गणपति बप्पा… मोर्या… इन्ही जयकारों से गणेश चतुर्थी के दिन पूरा देश गूंज उठता है। हर दुकान, हर घर और हर गली में बस बप्पा ही बप्पा। ऐसा लगता है मानो स्वयं भगवान धरती पर उतर आए हों।
शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण+पति-गणपति। संस्कृत कोषानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के स्वामी।
भगवान गणेश की गणेश-चतुर्थी के दिन सोलह उपचारों से वैदिक मन्त्रों के जापों के साथ पूजा की जाती है। भगवान की सोलह उपचारों से की जाने वाली पूजा को षोडशोपचार पूजा कहते हैं। गणेश-चतुर्थी की पूजा को विनायक-चतुर्थी पूजा के नाम से भी जाना जाता है। गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक त्योहार है जो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेश जी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। ये देव समाज में सर्वोपरि स्थान रखते हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म हुआ था। भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं। गणेशजी का वाहन चूहा है। ऋद्धि व सिद्धि गणेशजी की दो पत्नियां हैं। इनका सर्वप्रिय भोग लड्डू हैं। प्राचीन काल में बालकों का विद्या-अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था। आज बालक छोटे-छोटे डण्डों को बजाकर खेलते हैं। यही कारण है कि लोकभाषा में इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है।
गणेश चतुर्थी पूजा
भूले से भी ना देखें चंद्रमा!
शास्त्रनुसार गणेश चतुर्थी अर्थात कलंक चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना गया हैं। इस दिन चंद्र दर्शन करने से व्यक्ति को एक साल तक मिथ्या कलंक लगता है। भगवान श्री कृष्ण को भी चंद्र दर्शन का मिथ्या कलंक लगने के प्रमाण हमारे शास्त्रों में विस्तार से वर्णित हैं।चंद्रमा देखने के बाद कंलक से बचाने के उपाय
यदि भूल से भी चौथ का चंद्रमा दिख जाय तो श्रीमद् भागवत् के 10वें स्कन्ध के 56-57वें अध्याय में दी गई स्यमंतक मणि की चोरी की कथा का आदरपूर्वक श्रवण करना चाहिए। भाद्रपद शुक्ल तृतिया और पंचमी के चन्द्रमा का दर्शन करना चाहिए, इससे चौथ को दर्शन हो गए तो उसका ज्यादा खतरा नहीं होगा। मानव ही नहीं पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण भी इस तिथि को चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक से नहीं बच पाए थे।श्लोक: भाद्रशुक्लचतुथ्र्यायो ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपिवा। अभिशापीभवेच्चन्द्रदर्शनाद्भृशदु:खभाग्॥
उपरोक्त श्लोक के अनुसार जो जानबूझ कर अथवा अनजाने में ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। उसे बहुत दुःख उठाना पडेगा। शास्त्र गणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लेने पर कलंक अवश्य लगता हैं। ऐसा गणेश जी का वचन हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन न करें यदि भूल से चंद्र दर्शन हो जाए तो उसके निवारण के निमित्त निम्नलिखित उपाय करें जिसे चंद्रमा के दर्शन से होने वाले मिथ्या कलंक का ज्यादा खतरा नहीं होगा। दोष मुक्त हो जाएंगे। यदि अज्ञानतावश या जाने-अनजाने चांद दिख जाए तो निम्न मंत्र का पाठ करें। यदि आप पर कोई मिथ्यारोप लगा है तो भी इसका जाप कर सकते हैं।
मिथ्या आरोप निवारक मंत्र: सिंह प्रसेनम् अवधात, सिंहो जाम्बवता हत:। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्रास स्वमन्तक॥
इसके अतिरिक्त करें यह उपाय
1. भागवत की स्यमंतक मणि की कथा सुने यां पाठ करें।2. सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जांबवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः।। इस मंत्र का का 21 बार जाप करें।
3. एक पत्थर अपने पड़ोसी की छत पर फैंक दीजिए।
4. शाम के समय अपने अतिप्रिय निकट संबंधी से कटु वचन बोलें तत्पश्चात अगले दिन प्रातः उससे से क्षमा मांग लें।
