षष्ठी से शुरू हुई दुर्गा मां की पूजा दसवीं को मूर्ति विसर्जन के साथ खत्म हो जाती है। माना जाता है कि इस दिन मां दुर्गा वापस कैलाश चली जाती हैं। मां को अलविदा कहने के लिय भक्त उनकी मूर्ति का विसर्जन करते हैं। पश्चिम बंगाल में इस दिन सिंदूर खेला मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं समूह में मां की मांग और पैरों में सिंदूर लगाकर पान और मिठाई खिलाकर आस्था प्रकट करती हैं। यह सिंदूर विवाहिता अपनी मांग में लगाकर सुहागिन रहने का आशीष मांगती हैं। कुंवारी लड़कियों के माथे पर इस सिंदूर को लगाया जाता है, जिससे उनकी शादी जल्दी हो जाए। । सभी एक दूसरे के परिवार और पति के लिये दुआ मांगती हैं।
इसके बाद आज्ञा लेकर सभी मूर्तियों को रथ या जीप पर लाद दिया जाता है। इस रथ के साथ पूरे शहर में एक शोभा यात्रा निकाली जाती है। साथ में चल रहे लोग मां के मंगल गीत गाते हैं। आतिशबाजी की जाती है। धीरे धीरे सभी लोग नदी किनारे पहुंचते हैं। सम्मानपूर्वक सभी मूर्तियों को निकाला जाता है। कुछ लोग उन्हें उठाकर नदी में घुसते हैं और फिर आगे जाकर उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है।
कई दिन की पूजा और रौनक के बाद जब पंडाल खाली हो जाते हैं तो सभी दुर्गा मां से बस यही दुआ करते हैं कि अगले साल जल्दी जल्दी पूजा आ जाए।