गणेश उत्सव एक ऐसा उत्सव है जिसमें ना केवल भगवान गणेश की बल्कि माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। इस उत्सव में मां एवं पुत्र दोनों को अराध्य मान पूजा जाता है। माता पार्वती को गौरी भी कहा जाता है क्योंकि पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण “पार्वती” और अत्यंत गौरवर्ण होने की वजह से “गौरी” कहलाई जाती है। गणेश महोत्सव के एक दिन पहले गौरी पूजन किया जाता है। गौरी पूजन में महिलाएं माता पार्वती की आराधना करती हैं। यह त्योहार महाराष्ट्र में मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त मुंबई, पुणे व आस-पास के दूसरे क्षेत्रों में भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है। पूजन में कई विधि-विधान होते हैं। गणेश की मां देवी पार्वती का दूसरा नाम गौरी है, जबकि पुणे जैसे कुछ क्षेत्रों में देवी गौरी को गणेश की बहन माना जाता है, लेकिन देवी की पूर्ण भक्ति के साथ पूजा की जाती है और गणेश चतुर्थी से एक दिन पहले घर का स्वागत किया जाता है। माँ पार्वती भगवान शिव की अर्धांगिनी और भगवान गणेश की माता है। महाराष्ट्र में गौरी पूजा को ‘मंगला गौरी’ भी कहा जाता है। महोत्सव महाराष्ट्र महिलाओं द्वारा महान भक्ति और उत्साह के साथ मनाया जाता है। वे गौरी पूजन के दिन पूरी रात जागकर माँ की अर्चना करती हैं और झिम्मा और फुगड़ी जैसे पारंपरिक खेलों में खुद को शामिल करते हैं। माता पार्वती की आराधना के पर्व को गौरी हब्बा भी कहा जाता है। इस दिन को हरतालिका तीज के रूप में भी मनाया जाता है। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को कुछ क्षेत्रों में हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है तो कुछ क्षेत्रों में इसे गौरी हब्बा पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसके पिछे की मान्यता यह है कि माता पार्वती इस दिन सुहागिन महिलाओं को जहां पति की लंबी आयु का वरदान देती हैं तो वहीं अविवाहित कन्याओं को इच्छित वर मिलने का वरदान प्रदान करती हैं। चतुर्थी तिथि को माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगे उबटन से भगवान श्री गणेश का शरीर बनाकर उसमें जान डाली थी। इसलिये गणेश चतुर्थी से पहले दिन माता पार्वती की आराधना का यह पर्व गौरी हब्बा मनाया जाता है।

गौरी पूजा का महत्व
गणेश महोत्सव के समय गौरी पूजा का बहुत महत्व होता है। भक्तों का मानना है कि घर देवी गौरी को लाने से उन्हें धन और समृद्धि मिल जाएगी। कुछ क्षेत्रों में गौरी पूजा को देवी लक्ष्मी के उपवास के रूप में माना जाता है। देवी गौरी को तीन दिनों तक रख कर उनकी पूजा और अराधना की जाती है। पहला दिन अवाहन होता है, दूसरे दिन सत्यनारायण की पूजा की जाती है और तीसरे एंव अंतिम दिन माता गौरी का विसर्जन पानी में किया जाता है। गौरी पूजा की तैयारी उसी तरह की जाती है जैसे गणपति महोत्सव की होती है। महिलाएं घर के आंगन में रंगोली बनाती है। माता गौरी के कदमों को चिह्नित करती हैं और फिर देवी गौरी की मूर्ति को घर लाया जाता है। गणेश चतुर्थी जो कि भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है यह एक प्रमुख उत्सव है। इस उत्सव में दस दिनों तक भगवान गणेश की पूजा का की जाती है। लेकिन गणेश चतुर्थी से पहले दिन यानि शुक्ल तृतीया को मां गौरी की पूजा की जाती है। हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार विवाह के समय माँ पार्वती की पूजा करने का बहुत ही महत्व होता है। माँ गौरी को सभी देवियों की स्वामिनी कहा जाता है। गौरी पूजा इस दिन देवी पार्वती का आवाहन किया जाता है। गौरी पूजा करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। महिलाओं के लिए एक ख़ास त्यौहार है।
गौरी गणेश की कथा
गौरी गणेश को लेकर एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार "एक बार देवी पार्वती स्नान करने के लिए भोगावती नदी गयीं। उन्होंने अपने तन के मैल से एक जीवंत मूर्ति बनायी और उसका नाम 'गणेश' रखा। पार्वती ने उससे कहा- 'हे पुत्र! तुम द्वार पर बैठ जाओ और किसी पुरुष को अंदर मत आने देना।' कुछ देर बाद भगवान शिव वहाँ आए। द्वार पर पहरा दे रहे गणेश ने उन्हें देखा तो रोक दिया। इसे शिव ने अपना अपमान समझा। क्रोधित होकर उन्होंने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और भीतर चले गए। जब माता पार्वती ने खाने के लिए दो थालियां निकाली तो शिव ने दूसरी थाली का कारण पूछा तब माता पार्वती ने गणेश के बारे में बताया। शिव ने कहा कि उन्होंने उस बालक को मार दिया है। यह सुनकर पार्वती विलाप करने लगीं। तब पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। इस प्रकार पार्वती पुत्र गणेश को पाकर प्रसन्न हो गयीं। उन्होंने पति तथा पुत्र को भोजन परोस कर स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर घटित हुई थी, इसलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।
गौरी की पूजा विधि
गणेश उत्सव के दिन गौरी व्रत रखने के साथ-साथ माता पार्वती की पूजा की जाती है। माता पार्वती को आदिशक्ति का अवतार भी माना जाता है। इस पूजा में माता पार्वती की पूजा कर अनाज के कुठले (टंकी) पर स्थापना की जाती है। आम या केले के पत्तों से इस प्रतिमा के ऊपर छत या कहें पंडाल का बनाया जाता है। तत्पश्चात माता पार्वती की आराधना की जाती है। मान्यता है कि विधि-विधान और सच्ची श्रद्धा से पूजा करने पर वहां भगवान गणेश जी अवश्य पधारते हैं और घर में सुख-शांति, धन-धान्य व संपन्नता का वरदान देते हैं। श्री गणेश के पूजन से पूजा शुरू की जाती हा। भगवान गणेश को सर्वप्रथम स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। गंध, पुष्प, अक्षत अर्पित करें। अब देवी पार्वती का पूजन शुरू करें। देवी पार्वती की मूर्ति भगवान शिव के बायीं और स्थापित करना चाहिए। मूर्ति में देवी पार्वती का आवाहन करें। आवाहन यानी कि बुलाना। देवी पार्वती को अपने घर में आसन दें। अब देवी को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। अब देवी पार्वती को वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं। अब पुष्पमाला पहनाएं। सुगंधित इत्र अर्पित करें। अब तिलक करें। अब धूप व दीप अर्पित करें। देवी पार्वती को फूल और चावल अर्पित करें। श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक लगाएं। आरती करें। आरती के पश्चात् परिक्रमा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। देवी पार्वती पूजन के दौरन ’’ऊँ गौर्ये नमः’’ या ’’ऊँ पार्वत्यै नमः’’ इस मंत्र का जप करते रहें।