5. आईने में अपनी शक्ल देखकर उसे बहते पानी में बहा दें।
6. 21 अलग-अलग पेड़-पौधों के पत्ते तोड़कर अपने पास रखें।
7. मौली में 21 दूर्वा बांधकर मुकुट बनाएं तथा इस मुकुट को गणपति मंदिर में गणेश जी के सिर पर सजाएं।
8. रात के समय मुहं नीचे करके और आंखें बंद करके आकाश में स्थित चंद्रमा को आईना दिखाइए तथा आईने को चौराहे पर ले जाकर फैंक दीजिए।
9. गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति पर 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बांट दें।
10. शाम के समय सूर्यास्त से पहले किसी पात्र में दही में शक्कर फेंट लें, इस घोल को किसी दोने में रख लें तथा इस घोले में अपनी शक्ल देखकर अपनी समस्या मन ही मन कहें तत्पश्चात इस घोल को किसी श्वान को खिला दें।
पौराणिक कथाएं
1 .हिंदू मान्यता के अनुसार एक बार मां पार्वती नहाने जा रही थीं। वो चाहती थीं कि कोई बाहर खड़ा रहकर दरवाजे पर सुरक्षा करे। तब मां पार्वती ने नहाते वक्त अपनी मैल और मिट्टी से एक प्रतिमा बनाई। इस प्रतिमा को दरवाजे के बाहर सुरक्षा के लिये तैनात किया। ये प्रतिमा उनका पुत्र यानि मानस पुत्र कहलाई। जब भगवान शिव वहां पहुंचे और अंदर जाने लगे तो प्रतिमा ने उन्हें भी अंदर नहीं जाने दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में मां पार्वती बाहर आईं और उन्हें सारी बात बताई। शिव भगवान को अपनी ग़लती का अहसास हुआ। अगर ये मां पार्वती का मानस पुत्र है तो वो उनका भी पुत्र हुआ। ऐसा सोच कर शिव भगवान ने अपने गणों को आदेश दिया कि धरती लोक पर जाएं और सबसे पहली जो भी जिंदा चीज मिलती है उसका सिर ले आएं। गणों को एक हाथी का बच्चा मिला और वो उसका सिर ले आए। शिव भगवान ने हाथी का सिर धड़ पर लगा कर उसे फिर से ज़िदा कर दिया। उन्हें नाम दिया गया गजानन। "गज" का मतलब "हाथी" और "अनन" का मतलब "सिर"। बाद में भगवान शिव ने गजानन को अपनी सेनाओं का मुखिया बना दिया, जिसकी वजह से उनका नाम गणेश पड़ा। "गण" का मतलब "शिव भगवान की फौज" और "ईश" का मतलब "भगवान"।2 .एक बार मां पार्वती और शिव भगवान नदी के तट पर चौपड़ खेलने लगे। हार जीत का फैसला कौन करेगा इसके लिये भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी. और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है. परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है. इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता.
तीन बार चौपड़ खेली गई और तीनो बार मां पार्वती जीतीं, लेकिन बालक ने भगवान शिव को विजयी बता दिया। ये सुनकर मां पार्वती को क्रोध आ गया और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व किचड में पडे रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ है। बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये एक साल बाद नाग कन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई। एख साल बाद वहां नाग कन्याएं आईं. नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया. उसकी श्रद्वा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए. और पैरों में शक्ति पाकर वो चलने लगा। बालक बाद में चलता हुआ कैलाश पहुंचा और शिव भगवान को सारी बात बताई। उस दिन से पार्वती जी शिव जी से विमुख हो गई. देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया. इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वो भी खत्म हो गई। व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई. यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा हुई. माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया। व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें।
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