गणेशजी के नाम लेते ही हर कार्य शुभ हो जाता है तो अगर उनकी पूजा करें या व्रत रखें तो कितना फल मिलेगा। गणेश चतुर्थी के दिन साक्षात गणेश भगवान धरती पर विराजमान होते हैं। ऐसे में उनका व्रत रखना और पूजा करनी बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है।

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पूजा विधि

-सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें

-नए और साफ कपड़े डालें

-लाल रंग के कपड़े हों तो ज्यादा शुभ है

-उत्तर दिशा की ओर करके गणपति जी का पूजन करें

-पंचामृत से गणेश जी की प्रतिमा को स्नान करवाएं

गणेश चतुर्थी पूजा-विधि

-केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती करें। उनको मोदक के लड्डू अर्पित करें। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। श्री गणेश जी का श्री स्वरूप ईशाण कोण में स्थापित करें और उनका श्री मुख पश्चिम की ओर रहे।
-शाम के वक्त गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश पुराण, गणेश चालीसा, गणेश स्तुति, श्रीगणेश सहस्रनामावली, गणेश जी की आरती, संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करें।

-अंत में गणेश मंत्र ऊं गणेशाय नम: अथवा ऊं गं गणपतये नम: का अपनी श्रद्धा के अनुसार जाप करें।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा

एक बार मां पार्वती और शिव भगवान नदी के तट पर चौपड़ खेलने लगे। हार जीत का फैसला कौन करेगा इसके लिये  भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी. और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है. परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है. इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता.
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तीन बार चौपड़ खेली गई और तीनो बार मां पार्वती जीतीं, लेकिन बालक ने भगवान शिव को विजयी बता दिया। ये सुनकर मां पार्वती को क्रोध आ गया और  उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व किचड में पडे रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ है। बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये एक साल बाद नाग कन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई। एख साल बाद वहां नाग कन्याएं आईं. नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया. उसकी श्रद्वा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए. और पैरों में शक्ति पाकर वो चलने लगा। बालक बाद में चलता हुआ कैलाश पहुंचा और शिव भगवान को सारी बात बताई। उस दिन से पार्वती जी शिव जी से विमुख हो गई. देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया. इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वो भी खत्म हो गई। व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई. यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा हुई. माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया। व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें।


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