भारत में जैन धर्म की बहुत महत्वता है। जैन धर्म भारत के सभी हिस्सो में फैला हुआ है। जैन धर्म की स्थापना भगवान ऋषभदेव ने की थी किन्तु जैन धर्म को लोकप्रिय बनाने का श्रेय भगवान महावीर को जाता है। महावीर या वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान ऋषभनाथ की परम्परा में 24वें जैन तीर्थंकर थे।वे अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। न ग्रन्थों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। जैन धर्म में तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले तीर्थकर थे। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ रहा था उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। महावीर की जयंती ग्रीगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है। वहीं, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के 13वें दिन महावीर ने जन्मा लिया था। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर जयंती का विशेष महत्वन होता है। भारत वर्ष में महावीर जंयती बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह उनके प्रमुख त्योेहारों में से एक है। न सिर्फ भारत में बल्किन विदेशों में भी जैन समुदाय का विस्तामर है महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का है। न्होंने अपने प्रत्ये क अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है। इन सबमें अहिंसा की भावना सम्मिलित है। यही वजह है कि जैन विद्वानों का प्रमुख उपदेश यही होता है- 'अहिंसा ही परम धर्म है। अहिंसा ही परम ब्रह्म है। अहिंसा ही सुख शांति देने वाली है। अहिंसा ही संसार का उद्धार करने वाली है। यही मानव का सच्चा धर्म है। यही मानव का सच्चा कर्म है।' भगवान महावीर ने अपनी शिक्षाओं के जरिए मनुष्यों को ज्ञान का नया संदेश दिया। मार-काट, जाति व्यवस्था से उपर उठकर महावीर ने अहिंसा का मार्ग प्रशस्त करने का उपदेश दिया। जैन धर्म में महावीर की शिक्षाओं के स्वरुप किसी चींटी को भी मारना अपराध है। महावीर ने मनुष्यों के ह्रदय में प्रेम एंव अपनत्व की भावना की विस्तार किया। मनुष्यों को मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रशस्त किया।
भगवान महावीर

भगवान महावीर का जीवन परिचय

जैन धर्म के अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर का जन्म बिहार के क्षत्रियकुंड में 5 9 5 ईसा पूर्व में 12 अप्रैल को हुआ था। इनकी माता का नाम 'त्रिशला देवी' और पिता का नाम 'सिद्धार्थ' था। महावीर के जन्म लेते ही इनके माता-पिता के पास अपार वैभव आ गया था जिससे बचपन में महावीर का नाम 'वर्धमान' रखा गया। यह बाल्यकाल से ही यह साहसी, तेजस्वी, ज्ञान पिपासु और अत्यंत बलशाली होने के कारण 'महावीर' कहलाए। भगवान महावीर ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, जिस कारण इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है। विद्याध्ययन के पश्चात उनका विवाह यशोदा नामक सुन्दर राजकन्या से हुआ और उन्हें प्रियदर्शन नामक कन्या रत्न भी प्राप्त हुआ। परिवार मोह महावीर को अधिक समय तक मोह-माया में बाँध कर नहीं रख पाया फलत: माता-पिता के स्वर्ग सिधारने के पश्चात 30 वर्ष की उम्र में अपने ज्येष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया। महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया ३० वर्ष की युवावस्था में दीक्षा लेकर वह तपस्या के लिए निकल पड़े। गहन वनों में ज्ञान की खोज करते हुए उन्होंने कठोर तपस्या की और वस्त्र एवं भिक्षा-पात्र तक का त्याग कर दिया। दीक्षा लेने के बाद महावीर ने साढ़े 12 सालों तक कठोर तपस्या की। फिर वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी। यह महावीर की श्रद्धा, भक्ति और तपस्या का ही परिणाम था कि वह जैन धर्म को फिर से प्रतिष्ठित करने में सफल हो पाए। यही वजह है कि जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है।

