भारत में कई सूफी संतो, पीर, फकीरों ने इस धरती पर अवतरण लेकर मनुष्यों को जीवन की नई राह एवं उसका सही अर्थ बताया है। यहां कई ऐसे संत है जिन्होंने अपने ज्ञान के जरिए लोगों को जागरुक कर समाजिक बंधनों से मुक्त कराया है। यहां के सभी संतो ने हमेशा जात-पांत की राजनीति से उठकर मनुष्य भावना पर बल दिया औऱ उसी का अनुसरण किया है। इन्हीं संतो में से एक महान संत हैं साईं बाबा। भारतीय धार्मिक मान्यताओं में साईं बाबा की बहुत महत्वता है। साईं बाबा केवल एक संत नहीं है बल्कि भगवान का अवतार हैं। हिन्दू, मुस्लिम सभी समुदाय के लोगों के लिए वो ईश्वर के समान हैं। साईं बाबा को शिरडी के साईं बाबा, संत साईं नाथ इत्यादि कई नामों से भी संबोधित किया जाता है। 'साईं बाबा' के नाम का अर्थ है "अच्छी तरह से सीखा" या "जानकार"। इस्लामी अध्ययन साईं बाबा को "पवित्र पिता" या "संत पिता" के रूप में संदर्भित करते हैं। मात्र सोलह वर्ष की उम्र में ही संत बन जाने वाले साईं बाबा ने हिंदू-मुस्लिम को एक कर एक ईश्वर मानने का आह्वान किया। साईं बाबा महाराष्ट्र स्थित द्वारकामायी नामक एक मस्जिद में रहते थे, और हिंदू और मुसलमानों के अनुष्ठानों का पालन करते थे। वह एक अकेले जीवन जीते थे। साईं बाबा ने प्यार, क्षमा, दूसरों की मदद करना, दान, संतुष्टि, आंतरिक शांति, भगवान और गुरु की भक्ति का पाठ पढ़ाया। साईं बाबा का जन्म कब और कहां हुआ था यह आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है। किन्तु साईं बाबा को आज घर-घर में पूजा जाता है। साईं बाबा के चमत्कारों के कारण उन्हें ईश्वर माना जाता है। साईं बाबा के प्रमुख स्थल शिरडी में रोजाना लाखो की संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर साईं बाबा के चरणों में भेंट चढ़ाते हैं। जहां साईं बाबा ने स्वंय एक फकीर का जीवन व्यतीत किया वहीं अपने भक्तों को वो किसी भी बात की कमी नहीं होने देते थे। शिर्डी के साईं बाबा एक भारतीय धार्मिक गुरु थे, जिन्हें उनके भक्त संत, फ़क़ीर और सतगुरु भी कहते थे। उनके हिन्दू और मुस्लिम दोनों भक्त उन्हें पूजते थे, और उनकी मृत्यु के बाद भी आज भी हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग उन्हें पूजते है। साईं बाबा की किसी एक समाज में प्रतिष्ठा नही है। उन्होंने अपने आप को एक सच्चे सद्गुरु को समर्पित कर दिया था, लोग उन्हें भगवान का अवतार ही समझते थे। आज भी सच्चे मन से साईं बाबा की भक्ति करने वाला भक्त कभी निराश नहीं होता। साईं बाबा के नाम से भक्त कई झांकिया निकालते हैं। गुरु के समान साईं बाबा की उपासना भी भक्त गुरुवार के दिन विशेष रुप से करते हैं। साईं बाबा भक्तों के लिए ईश्वर का दूसरा रुप हैं जिनका हमेशा से एक ही नारा रहा है ईश्वर एक हैं। वो हिन्दू-मुस्लिम में नहीं बटां है।
साईं बाबा

