गंगा सप्तमी एक हिन्दू त्योहार है जो ज्यादातर भारत के उत्तरी हिस्सों में मनाया जाता है। इसे गंगा पूजन या गंगा जयंती भी कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदी गंगा पृथ्वी पर उतरी थी। इस पृथ्वी पर यह गंगा के जन्म एवं उनके अवतरण का दिन है। गंगा सप्तमी बैसाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी यानि सातवें दिन मनाई जाती है। गंगा को ऋषि भागीरथ कठोर तपस्या करने के बाद धरती पर लाए थे। इसलिए गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है। गंगा के कई नाम है। अलकनंदा, मंदाकनी, भागीरथी, जान्हवी इत्यादि। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से सब पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है। इस वर्ष गंगा सप्तमी गुरुवार, 27 अप्रैल को मनाई जाएगी।
गंगा सप्तमी का महत्व
गंगा भारत की सबसे पवित्र नदियों में प्रमुख है। गंगा को मां गंगा कहा जाता है। जैसे मां अपने बच्चों की सब गलतियों को माफ कर उसे गले लगा लेती है। वैसे ही गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के सारे पाप, सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। गंगा सप्तमी के दिन इसमें स्नान करना बहुत शुभ एवं फलदायक माना जाता है। यही कारण है कि इस दिन दूर-दूर से भक्त गंगा के घाटों पर स्नान करने आते हैं। लोग देवी गंगा की पूजा करते है। गंगा के कई घाटों पर गंगा आरती का आयोजन किया जाता है। हरिद्वार की गंगा आरती पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसमें लाखों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं। गंगा सप्तमी के दिन गंगा पूजन एवं स्नान से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान की प्राप्ति होती है। सभी पापों का क्षय होता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन से मांगलिक दोष से ग्रसित जातकों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। विधि-विधान से किया गया गंगा का पूजन अमोघ फल प्रदान करता है।
गंगा उत्पति की कथा
मां गंगा के स्वर्ग लोक से धरती पर आने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है। एक कथा के अनुसार गंगा का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। तो वहीं कहा जाता है कि गंगा का जन्म भगवान विष्णु के अंगूठे से हुआ था। एक अन्य मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। गंगा के पुनर्जन्म से जुड़ी सबसे प्रचलित कहानी यह भी है कि एक समय पर सागर नामक एक राजा राज करते थे। जिन्होंने कौशल नगर पर शासन किया था। राजा सागर सूर्यवंशी थे। उन्होंने अपने यश को बढ़ाने के लिए सौ अश्वसमेघ यज्ञ का आयोजन कराया। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई सफलतापूर्वक सौ अश्वमसमेघ यज्ञ करता है तो वह स्वर्ग लोक का राजा बन जाता है। जब इन्द्र को राजा द्वारा सौ यज्ञ कराने की बात का पता चला तो वो वह घबरा गए। उन्हें अपने स्वर्ग के शासन को लेकर असुरक्षा की भावन ने ग्रसित कर दिया। वो ऐसा नहीं होने देना चाहते थे। इसलिए सौवें अश्वसमेघ यज्ञ के वक्त इन्द्र ने बलिदान किए जाने वाले घोड़े को चुरा कर ऋषि कपिल के आश्रम में छुपा दिया। घोडे को ढूंढने के लिए राजा ने अपने साठ हजार सैनिकों को काम पर लगा दिया। तब घोड़ा ऋषि कपिल के आश्रम में बंधा मिला। गलतफहमी के शिकार राजा सागर ने ऋषि को अपराधी माना और उनके साथ युद्ध किया। जिससे कपिल मुनि क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा को श्राप दे दिया कि तुम्हारा वंश खत्म हो जाएगा। तुम्हारी पीढ़ी का हर पुत्र जन्म लेते ही मर जाएगा। ऋषि कपिल की बात सच हो गई राजा के कुल में जिसने भी जन्म लिया वो उसी समय मृत्यु को प्राप्त हो गया। राजा के वंशो में से एक पुत्र बच्चे जन्मे जिनका नाम भागीरथ था। किन्तु अपने पूर्वजों को मरता देख उन्होने सिंहासन ग्रहण करने से पहले इस श्राप से मुक्ति का मार्ग ढूंढना चाहा। जिसके लिए उन्होने तपस्या की। केवल देवी गंगा के धरती पर आगमन से उनके पूर्वजों को मुक्ति मिल सकती थी अन्यथा वो ऐसे ही प्रेत योनी में भटकते रहते। इसलिए भागरीथ हिमालय चले गए और ब्रह्म देव को प्रसन्न करने के हेतु हजारों वर्षों तक तपस्या में लीन हो गए। राजा भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रहम देव प्रकट हुए और गंगा को धरती पर भेजने का वरदान दे गए किन्तु उन्होंने कहा कि गंगा के वेग से धरती पर प्रलय आ सकता है उसके वेग को केवल देव आदि देव महादेव ही संभाल सकते हैं। जिसके बाद भागीरथ ने शिवजी का ध्यान किया और सालों की तपस्या के बाद शिवजी प्रसन्न होकर गंगा के वेग को संभालने के लिए राजी हो गए। उन्होंने अपने बालों को खोला और जब स्वर्ग गंगा धरती की और प्रवाहित हुईं तो शिवजी ने उन्हें अपनी जटाओं में समेट लिया और उनकी जटा के एक बाल से गंगा धरती पर प्रकट हुईं। जिससे भागरीथ के पूर्वजों को श्राप से मुक्ति मिली। तभी से यह दिन गंगा सप्तमी के नाम से मनाया जाता है। बाद में नदी गंगा नदी को ऋषि सागे जहू की बेटी जहांवी के रूप में जाना जाने लगा।
गंगा सप्तमी की पूजा विधि
गंगा सप्तमी एक प्रकार से गंगा मैया के पुनर्जन्म का दिन है इसलिये इसे कई स्थानों पर गंगा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है। यदि गंगा मैया में स्नान करना संभव न भी हो तो गंगा जल की कुछ बूंदे साधारण जल में मिलाकर उससे स्नान किया जा सकता है। स्नानादि के पश्चात गंगा मैया की प्रतिमा का पूजन कर सकते हैं। भगवान शिव की आराधना भी इस दिन शुभ फलदायी मानी जाती है। इसके अलावा गंगा को अपने तप से पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ की पूजा भी कर सकते हैं। गंगा पूजन के साथ-साथ दान-पुण्य करने का भी फल मिलता है। ध्यान काल में घर की उत्तर दिशा में लाल कपड़े पर जल का कलश स्थापित करें। ॐ गंगायै नमः का जाप करते हुए जल में थोड़ा सा दूध, रोली, अक्षत शक्कर, इत्र व शहद मिलाएं तथा कलश में अशोक के 7 पत्ते डालकर उस पर नारियल रखकर इसका पंचोपचार पूजन करें। शुद्ध घी का दीप करें, सुगंधित धूप करें, लाल कनेर के फूल चढ़ाएं, रक्त चंदन चढ़ाएं, सेब का फलाहार चढ़ाएं व गुड़ का भोग लगाएं। इस विशेष मंत्र को 108 बार जपें। इसके बाद फल किसी गरीब को बांट दें। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है और जन्म जन्मांतर तक का उद्धार होता है।