
मुहम्मद साहब का जीवन परिचय
पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म तक़रीबन 570 ईसा पू। में मक्का के अरेबियन शहर में हुआ था, अल्पायु में ही मुहम्मद अनाथ हो चुके थे। उनकी माता का नाम अमीना एवं पिका अब्दुल्ला थे। जन्म के पूर्व ही पिता की और पाँच वर्ष की आयु में माता की मृत्यु हो जाने के फलस्वरूप मोहम्मद साहब का पालन-पोषण उनके दादा मुतल्लिब और चाचा अबू तालिब ने किया था। 25 वर्ष की आयु में उन्होंने ख़दीजा नामक एक विधवा से विवाह किया। समाज में व्यापत बुराईयों को देख उनका मन सासंरिक जीवन में नहीं लगा। समय के साथ-साथ उन्होंने समाज को भी छोड़ दिया और हिरा नाम की पर्वत गुफा में जाकर कई रातो तक दुआ करते रहे।कहा जाता है कि 40 वर्ष की आयु में गुफा में उनसे मिलने गब्रिअल आए थे, जहाँ उन्होंने बताया था की उन्हें अल्लाह् का पहला रहस्य ज्ञात हुआ था। उन्हें इस्लाम धर्म का रहस्य पता चलाय़ तीन साल बाद, 610 ईसा पू। में, मुहम्मद ने इस रहस्य को समाज में पहुचाने का काम कियाय़ वह “अल्लाह् एक ही है” इस अवधारणा प्रचार करने लगे और तभी से लोग उन्हें अल्लाह द्वारा भेजा गया दूत कहने लगे थे, इस्लाम धर्म में उन्हें भगवान का ही दर्जा दिया जाता है। दुआ करने के बाद जल्द ही मुहम्मद को अपने कुछ अनुयायी मिल चुके थे लेकीन मक्का के कुछ कस्बो से उन्हें नफरत का सामना भी करना पड़ा था। मोहम्मद की शिक्षाओं से प्रभावित, कई लोगों ने उन्हें और उसके प्रचार का पालन करना शुरू कर दिया था। वह इस्लाम के संदेश को जनता में फैलाने में काफी सफल रहे लेकिन कुछ मक्का जनजातियों ने इस्लामी आध्यात्मिकता के इस फैलाव को नापसंद किया। 622 ईसा पू। में उत्पीडना से बचने के लिये, मुहम्मद ने अपने कुछ अनुयायियों को मक्का से मदीना स्थानांतरित होने से पहले एबीसीनिया भेज दिया था। इसी घटना को इस्लामिक कैलेंडर की शुरुवात भी माना जाता है, साथ ही इसे हिजरी कैलेंडर का भी नाम दिया गया था। मदीना में मुहम्मद ने सभी जनजाति को मदीना के संविधान के तहत एकत्रित किया। इसके बाद दिसम्बर 629 में, मुहम्मद ने तक़रीबन 10,000 मुस्लिम लोगो की सेना जमा की और मक्का में जाकर जुलुस निकाला। 53 साल की आयु तक मुहम्मद साहब ने 10 से भी ज्यादा विवाह किए। आखिरी विवाह उन्होंने 6 साल की बच्ची से किया। मोहम्मद पैगंबर ने भी मदीना में अपने एकेश्वरवादी विश्वास को फैलाना जारी रखा और आठ साल के कठिन संघर्ष के बाद मक्का पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। उन्होंने हर जगह सद्भाव और एकता के संदेश को फैलाने की कोशिश की और इस्लाम नामक एक मुस्लिम धर्म के संदेश का प्रचार किया। 632 ईसा पू। में विदाई तीर्थयात्रा से वापिस आने के बाद वे बीमार पड़े और 8 जून 632 को उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु से पहले अरेबियन पेनिनसुला का ज्यादातर भाग इस्लामिक जाती में परिवर्तित हो चूका था।
कुरान की स्थापना
मुहम्मद साहब ने ही कुरान को जन-जन तक पहुंचाया था। कुरान इस्लाम धर्म का धार्मिक ग्रंथ है। मुस्लिम जनजाति के अनुसार इसका एक-एक शब्द अल्लाह का शब्द है जिसे गब्रिअल से लेकर मुहम्मद ने लोगो तक पहुचाया। कुरान में हमें मुहम्मद की कालानुक्रमिक जीवनी का वर्णन बहुत कम देखने मिलता है । कुरान में मुहम्मद शब्द का अर्थ “सराहनीय” है और यह शब्द कुरान में कुल चार बार आया है। कुरान में मुहम्मद को बहुत सी पदवियो से नवाजा गया है, जिनमे मुख्य रूप से नबी, अल्लाह का गुलाम, दूत, बशीर, मुबश्शिर, शहीद, नाथिर, नूर, मुधाक्किर, और सिरजमुनिर शामिल है।मुहम्मद साहब की शिक्षाएं
पैंगबर मुहम्मद के अनुसार हर व्यक्ति को ईश्वर या अल्लाह से हर हाल और हर जगह डरना चाहिये। कोई भी गलत काम उनसे छिप नहीं सकता है।हर व्यक्ति को अपनी क्षमताओं के अनुसार सभी की दान की सहायता से मदद करनी चाहिये फिर वो व्यक्ति चाहे आपका करीबी हो या फिर उसने आपको कभी किसी भी चीज से वंचित किया हो।
व्यक्ति के सामने चाहे कोई भी परिस्थिति हो या फिर कोई भी जगह हो, उसे हर जगह पर न्यायसंगत होना चाहिये और हमेशा सिर्फ और सिर्फ सही का ही साथ देना चाहिये।
ईश्वर या खुदा के बंदे को हर हाल में संतोष करना सीखना चाहिये फिर चाहे वो अमीरी और सुख के दिन हों या फिर गरीबी और दुख के दिन।
पैगंबर मोहम्मद साहब के अनुसार अगर आपको कोई मित्र, रिश्तेदार या फिर करीबी किन्हीं कारणों से आपसे दूर जा रहा है तो फिर आप उस बात का कारण जानिये और फिर उस व्यक्ति को मनाकर अपनी गलतियों को सुधारकर वापस उन्हें अपने करीब लेकर आएं।
हमें कभी भी किसी से नफरत नहीं करनी चाहिये बल्कि सभी को उसके कर्मों के लिए माफ कर देना चाहिये। एक ना एक दिन हर व्यक्ति को आपसे मुहब्बत हो ही जाएगी।
पैगंबर मुहम्मद के अनुसार आप जब भी कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोलें तो उसमें अल्लाह का नाम जरूर आना चाहिये।
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