषताओं को जोड़ा। 'सिख' का शाब्दिक अर्थ है 'शिष्य'। गुरु नानक का मानना था कि मोक्ष केवल एक सच्चे गुरु या 'सद्गुरु' के मार्गदर्शन में हासिल किया जा सकता है। गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस के रुप में कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाती है। कहा जाता है कि गुरु नानक देवजी अंधविश्वास और आडंबरों के कट्टर विरोधी थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को हुआ था। किन्तु कई मान्यतानुसार प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा को गुरु नानक देव जी का जन्मदिवस मानकर प्रकाशोत्सव मनाया जाता है। गुरु नानक चरम प्रतिभा वाले बच्चे थे। उन्होंने 15 साल की उम्र तक हिंदी, पंजाबी, संस्कृत, फारसी और अरबी भाषा पर अच्छी पकड़ बना ली थी। 1507, गुरु नानक साहिब ने "वैन नदी" में स्नान करके खुद को मानव जाति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था।

गुरु नानक देव का जीवन परिचय

गुरु नानक जी पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर 1469 को एक किसान के घर जन्मे थे। इनके पिता का नाम कल्याणचंद या मेहता कालू जी था, माता का नाम तृप्ता देवी था। इनकी बहन का नाम नानकी था। नानक जी के मस्तक पर शुरू से ही तेज आभा थी। तलवंडी जो पाकिस्तान के लाहौर से 30 मील पश्चिम में स्थित है, गुरु नानक का नाम साथ जुड़ने के बाद आगे चलकर ननकाना कहलाया। गुरु नानक के प्रकाश उत्सव पर प्रति वर्ष भारत से सिख श्रद्धालुओं का जत्था ननकाना साहिब जाकर वहां अरदास करते है। गुर नानक देव जी बचपन से ही गंभीर प्रवृत्ति के थे। बाल्यकाल में जब उनके अन्य साथी खेल कूद में व्यस्त होते थे तो वह अपने नेत्र बंद कर चिंतन मनन में खो जाते थे। यह देख उनके पिता कालू एवं माता तृप्ता चिंतित रहते थे। उनके पिता ने पंडित हरदयाल के पास उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा लेकिन पंडितजी बालक नानक के प्रश्नों पर निरुत्तर हो जाते थे और उनके ज्ञान को देखकर समझ गए कि नानक को स्वयं ईश्वर ने पढ़ाकर संसार में भेजा है। नानक को मौलवी कुतुबुद्दीन के पास पढ़ने के लिए भेजा गया लेकिन वह भी नानक के प्रश्नों से निरुत्तर हो गए। गुरु नानक जी का विवाह सन 1485 में बटाला निवासी कन्या सुलक्खनी से हुआ। उनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे। किन्तु नानक जी का मन घर-गृहस्थी में नहीं लगा। नानक जी ने घर-बार छोड़ दिया। 1507 में ये अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर यात्रा के लिए निकल पड़े। गुरु नानक देवजी ने जात−पांत को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए 'लंगर' की प्रथा शुरू की थी। लंगर में सब छोटे−बड़े, अमीर−गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं।

गुरु नानक देव जी का व्यक्तित्व

गुरुनानक का व्यक्तित्व असाधारण था। उनमें पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्म-सुधारक, समाज-सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबन्धु सभी के गुण उत्कृष्ट मात्रा में विद्यमान थे। उनमें विचार-शक्ति और क्रिया-शक्ति का अपूर्व सामंजस्य था। उन्होंने पूरे देश की यात्रा की। अंत में कबीरदास की 'निर्गुण उपासना' का प्रचार उन्होंने पंजाब में आरंभ किया और वे सिख संप्रदाय के आदिगुरु हुए। नानक अच्छे कवि भी थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है। उनकी भाषा "बहता नीर" थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी, संस्कृत और ब्रजभाषा के शब्द समा गए थे।1520 में, गुरु नानक साहिब ने भारत पर हमला करने वाले बाबर का भी मन बदल दिया था। जब इब्राहिम लोधी ने गुरु नानक देव जी को कैद कर लिया था तब बाबर के द्वारा उसे हराने पर नानक देव जी को रिहाई मिली। बाबर ने लोधी की कैद से नानक जी को मुक्ति दिलाई क्योंकि वो नानक जी की शिक्षाओं से काफी प्रभावित था। गुरु नानक साहिब ने भौतिकवाद को आकर्षित किए बिना जीवन जीने पर जोर दिया। मानव जाति, कीर्तन, सत्संग और एक ईश्वर की भक्ति, सिख धर्म की बुनियादी अवधारणाएं नानक जी ने मनुष्यों को दी। गुरु नानक जी ने एक धर्म सुधारक के रुप में भी कार्य किया। उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया। एक ईश्वर की भक्ति पर बल दिया। लंगर का आयोजन कर जात-पात की गंदगी को दूर किया। उन्होंने महिलाओं के लिए भी कई कार्य किएष महिलाओं को उत्पीड़ित करने का भी उन्होंने घोर विरोध किया। गरीबी, अज्ञानता, लालच जैसी बुराईयों पर कटाक्ष किया। वह हिंदुओं की जाति व्यवस्था और मुस्लिम शासकों के शासन के खिलाफ थे।

