धनतेरस के बारे में
धनतरेस का संबंध भगवान धन्वन्तरि से है। भगवान धन्वन्तरि को चिकित्सा का देवता भी कहा जाता है। जब देवताओंं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था तो धनतेरस भगवान हाथ में अमृत का कलश पकड़ कर बाहर निकले थे और इसलिये ही बर्तन खरीदने की भी प्रथा है। इसी के मद्देनजर इस दिन आर्युवेदिक दिवस भी मनाया जाता है। इस दुनिया में स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं है और स्वास्थ्य धन की ही कामना करनी चाहिए।धनतेरस कथा
विवाह के बाद ठीक वैसा ही हुआ और चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत उसको ले जा रहे थे तो उसकी पत्नी ने काफी विलाप किया, लेकिन यमदूतों को अपना काम तो करना ही था । नवविवाहिता के विलाप को सुनकर यमदूतों ने यमराज से विनती की कि, हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धनतेरस पूजा विधि
-लकड़ी का पटड़ा रखें और उस पर रोली से स्वास्तिक बनाएं-उस पर मिट्टी के दीपक रख कर उसे जलाएं
-अब छेद के साथ एक कौड़ी खोल लें और उसे दीपक में लगा दें
-दीपक के चारों ओर गंगाजल छिड़कें ।
-दीपक पर रोली तिलक लगाये। फिर , उपर कच्चे चावल डाल दें ।
- दीपक पर चीनी या शक्कर चढ़ाएं
-एक सिक्का चढ़ाएं।
- दीपक को पुष्पांजलि दें।
- दीपक को मुख्य दरवाजे पर दक्षिण दिशी की तरफ रख दें