साईं बाबा का जीवन परिचय

साईं बाबा के जन्म के विषय में काफी मतभेद है। साईं बाबा के जन्म एंव उनके माता-पिता के लेकर सटीक जानकारी कहीं नहीं हैं। फिर भी मान्यतनुसार साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर, 1836 ई। में हुआ था। अधिकांश विवरणों के अनुसार बाबा एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके पांच भाई थे। साईं बाबा का अधिकांश समय अपने पड़ोस में रहने वाले मुस्लिम दंपत्ती के घर बितता था। बाद में एक सूफ़ी फ़क़ीर द्वारा साईं बाबा को गोद ले लिया गया। 1858 में साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य महाराष्ट्र के एक गाँव शिरडी पहुँचे और फिर आजीवन वहीं रहे। साईं बाबा मुस्लिम टोपी पहनते थे और जीवन में अधिंकाश समय तक वह शिरडी की के मस्जिद में ही रहे, जहाँ कुछ सूफ़ी परंपराओं के पुराने रिवाज़ों के अनुसार वह धूनी रमाते थे। मस्जिद का नाम उन्होंने 'द्वारकामाई' रखा था, जो निश्चित्त रूप से एक हिन्दू नाम था। साईं बाबा को पुराणों, भगवदगीता और हिन्दू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था। साईं जब 16 साल के थे तभी ब्रिटिश भारत के महाराष्ट्र राज्य के अहमदनगर जिले के शिर्डी गाँव में आए थे। वे एक सन्यासी बनकर जिन्दगी जी रहे थे, और हमेशा नीम के पेड़ के निचे ध्यान लगाकर बैठे रहते या आसन में बैठकर भगवान की भक्ति में लीन हो जाते थे। गाँव के लोग भी उस 16 साल के लड़के को लगातार ध्यान, लगाता हुआ देख आश्चर्यचकित थे, क्योकि ठंडी और गर्मी का उनके शरीर पर कोई प्रभाव दिखाई नही दे रहा था। दिन में वे किसी से नही मिलते थे और रात में उन्हें किसी का डर नही था। उनकी मौजूदगी ने गाँव वालो की जिज्ञासा को आकर्षित किया था और रोज़ उन्हें धार्मिक प्रवृत्ति के लोग उनसे ज्ञान प्राप्त करने आते थे वहीं कुछ लोग उन्हें पागल समझते थे तो कुछ लोग उनपर पत्थर भी फेकते थे। शिरडी में 3 साल तक रहने के बाद साईबाबा ने गाँव छोड़। वो एक साल तक गायब हो गये थे और फिर 1858 में साईबाबा शिर्डी वापिस आए थे। इस समय वे अलग ही तरह के कपडे पहने हुए थे, उपर उन्होंने घुटनों तक कफनी पोशाक और कपड़ो की ही एक टोपी पहन रखी थी। नकी पोषाख के अनुसार वे एक मुस्लिम फ़क़ीर लग रहे थे और लोग उन्हें हिन्दू और मुस्लिम दोनों का गुरु मानते थे। वापिस आने के बाद तक़रीबन 4 से 5 साल तक साईबाबा एक नीम के पेड़ के निचे रहते थे और अक्सर कभी-कभी लम्बे समय के लिए शिर्डी के जंगलो में भी चले जाते थे। लेकिन बाद में कुछ समय बाद लोगो ने उन्हें एक पुरानी मस्जिद रहने के लिए दी, वहाँ वे लोगो से भिक्षा मांगकर रहते थे और वहाँ उनसे मिलने रोज़ बहुत से हिन्दू और मुस्लिम भक्त आया करते थे। मस्जिद में पवित्र धार्मिक आग भी जलाते थे जिसे उन्होंने धुनी का नाम दिया था, लोगो के अनुसार उस धुनी में एक अद्भुत चमत्कारिक शक्तियाँ थी, उस धुनी से ही साईबाबा अपने भक्तो को जाने से पहले उधि देते थे। लोगो के अनुसार साईबाबा द्वारा दी गयी उस उधि में अद्भुत ताकत होती थी। साईं बाबा संत के साथ-साथ एक स्थानिय हकीम की भूमिका भी निभाते थे और बीमार लोगो को अपनी धुनी से ठीक करते थे। साईबाबा अपने भक्तो को धार्मिक पाठ भी पढ़ाते थे, और हिन्दुओ को रामायण और भगवत गीता और मुस्लिमो को कुरान पढने के लिए कहते थे। साईं बाबा के इसी व्यवहार के कारण वो हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के मुखियों के विरोधी बन गए थे। वो लोग साईं बाबा को ढोंगी बताकर उन पर हंसते थे। किन्तु अपने चमत्कारों के जरिए साईं बाबा ने सबकी आलोचनाओं का जवाब सादगीपूर्ण ढंग से दे दिया था। 1910 के बाद साईबाबा की ख्याति मुंबई में फैलती गयी। इसके बाद बहुत से लोग उनके दर्शन करने आते गये क्योकि उन्हें एक चमत्कारिक और शक्तिशाली अवतार और बाबा मानने लगे थे लोग। इसके बाद गाँव वालो ने उनका पहला मंदिर भिवपुरी, कर्जत में बनाया। साईं बाबा केव प्रसिद्ध शिष्य उपस्नी महाराज, मेहर बाबा, संत बिडकर महाराज, संत गंगागीर, संत जंकिदास महाराज और सती गोदावरी माताजी थे। साईं बाबा की भविष्यवाणी क स्वरुप उनकी मृत्यु 15 अक्टूबर को 83 वर्ष की आयु में 1918 में हुई थी। साईं ने अपने मौत की पुष्टि पहले ही कर दी थी। साईं बाबा को आज भी ईश्वक के रुप में पूजा जाता है। साई बाबा एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और फ़कीर थे, जो धर्म की सीमाओं में कभी नहीं बंधे। वास्तविकता तो यह है कि उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुस्लिमों की संख्या बराबर थी। श्रद्धा और सबूरी यानी संयम उनके विचार-दर्शन का सार है। उनके अनुसार कोई भी इंसान अपार धैर्य और सच्ची श्रद्धा की भावना रखकर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है। सबका मालिक एक है के उद्घोषक वाक्य से शिरडी के साईं बाबा ने संपूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कराया। उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया और कई ऐसे चमत्कार किए, जिनसे लोग उन्हें भगवान की उपाधि देने लगे।

