गणेश चतुर्थी एक ऐसा त्योहार है जो कि बड़े ही जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यूं तो पूरे देश में ही गणेश चतुर्थी मनाई जाती है, लेकिन महाराष्ट्र में इस दिन की रौनक ही देखने लायक होती है। ऐसा कोई गांंव नहीं ऐसा कोई कस्बा या गली नहीं जहां गणपति जी के पंडाल लगाकर उनकी स्थापना नहीं की गई हो। लोगों ने अपने घर में भी गणपति जी को विराजमान किया होता है। गणेश चतुर्थी के दिन गणपति जी की प्रतिमाओं को बड़े ही चाव से विराजमान किया जाता है। हर जगह डीजे और बैंड बाजे बजते हैं, एक दूसरे को मिठाइयां बांटी जाती हैं। हर तरफ बस गणपति जी की जय जयकार सुनाई देती है।

गणेश महोत्सव पंडाल

प्रतिमाओं की स्थापना

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की प्रतिमाों को पंडाल या घर में स्थापित किया जाता है। नौ दिन तक पूजा पाठ किया जाता है और फिर समुद्र, नदी या तालाब में इनका विसर्जन किया जाता है। हालांकि ऐसा नहीं है कि सबको एक ही दिन विसर्जन करना होता है, कुछ लोग पहले कर देते हैं और कुछ लोग 9 दिन के बाद भी करते हैं। अधिकतर लोग इस दौरान ही विसर्जन करते हैं। जिस दिन विसर्जन होते हैं तो मुंबई की सड़कों पर हर जगह ढोल बाजे और गणपति की प्रतिमा लिये लोग नज़र आते हैं। नंगे पांव लोग दूर दूर से चलकर समुद्र किनारे पहुंचते हैं। आगे आगे गणपति जी चलते हैं और पीछे पीछे उनके भक्त नाचते और भक्ति गीत गाते हुए चलते हैं। मुंबई के बाद गणेश चतुर्थी हैदराबाद में सबसे ज्यादा मनाई जाती है। जहां सबसे ऊंची गणेश जी की प्रतिमा भी विराजमान की जाती है। गणेश जी की मू्र्तियां बनाने वाले ये काम करीब 8 महीने पहले ही शुरू कर देते हैं। फिर भी लोगों की डिमांड पूरी नहीं कर पाते। कई मीटर ऊंची प्रतिमाओं को फूले मालाओं से सजाए ट्रकों पर लाया जाता है। अगर पूरे समुदाय या सोसाइटी ने गणपति जी को विराजित किया है तो शाम और सुबह सभी लोग मिलकर पूजा पाठ करने आते हैं। माना जाता है कि इस त्योहार को बढ़ावा माहाराज शिवाजी ने दिया था। जिसके पीछे मकसद था अपनी संस्कृति और राष्ट्रीयता को बढ़ावा देना ताकि मुगलों को और भी कमजोर बनाया जा सके। शिवाजी के बाद धीरे धीरे लोगों ने इस त्योहार में रूची दिखानी कम कर दी। फिर जब स्वतंत्रता संग्राम का वक्त आया तो 1894 में लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकत्रित करने के लिये इसको फिर से बढ़ावा दिया। इतने दिन पूजा पाठ करने के बाद पूरे चांद की रात को प्रतिमाओं को सरोवर के पास ले जाया जाता है और फिर बड़े ही सत्कार के साथ उनका विसर्जन किया जाता है।

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गणपति भगवान की महत्ता

गणपति भगवान सीखने के देवता हैं। वो “विघ्नहर्ता” हैं। विघ्नहर्ता का मतलब आपकी सभी मुश्किलों को दूर करने वाले। कहा जाता है कि उनके भारी शरीर में ज्ञान है और चूहा जिसकी आदत होती है किसी भी चीज को काटने कि तो वो हमेशा उनसे सवाल पूछता रहता है। गणपति जी उसके हर सवाल का जवाब देते हैं।
गणपति के भक्त मानते हैं कि कोई भी काम बगैर गणपति जी की आज्ञा के शुरू करें तो वो अच्छा फल नहीं देता। तभी तो भारत में हर शुभ कार्य से पहले गणपति जी की पूजा होती है। चाहे वो शादी के कार्ड हों या शादी के लिये निमंत्रण, ऑफिस का मुख्य द्वार हो या बड़ी फैक्ट्री का कारखाना। हर जगह गणपति जी की मूर्ति रहती ही है।

अलग अलग प्रतिमाएं

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की अलग अलग प्रतिमाएं विराजित की जाती हैं। कोई बहुत बड़ी होती है तो कई छोटी सी। कहीं पंडाल में सजाया जाता है तो कहीं घर में। गणेश जी की प्रतिमाएं भी अलग अलग थीम पर बनाई जाती  हैं। बढ़ती दुर्घटनाओं से बचने के लिये कहीं गणेश जी की ट्रेफिक हवलदार की तरह बनाया जाता है तो कहीं सब्जियों और फलों से ही पूरी मूर्ति बना दी जाती है। गणेश जी को लोग अपने किसी खास मेहमान की तरह रखते हैं। वो आते हैं। उनकी पूजा होती है और कुछ दिन बाद वो फिर से देवलोक वापस चले जाते हैं। विसर्जन के वक्त भक्त हमेशा यही कहते हैं कि “हे गणपति बप्पा… अगले बरस आप जल्दी आना”


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