महावीर की शिक्षाएं

महावीर स्वामी के अनेक नाम हैं- 'अर्हत', 'जिन', 'निर्ग्रथ', 'महावीर', 'अतिवीर' आदि। इनके 'जिन' नाम से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम 'जैन धर्म' पड़ा। जैन धर्म में अहिंसा तथा कर्मों की पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है। उनका ख्य सिद्धांत 'अनेकांतवाद' है, जिसके अनुसार दूसरों के दृष्टिकोण को भी ठीक-ठाक समझ कर ही पूर्ण सत्य के निकट पहुँचा जा सकता है। भगवान महावीर अहिंसा और अपरिग्रह की साक्षात मूर्ति थे। वे सभी के साथ सामान भाव रखते थे और किसी को कोई भी दुःख देना नहीं चाहते थे। भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने श्रमण और श्रमणी, श्रावक और श्राविका, सबको लेकर चतुर्विध संघ की स्थापना की। उन्होंने कहा- जो जिस अधिकार का हो, वह उसी वर्ग में आकर सम्यक्त्व पाने के लिए आगे बढ़े। जीवन का लक्ष्य है समता पाना। धीरे-धीरे संघ उन्नति करने लगा। देश के भिन्न-भिन्न भागों में घूमकर भगवान महावीर ने अपना पवित्र संदेश फैलाया। अपनी श्रद्धा से जैन धर्म को पुनः प्रतिष्ठापित करने के बाद भगवान महावीर ने 72 वर्ष की अवस्था में ईसापूर्व 527 में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक (आश्विन) कृष्ण अमावस्या को निर्वाण प्राप्त किया। इनके निर्वाण दिवस पर घर-घर दीपक जलाकर दीपावली मनाई जाती है।

महावीर स्वामी के पांच सिद्धांत

1. सत्य – महावीर ने सदैव सत्य का अनुसरण करने का उपदेश दिया। वो कहते हैं कि सत्य सबसे बलवान है और हर इंसान को किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। सदा सत्य बोलो। सत्य से बड़ी-से बड़ी विपदा एवं लड़ाई को जीता जो सकता है।
2. अहिंसा – महावीर स्वामी की दूसरा सिद्धांत अंहिसा है। उनका कहना था कि दूसरों के प्रति हिंसा की भावना नहीं रखनी चाहिए। जितना प्रेम हम खुद से करते हैं उतना ही प्रेम दूसरों से भी करें। अहिंसा का पालन करें। महावीर के अनुसार किसी जानवर एवं सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव की हत्या करना भी घोर पाप और हिंसा है इसेस दूर रहकर ही मनुष्य उन्नति कर सकता है।
3. अस्तेय – भगावन महावीर का तीसरा सिद्धांत अस्तेय है जिसका अर्थ है दूसरों की चीजों का लालच ना करना। स्वामी कहते हैं कि दूसरों की चीज़ों को चुराना और दूसरों की चीज़ों की इच्छा करना महापाप है। जो मिला है उसमें संतुष्ट रहें।
4. बृह्मचर्य – महावीर स्वामी का चौथा सिद्धांत बृह्मचार्य है। वो कहते हैं कि बृह्मचर्य सबसे कठोर तपस्या है और जो पुरुष इसका पालन करते हैं वो मोक्ष की प्राप्ति करते हैं। स्त्री से दूर रहकर अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण ही बृह्मचार्य है। मनुष्यों को इसका अनुसरण करना चाहिए।
5. अपरिग्रह – महावीर स्वामी की पांचवा एवं अंतिम सिद्धांत है अपरिग्रह। वो कहते हैं कि ये दुनियां नश्वर है। चीज़ों के प्रति मोह ही आपके दुखों का कारण है। सच्चे इंसान किसी भी सांसारिक चीज़ का मोह नहीं करते। मोह में रहकर मनुष्य आगे नहीं बढ सकता। इससे उपर उठना चाहिए।

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