साईं बाबा की शिक्षाएं

वैश्विक स्तर पर भी लोग साईं बाबा को जानते है। नश्वर चीजों का उन्हें कोई मोह नही था और उनका मुख्य उद्देश्य स्वयं को खुद की अनुभूति दिलाना था। वे लोगो को प्यार, दया, मदद, समाज कल्याण, संतोष, आंतरिक शांति और भगवन की भक्ति और गुरु का पाठ पढ़ाते थे। उन्होंने लोगो को धार्मिक भेदभाव करने से भी मना किया था। साईबाबा लोगो को हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्म का पाठ पढ़ाते थे, उन्होंने उनके रहने वाली मस्जिद को हिन्दू नाम द्वारकामाई का नाम भी दिया था, जिसमे हिन्दू और मुस्लिम दोनों एकसाथ साईबाबा को पूजते थे। साईबाबा की एक प्रसिद्ध सुभाषित “सबका मालिक एक” है। जो हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मो से जुडी हुई है, इसके साथ ही वे यह भी कहते थे की, “मुझे और और तुम्हे तुम्हारी प्रार्थना का जवाब मिल जाएंगा।” इसका साथ-साथ वे हमेशा “अल्लाहमालिक” बोल का भी उपयोग करते थे।साईं बाबा ने हर जाति और धर्म के लोगों को एकता का पाठ पढ़ाया। जाति, धर्म, समुदाय, इत्यादि व्यर्थ बातों में ना पड़कर आपसी मतभेद को दूर कर आपस में प्रेम और सद्भावना से रहना चाहिए, क्योंकि सबका मलिक एक है। यह साईं बाबा की सबसे बड़ी शिक्षा और संदेश है। साईं सदैव कहते थे कि जाति, समाज, भेदभाव को भगवान ने नहीं बल्कि इंसान ने बनाया है। ईश्वर की नजर में कोई ऊंचा या नीचा नहीं है। अत: जो कार्य स्वयं ईश्वर को पसंद नहीं है, उसे इंसानों को भी नहीं करना चाहिए, अर्थात जाति, धर्म, समाज से जुड़ी मिथ्या बातों में ना पड़कर प्रेमपूर्वक रहें और ग़रीबों और लाचार की मदद करें, क्योंकि यही सबसे बड़ी पूजा है। साईं के सिद्धांतों में दया और विश्वास अंतर्निहित है। उनके अनुसार अगर इन दोनों को अपने जीवन में समाहित किया जाए, तभी भक्ति का अनुराग मिलता है। सांईं बाबा ने यह संदेश भी दिया कि हमेशा श्रद्धा, विश्वाकस और सबूरी (सब्र) के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए। लोगों में मानवता के प्रति सम्मान का भाव पैदा करने के लिए साईं ने संदेश दिया है कि किसी भी धर्म की अवहेलना नहीं करें। उन्होंने कहा है कि सर्वधर्म सम्मान करते हुए मानवता की सेवा करनी चाहिए, क्योंकि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है।

