दिवाली केवल एक त्योहार नहीं बल्कि कई छोटे छोटे त्योहारों का मिश्रण है। इस दिन सुबह से ही पर्व मनाना शुरू हो जाता है और देर रात तक उल्लास चलता है। पकवानों से लेकर नए कपड़ों तक और भाग्य आजमाने से लेकर नए व्यापार तक सब इस दिन शुरू होता है।
घर की साफ सफाई
दिवाली के दिन की शुरूआत साफ सफाई से होती है। यूं तो दिवाली से पहले ही घर साफ कर लिये जाते हैं, लेकिन इस दिन उन्हें और भी चमकाया जाता है। मंदिर से लेकर अलमारी तक सब साफ किये जाते हैं। दुकानों में विशेष सफाई करवाकर नए साल के कैलेंडर लगाए जाते हैं। सारा वातावरण शुद्ध कर लिया जाता है। नई रंग बिरंगी लाइट्स लगा दी जाती हैं। जहां कहीं भी साल भर सफाई नहीं होती थी वहां भी सफाई की जाती है। गोदाम, गैरेज, बिस्तर के नीच और घर के बाहर की सड़क तक सब साफ किये जाते हैं। दिवाली के दिन सफाई के पीछे एक कारण ये भी है कि इससे पहले सावन और भादों की बारिश से घर में कई धब्बे पड़ चुके होते हैं और रंग फीका हो जाता है। इसलिये इस दिन जमकर सफाई करके पूरा घर जगमगा दिया जाता है।
रंगोली और मां लक्ष्मी के पैर बनाना
घर जब पूरा साफ हो जाता है तो घर की बेटियां रंगोली बनाती हैं। गांव में तो गऊ के गोबर से पहले आंगन को लीपा जाता है और फिर चौका बनाकर उसे घर के अंदर तक लाया जात है। चौके पर मां लक्ष्मी के पैर लगाए जाते हैं जो सीधे पूजा स्थल तक जाते हैं। वहीं शहरों में गोबर की जगह रंग बिरंगे रंगों से रंगोली बनाई जाती है। रंगोली से ही मां के चरण भी बनाए जाते हैं। हालांकि आजकल रंगोली और चरण दोनो ही दुकानों में चिपकाने वाले मिल जाते हैं। जिन्हें बस लाकर आपको ज़मीन पर चिपकाना होता है।
पत्ते खेलने का रिवाज
पत्ते या कार्ड खेलना तब तक ही ठीक है जब तक की वो पैसे से ना जुड़े हों। एक बार पैसे के उपर बाजी लग गई तो ये जुआ बन जाता है। जुआ खेलना ग़ैरक़ानूनी भी है और ये हिंदू धर्म में गलत भी है। हां अगर मस्ती और टाइम पास के लिये पत्ते खेलें तो ये कोई बुरा नहीं है। अक्सर लोग दिवाली के दिन पत्ते खेलते हैं। जिसके पीछे दो कारण हैं। पहला है अपना भाग्य आजमाना। माना जाता है कि दिवाली के बाद नया साल शुरू होता है। तो इस दिन लोग पत्ते खेलकर ये पता लगाते हैं कि उनका भाग्य साथ दे रहा है या नहीं। अगर वो जीते तो मतलब सारा साल ही जीत होगी और अगर हारे तो वो किसी बड़े काम को हाथ नहीं डालेंगे। वहीं दूसरा कारण है पौराणिक कथा। माना जाता है कि इस दिन मां पार्वती ने भगवान शिव के साथ पासा फेंकने का खेल खेला था।
गिफ्ट देने की परंपरा
इस दिन एक दूसरे को गिफ्ट देने का बहुत पुराना रिवाज है। लोग अपने साथियों, घरवालों, दोस्तों, कर्मचारियों को कुछ ना कुछ गिफ्ट जरूर देते हैं। मिठाई के डिब्बे तो हर किसी के साथ अदला बदली होते ही रहते हैं। इस दिन गिफ्ट की मार्किट्स भी भरी रहती हैं। बाज़ार में तरह तरह की गिफ्ट आइट्म्स मिलती हैं। सस्ते से लेकर महंगे तक हर तरह के गिफ्ट वहां मौजूद होते हैं। इस दिन एक दूसरे को गिफ्ट देने से पारस्परिक संबंध मजबूत होते हैं और रिश्तों में गर्माहट रहती है।
नए कपड़े पहनने की परंपरा
दिवाली के दिन घर साफ करने के बाद सभी नहा धोकर नए कपड़े जालते हैं। इस दिन हर कोई अनपी जेब के हिसाब से नए कपड़े खरीद कर डालता है। नए कपड़े डालना शुभ माना जाता है। नए कपड़े या आभूषण डाल कर सभी मां लक्ष्मी का धन्यवाद करते हैं और हमेशा उन पर कृपा बनाए रखने की कामना करते हैं। दिवाली के दो दिन पहले धनतेरस पर सब लोग नया सामान खरीद लाते हैं और उन्हें आज के दिन उपयोग करना शुरू करते हैं। इस दिन वेस्टर्न कपड़ों की अपेक्षा भारतीय संस्कृति के कपड़ों को पहनने का रिवाज है। पुरुष कुरता और पायजामा पहनते हैं तो महिलाएं साड़ी या सूट। महिलाएं अपने हाथों में मेंहदी लगाती हैं। पुरुष बढ़ी हुई दाढ़ी और बाल कटवाकर फ्रेश होते हैं। छोटे बच्चे नए कपड़े पहन कर पटाखे खरीदने जाते हैं।
पटाखे
दिवाली में लाइट की जाती है। दिवाली का मकसद होता है जीवन में रोशनी भरने का। पहले दिवाली के दौरान मिट्टी के दीये जलाए जाते थे, धीरे धीरे उनकी जगह मोमबत्तियों ने ले ली और अब पटाखे ही पटाखे चलते हैं। पटाखे जब भी चलते हैं तो लाइट निकलती है। फुलझड़ियां, चक्रियां और अनार से हर जगह रोशनी भर जाती है। पटाखों से लोगों के बीच उत्साह आता है। बच्चे तो साल भर दिवाली का इंतजार बस पटाखों के लिये ही करते हैं। वहीं पटाखों के धुएं से बारिश की वजह से जो मच्छर आ गए होते हैं वो भी मर जाते हैं। पहले के जमाने में पटाखे सिर्फ अमीर लोग ही कर पाते थे, लेकिन धीरे धीरे जब प्रोडक्शन बढ़ा तो आम आदमी तक भी इसने पहुंच बना ली। मार्किट में हर जरूरत के हिसाब से पटाखे मिलते हैं।
रोशनी का महत्व
दिवाली के दिन रोशनी से अंधेरे को मारा जाता है। जैसे ही शाम होती है तो धीरे धीरे लोग घरों में रोशनी जलाना शुरू कर देते हैं। मिट्टी के दीयों में तेल डाल कर उन्हें जलाया जाता है, तरह तरह की मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। घर और बरामदे में इलेक्ट्रोनिक लाइट्स की झालर बिछा दी जाती है। कहीं लैंप जलते हैं तो कहीं सीएफएल। घर के बाहर और अंदर की सभी लाइट्स जला दी जाती हैं। ऐसा लगता है मानो फिर से दिन हो गया हो। देर तक मार्किट में रौनक रहती है सभी लोग घर के बाहर आकर पटाखे जलाते हैं। पूजा की मिठाई बांटी जाती है और एक दूसरे को बधाई दी जाती है।