सुबह 5 बजे मंत्रोच्चार, दिन भर ढोल की थाप, हर तरफ बड़े बड़े पंडाल और पंडालों में मंत्र मुग्ध कर देने वाली सजावट। ये नज़ारा होता है दुर्गा पूजा का। दशहरे से पहले हर तरफ दुर्गा पूजा की धूम होती है। पंडालों में माता दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। दिन भर उनकी पूजा होती है। हर तरफ माहौल एक दम भक्तिमय हो जाता है।  पश्चिम बंगाल और असम में दुर्गा पूजा के वक्त सार्वजनिक अवकाश की घोषणा हो जाती है। दुर्गा मां, जिन्हें आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है। इनके 9 रूप हैं। नवरात्रि के नौ दिन सब रूपों की पूजा की जाती है।  दुर्गा पूजा में पंडालों के बाद जो सबसे ज्यादा भव्य चीज होती है वो होती है धुनूची नाच, इस नाच में महिलाएं लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहन कर, धूने के साथ नृत्य करती हैं। ये नृत्य कई अलग अलग प्रकार में किया जाता है। पूजा के अंत में मां दुर्गा की स्थापित मूर्ति का विसर्जन होता है। विसर्जन के दौरान ऊसान रस्म होती है जिसमें कि महिलाएं एक दूसरे को लाल रंग लगाती हैं।

महिषासुर का वध

एक बार महिषासुर नाम का एक राक्षस था। भैंस का रुप धरने के कारण उसका नाम महिषासुर था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर भक्ति की, जिससे खुश होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया कि तुम्हें, ना तो देवता मार पएगा और ना ही कोई असुर, ना ही मानव और ही पुरुष। तुम्हे बस एक स्त्री ही मार सकती है। वर मिलने के बाद महिषासुर ने तीनो लोकों को जीत लिया और देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। हर जगह हाहाकार मच गई। सब देवता भगवान शिव के पास गुहार लगाने गए। तब शिव भगवान ने माता दुर्गा का सृजन किया। माता दुर्गा के साथ महिषासुर की 9 दिन तक लड़ाई चली। महिषासुर भेष बदल बदल कर आक्रमण करता। अपनी मायावी शक्तियां प्रयोग में लाता,लेकिन दसवें दिन मां ने उसे मार कर विजय पाई।

मां दुर्गा के मंत्र

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते॥

मां दुर्गा मंत्र:

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमंविते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तुते॥


मूर्ति विसर्जन

पूजा के अंतिम दिन मूर्तियों को पंडालों से ट्रक या टैंपो में डाल कर विसर्जन के लिये ले जाया जाता है। विसर्जन के वक्त ढोल बजाते हुए मां के भक्त झूमते हुए जाते हैं और बड़ी ही श्रद्धा से नदी में जाकर मूर्ति का विसर्जन करते हैं।

मूर्तियां और पंडाल निर्माण

दुर्गा पूजा से कई महीने पहले ही पंडाल और दुर्गा माता की मूर्तियां बनाने का काम शुरू हो जाता है। सैंकड़ो से शुरू होकर ये मूर्तियां लाखों तक की होती हैं, वहीं पंडालों की कीमत करोड़ों तक चली जाती है। पंडाल सजाने वाले भी प्रोफेशनल होते हैं और मूर्तियां बनाने वाले भी। दुर्गा पूजा की वजह से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है और ये भारतीय अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव डालती हैं।

To read this article in English click here
September (Bhadrapada/ Ashwin)