साईं बाबा के चमत्कार

साईं बाबा ने अपने जीवन में कई चमत्कार किए हैंष जिसकी वजह से आज तक लोग उन्हें पूजते हैं। कहा जता है कि एक बार 3 साल की एक गरीब बच्ची जिसका नाम बाबु किर्वान्द्कर कुवे में गिर गई थी और डूबने लगी थी। शिर्डी के गाँव वाले उस कुंवे की तरफ भाग कर जाने लगते हैं तभी देखते हैं कि वो लड़की चमत्कार के स्वरुप कुएं से बाह निकल जाती है। उसके मुख पर बस यही रहता है कि वो साईं बाबा की बहन हैं। वहीं साईं बाबा के चमत्कार को लेकर एक कथा और है कि साईं बाबा को उनकी मस्जिद और दुसरे मन्दिरों में दिया जलाने का बहुत शौक था लेकिन तेल के लिए उनको वहा के बनियों पर आश्रित रहना पड़ता था | वो प्रत्येक शाम को दिया जलाते और बनियों से दान ले जाते | बनिये साईं बाबा को मुफ्त का तेल देकर थक गये थे और एक दिन उन्होंने साईं बाबा से माफी मांगते हुए तेल देने से मना कर दिया और कहा कि उनके पास तेल नही बचा | बिना किसी विरोध के साईं बाबा वापस अपने मस्जिद में लौट गये | अब उन मिटटी के दियो में उन्होंने पानी भरा और बाती जला दी | वो दिया मध्यरात्री तक जलता रहा |जब इसकी सुचना बनियों तक पहुची तो साईं बाबा के पास विपुल क्षमायाचना के लिए आये | साईं बाबा ने उन्हें क्षमा करदिया और कहा कि दुबारा झूठ मत बोलना | इस तरह साईं बाबा ने अपना चमत्कार दिखाते हुए पानी से दिया जला दिया | एक अन्य कथा के अनुसार एक बार राय बहादुर नाम का व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ साईं बाबा के दर्शन के लिए शिरडी आया | जैसे ही वो पति पत्नी बाबा के दर्शन करवापस जाने लगे ,मूसलाधार बारिश शुरु हो गयी | जोरो से बिजलिया कडकने लगी और तूफ़ान चलने लगा | साईं बाबा ने प्रार्थना की “हे अल्लाह , बारिश को रोक दो , मेरे बच्चे घर जा रहे है उन्हें शांति से घर जाने दो ” | उसके बाद बारिश बंद हो गयी और वो पति-पत्नी सकुशल घर पहुच गये |

साईं बाबा का व्रत एवं पूजा-विधि

साईं बाबा ने कभी भी व्रत-उपवास का समर्थन नहीं किया। लेकिन फिर भी आमतौर पर साईं बाबा को खुश करने के लिए और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए भक्त गुरुवार को साईं बाबा का व्रत रखते हैं। साईं बाबा गुरु के समान थे इसलिए उनकी पूजा विशेष रुप से गुरुवार को की जाती है। साईं व्रत कोई भी कर सकता है। साईं बाबा जात-पांत या और कोई भेदभाव नहीं मानते थे। उनका कहना था, 'सबका मालिक एक है'। ये व्रत कोई भी गुरूवार को साईं बाबा का नाम ले कर शुरू किया जा सकता। साईं बाबा के व्रत में सुबह या शाम को साईं बाबा के फोटो की पूजा करना किसी आसन पर पीला या लाल कपडा बिछा कर उस पर साईं बाबा का फोटो रख कर स्वच्छ पानी से पोछ कर चंदन या कुमकुम का तिलक लगाना चाहिये और उन पर पीला फूल या हार चढाना चाहिये अगरबत्ती और दीपक जलाकर साईं व्रत की कथा पढ़ना चाहिये और साईं बाबा का स्मरण करना चाहिये और प्रसाद बाटना चाहिये प्रसाद में कोई भी फलाहार या मिठाई बाटी जा सकती है। अगर संभव हो तो साईं बाबा के मंदिर में जाकर भक्तिभाव से बाबा के दर्शन करना चाहिए, और बाबा साईं के भजनों में भक्तिमय रहना चाहिए । शिरडी के साई बाबा के व्रत की संख्या 9 हो जाने पर अंतिम व्रत के दिन पांच गरीब व्यक्तियों को भोजन और सामर्थ्य अनुसार दान देना चाहिए। इसके साथ ही साई बाबा की कृ्पा का प्रचार करने के लिये 7, 11, 21 साई पुस्तकें या साईं सत्चरित्र , अपने आस-पास के लोगों में बांटनी चाहिए। इस प्रकार इस व्रत को समाप्त किया जाता है। इसे उददापन के नाम से भी जाना जाता है।