गुरु नानक देव जी की मक्का यात्रा

गरु नानक देव ने अपने शिष्य मरदाना के साथ करीब 28 वर्षों में दो उपमहाद्वीपों में पांच प्रमुख पैदल यात्राएं की थीं, जिन्हें उदासी कहा जाता है। इन 28 हजार किलोमीटर लंबी यात्राओं में गुरु नानक ने करीब 60 शहरों का भ्रमण किया। अपनी चौथी उदासी में गुरु नानक ने मक्का की यात्रा की। उन्होंने हाजी का भेष धारण किया और अपने शिष्यों के साथ मक्का पहुंच गए। कई हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के कई तीर्थस्थलों की यात्रा करने के बाद नानक ने मक्का की यात्रा की थी। 'बाबा नानक शाह फकीर' में हाजी ताजुद्दीन नक्शबन्दी ने लिखा है कि वह गुरु नानक से हज यात्रा के दौरान ईरान में मिले थे। जैन-उ-लबदीन की लिखी 'तारीख अरब ख्वाजा' में भी गुरु नानक की मक्का यात्रा का जिक्र किया है। उन्होंने नानक और रुकुद्दीन के बीच संवाद का उल्लेख भी किया है। हिस्ट्री ऑफ पंजाब, हिस्ट्री ऑफ सिख, वारभाई गुरदास और सौ साखी, जन्मसाखी में भी नानक की मक्का यात्रा का जिक्र किया गया है। गुरु नानक जी का एक शिष्य मरदाना था जो मुस्लिम था। मरदाना ने गुरु नानक से कहा कि उसे मक्का जाना है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब तक एक मुसलमान मक्का नहीं जाता तब तक वह सच्चा मुसलमान नहीं कहलाता है। गुरु नानक ने यह बात सुनी तो वह उसे साथ लेकर मक्का के लिए निकल पड़े। गुरु जी मक्का पहुंचे तो वह थक गए थे और वहां पर हाजियों के लिए एक आरामगाह बनी हुई थी तो गुरु जी मक्का की तरफ पैर करके लेट गए। हाजियों की सेवा करने वाला खातिम जिसका नाम जियोन था वह यह देखकर बहुत गुस्सा हुआ और गुरु जी से बोला, क्या तुमको दिखता नहीं है कि तुम मक्का मदीना की तरफ पैर करके लेटे हो। तब गुरु नानक ने कहा कि वह बहुत थके हुए हैं और आराम करना चाहते हैं। उन्होंने जियोन से कहा कि जिस तरफ खुदा ना हो उसी तरफ उनके पैर कर दे। तब जियोन को गुरू नानक की बात समझ में आ गई कि खुदा केवल एक दिशा में नहीं बल्कि हर दिशा में है। इसके बाद जियोन को गुरु नानक ने समझाया कि अच्छे कर्म करो और खुदा को याद करो, यही सच्चा सदका है।
गुरु नानक देव जी

गुरु नानक द्वारा लिखे ग्रंथ

गुरु नानक जी ने कई भाषाओं में ग्रंथ लिखे। वो पंजाबी। उर्दू, फारसी, खड़ी बोली हिन्दू, संस्कृत सभी भाषाओं को मिश्रित करके लिखते थे। गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल है- जपजी, सिद्ध गोष्ठ, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दी वार, पत्ती, बारह माह शामिल थे। पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के पहले अध्याय में उनके द्वारा लिखी गई शिक्षाओं के ध्यान और विचारों के बारे में कविताएं हैं। गुरु नानक देव जी की मृत्यु सन् 1539 ई। में हुई। इन्होंने गुरुगद्दी का भार गुरु अंगददेव (बाबा लहना) को सौंप दिया और स्वयं करतारपुर में 'ज्योति' में लीन हो गए।

गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं

गुरु नानक देव जी का मानना था कि ईश्वर एक है। वह हर जगह उपस्थित होते हैं। गुरु नानक देव ने ही इक ओंकार का नारा दिया था और कहा था सबका पिता वही है इसलिए सभी से प्रेम करना चाहिए।
गुरु नानक देव जी ने अपनी शिक्षाओं मे कहा कि दस जगह जाने की जगह सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो। ईश्वर सब जगह और हर प्राणी मात्र में मौजूद है। ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
गुरु नानक देव ने अपने संदेश में कहा था हमे कभी भी किसी दूसरे का हक नहीं छीनना चाहिए। मेहनत और सच्चाई से गरीबो और जरुरतमंदो की मदद करनी चाहिए।
गुरु नानक देव जी ने कहा कि ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए। हमेशा लोभ का त्याग करना चाहिए और मेहनत कर सही तरीको से धन कामना चाहिए।
जरुरतमंदो की सहायता करने में हमें कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिेए। पैसों और अन्य तरीको से दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
गुरु नानक देव पुरुष और स्त्री को हमेशा बराबर मानते थे उनके अनुसार कभी भी महिलाओं का अनादर नहीं करना चाहिए।
गुरु नानक देव जी ने कहा कि भोजन शरीर को जि़ंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ−लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।
पैसे का स्थान हमेशा जेब में ही रहना चाहिए इसे अपने ह्रदय से लगाकर नहीं करना चाहिए यानि पैसों से ज्यादा प्यार नहीं करना चाहिए।
जब भी कोई काम करें तो तनाव के साथ कभी भी नहीं करना चाहिए। तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए और हमेशा खुश रहना चाहिए।
अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है इसलिए कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए। हमेशा अच्छे और विनम्र होकर सेवाभाव से अपना जीवन गुजारना चाहिए। लोगों को प्रेम, एकता, समानता और भाईचारा का संदेश देना चाहिए।

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