दिवाली सबसे अहम क्यों है। इसके पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण हैं। दिवाली का दिन सिर्फ हिंदुओं के लिये ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लिये खास है। हिंदुओं के इतिहास में इस दिन भगवान श्रीराम 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या वापस आये थे, तो जैन समुदाय के महागुरु, भगवान महावीर जी ने इस दिन आत्मज्ञान प्राप्त किया था। सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हर गोबिंद जी इस दिन बंदीगृह से आजाद हुए थे। बुद्ध समुदाय के लिये ये दिन इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि महाराजा अशोक ने इसी दिन अपनी गद्दी छोड़ कर बौद्ध धर्म अपनाया था।

दिवाली का महत्व

हिदुंओं के लिए महत्व

हिंदू मान्यताओं के मुताबिक रावण का वध करके श्रीराम 14 साल का वनवास खत्म करके इस दिन सीता और लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या लौटे थे। श्रीलंका से अयोध्या लौटते लौटते उन्हें 20 दिन लग गए थे। इसलिये दशहरे के ठीक 20 दिन बाद दिवाली मनाई जाती है। आज के दौर की बात करें तो रावण की लंका का नाम श्रीलंका हो गया है और अयोध्या अब उत्तर प्रदेश राज्य का जिला है। जब श्रीराम जी आए तो अयोध्यावासी बहुत खुश हो गए उन्होंने पूरी नगरी को जगमग दीपों के साथ प्रकाशमान किया। जहां तक नज़र जाती थी बस रोशनी ही रोशनी। ऐसा कोई घर नहीं था जहां दीया नहीं जला हो। इसलिये आज तक दिवाली में रोशनी करके हम खुशी मनाते हैं।

सिखों के लिए दिवाली का महत्त्व

दिवाली का महत्त्व

सिखों में इसे बंदी छोड़ दिवस कहा जाता है। इस दिन साल 1693 में सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हर गोबिंद जी ग्वालियर के किले से रिहा हुए थे। गुरु जी और उनके साथ अन्य राजकुमारों को शाहंशाह ने बंदी बनाया था। सिख धर्म के अनुयायियों के विरोध के चलते शाहशांह उन्हें रिहा करने को राजी हो गए। ऐसे में श्री गुरु हर गोबिंद जी ने कहा कि मैं तभी बाहर जाउंगा अगर सभी राजकुमारों को भी रिहा कर दिया जाए। शाहशांह ने चाल चली। उसने कहा कि सिर्फ वही राजकुमार बाहर जा पाएंगे जो एक वक्त में गुरु जी को हाथ से पकड़े हुए होंगे। ऐसा करना मुश्किल था क्योंकि राजकुमारों की संख्या 52 थी और एक वक्त में गुरु जी को ज्यादा से ज्यादा 10 लोग पकड़ सकते थे। तब श्री गुरु जी ने ऐसे कपड़े बनाए जिसमें कि  52 डोरियां थीं। सभी ने एक एक डोरी पकड़ी  और आजाद हो गए।

जैन धर्म में दिवाली

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जैन धर्म में दीवाली का महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन ही अंतिम जैन तीर्थांकर भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था। कहा जाता है कि भगवान महावीर ने उन देवताओं की उपस्थिति में निर्वाण पाया था जिन्होंने उनके जीवन से अंधकार दूर किया था। साथ ही भगवान महावीर के मुख्य अनुयायी गणधरा गौतम स्वामी ने भी इसी दिन ’केवलज्ञान’ प्राप्त किया था।

बौद्ध धर्म में दिवाली

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दिवाली के ही दिन माहाराज अशोक ने राजपाट छोड़ दिया था और बौद्ध धर्म अपनाया था। इस त्यौहार को बौद्ध धर्म में अशोक विजयादशमी भी कहते हैं । बौद्ध इस दिन अपने मठों को सजाकर ये उत्सव मनाते हैं।

दिवाली का जीवन में महत्व

दिवाली शब्द दीपावली से बना है जिसका मतलब होता है दीपों की आवली यानि लाइन। दिवाली के दिन रोशनी करने का एक और भी महत्व है, वो है अंधेरे को भगाना। अंधेरे को नकारात्मक माना जाता है और रोशनी से उसे हम खत्म कर सकते हैं। दिवाली सिखाती है कि अगर जिंदगी में कभी अंधेरा रुपी नेगेटिविटी आए तो उसे आशा का दीप जलाकर भगा दो। रोशनी सिखाती है कि जब भी आप पर या किसी और पर अत्याचार हो तो अपने अंदर की रोशनी को जलाकर उसे ज्वाला बना लो। जिस तरह दीपक खुद जलता है, लेकिन जग को रोशन करता है वैसे ही अंदर की ज्वाला भी चारों ओर उजाला कर देती।

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