साईं व्रत कथा

कोकिला बहन और उनके पति महेशभाई शहर में रहते थे। दोनों में एक-दुसरे के प्रति प्रेम-भाव था, परन्तु महेशभाई का स्वाभाव झगडालू था। बोलने की तमीज ही न थी। लेकिन कोकिला बहन बहुत ही धार्मिक स्त्री थी, भगवान पर विश्वास रखती एवं बिना कुछ कहे सब कुछ सह लेती। धीरे-धीरे उनके पति का धंधा-रोजगार ठप हो गया। कुछ भी कमाई नहीं होती थी। महेशभाई अब दिन-भर घर पर ही रहते और अब उन्होंने गलत राह पकड़ ली। अब उनका स्वभाव पहले से भी अधिक चिडचिडा हो गया। एक दिन दोपहर का समय था ।एक वृद्ध महाराज दरवाजे पर आकार खड़े हो गए। चेहरे पर गजब का तेज था और आकर उन्होंने दल-चावल की मांग की। कोकिला बहन ने दल-चावल दिये और दोनों हाथों से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया, वृद्ध ने कहा साईं सुखी रखे। कोकिला बहन ने कहा महाराज सुख मेरी किस्मत में नहीं है और अपने दुखी जीवन का वर्णन किया।
महाराज ने श्री साईं के व्रत के बारें में बताया 9 गुरूवार (फलाहार) या एक समय भोजन करना, हो सके तो बेटा साईं मंदिर जाना, घर पर साईं बाबा की 9 गुरूवार पूजा करना, साईं व्रत करना और विधि से उद्यापन करना भूखे को भोजन देना, साईं व्रत की किताबें 7, 11, 21 यथाशक्ति लोगों को भेट देना और इस तरह साईं व्रत का फैलाव करना। साईबाबा तेरी सभी मनोकामना पूर्ण करेंगे, लेकिन साईबाबा पर अटूट श्रद्धा रखना जरुरी है। कोकिला बहन ने भी गुरुर्वार का व्रत लिया 9 वें गुरूवार को गरीबों को भोजन दिया से व्रत की पुस्तकें भेट दी ।उनके घर से झगडे दूर हुए, घर में बहुत ही सुख शांति हो गई, जैसे महेशभाई का स्वाभाव ही बदल गया हो। उनका धंधा-रोजगार फिर से चालू हो गया। थोड़े समय में ही सुख समृधि बढ़ गई। दोनों पति पत्नी सुखी जीवन बिताने लगे एक दिन कोकिला बहन के जेठ जेठानी सूरत से आए। बातों-बातों में उन्होंने बताया के उनके बच्चें पढाई नहीं करते परीक्षा में फ़ेल हो गए है। कोकिला बहन ने 9 गुरूवार की महिमा बताई और कहा कि साईं बाबा के भक्ति से बच्चे अच्छी तरह अभ्यास कर पाएँगे लेकिन इसके लिए साईं बाबा पर विश्वास रखना ज़रूरी है। साईं सबको सहायता करते है। उनकी जेठानी ने व्रत की विधि बताने के लिए कहा। कोकिला बहन ने कहा उन्हें वह सारी बातें बताई जो खुद उन्हें वृद्ध महाराज ने बताई थी। सूरत से उनकी जेठानी का थोड़े दिनों में पत्र आया कि उनके बच्चे साईं व्रत करने लगे है और बहुत अच्छे तरह से पढ़ते है। उन्होंने भी व्रत किया था और व्रत की किताबें जेठ के ऑफिस में दी थी। इस बारे में उन्होंने लिखा कि उनकी सहेली की बेटी शादी साईं व्रत करने से बहुत ही अच्छी जगह तय हो गई। उनके पडोसी का गहनों का डिब्बा गुम हो गया, अब वह महीने के बाद गहनों का डिब्बा न जाने कहां से वापस मिल गया। ऐसे कई अद्भुत चमत्कार हुए था। कोकिला बहन ने साईं बाबा की महिमा महान है वह जान लिया था। हे साईं बाबा जैसे सभी लोगों पर प्रसन्न होते है, वैसे हम पर भी होना।

साईं बाबा की आरती

आरती श्री साईं गुरुवर की |
परमानन्द सदा सुरवर की ||
जा की कृपा विपुल सुखकारी |
दुःख, शोक, संकट, भयहारी ||
शिरडी में अवतार रचाया |
चमत्कार से तत्व दिखाया ||
कितने भक्त चरण पर आये |
वे सुख शान्ति चिरंतन पाये ||
भाव धरै जो मन में जैसा |
पावत अनुभव वो ही वैसा ||
गुरु की उदी लगावे तन को |
समाधान लाभत उस मन को ||
साईं नाम सदा जो गावे |
सो फल जग में शाश्वत पावे ||
गुरुवासर करि पूजा - सेवा |
उस पर कृपा करत गुरुदेवा ||
राम, कृष्ण, हनुमान रूप में |
दे दर्शन, जानत जो मन में ||
विविध धर्म के सेवक आते |
दर्शन कर इच्छित फल पाते ||
जै बोलो साईं बाबा की |
जो बोलो अवधूत गुरु की ||
`साईंदास` आरती को गावे |
घर में बसि सुख, मंगल पावे ||

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