मूर्तियों में केमिकल
मूर्ति जब पानी में विसर्जित कर ली जाती है तो धीरे धीरे उसकी मिट्टी और रंगया तो बह जाती है या नदी के तली में बैठ जाता है। मुर्तिकार प्रतिमाओं को रंगने के लिए प्लास्टिक पेंट, विभीन्न रंगों के लिए स्टेनर, फेब्रिक और पोस्टर आदि रंगों का प्रयोग होता है। साथ ही वेराइटी के लिये फोरसोन पाउडर का प्रयोग होता है। चमक देने के लिए बार्निस लगाया जाता है। कुछ प्रतिमाओं को जलरोधी बनाने के लिए डिस्टेंपर का भी प्रयोग करते हैं। ये सभी जब पानी में घुलते हैं तो पानी में कैडयिम, लेड, कार्बन और टॉक्सिक केमिकल्स पानी के एसिड लेवल को बढ़ा देते हैं साथ ही पानी में धातुएं भी मिल जाती हैं। ये सब जल्दी से नहीं घुलता और पानी में ऑक्सीजन की कमी करता है। ऑक्सीजन कम होने से पानी में रहने वाले जीवों की जान खतरे में आ जाती है।अगर आंकड़ों की बात की जाए तो दुर्गा पूजा और गणेश पूजा को मिलाकर करीब 5 लाख मूर्तियां प्रवाहित की जाती हैं।

क्या हो सकता है समाधान
कई वैज्ञानिक और समाजसेवी संस्थाओं ने इसके लिये एक समाधान निकाला है। जिसके तहत पहले तो मूर्तिकारों को केमिकल वाले रंग नहीं लगाने के लिये जागरूक किया जाता है, फिर जब मूर्ति विसर्जन होता है तो संस्था के कुछ लोग विसर्जन के बाद मूर्ति को नदी से निकाल देते हैं। इससे पहले कि उसके रंग पानी में घुलें। तीसरा जो प्रतिमाओं के साथ विसर्जन के लिये पूजा का सामान आता है वो नदी की बजाय एक डिब्बे में डलवाया जाता है। हालांकि कई सरकारों ने मूर्ति विसर्जन के लिये कृत्रिम तालाब बनवाए हैं। जिससे की विसर्जन भी हो जाता है और नदियों को नुकसान भी नहीं पहुंचता।
मूर्ति विसर्जन का वीडियो
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