गुग्गा जाहर पीर जी जिन्हे गुगा, गोगाजी के नाम से भी जाना जाता है। गुगा जी को यूं तो पूरे विश्व में ही पूजा जाता है, लेकिन राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में इनकी विशेष तौर पर पूजा की जाती है। राजस्थान और हिमाचल में शायद ही ऐसा कोई गांव होगा जहां गुगा जी का कोई मंदिर ना हो। हर साल सावन के वक्त यहां मेले लगते हैं, लंगर होते हैं और दंगल भी कराए जाते हैं। गुगा जी में लोगों की बहुत ज्यादा आस्था है। जाहर पीर जी से कोई सच्चे दिल से मांगे तो उसी वक्त मुराद पूरी हो जाती है। ऐसे करोड़ों अनुभव लोगों ने किये हैं जहां उन्हें गुगा जी से मांगने पर सब मिल गया।
राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले का गोगामेड़ी शहर है यहां भादव शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी का मेला लगता है। इन्हे सभी धर्मों के लोग पूजते है । वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परम शिष्य थे। चौहान वीर गोगाजी का जन्म चुरू जिले के ददरेवा गाँव में विक्रम संवत १००३ में हुआ था, सिद्ध वीर गोगादेव का जन्मस्थान, जो दत्तखेड़ा ददरेवा राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है। जहाँ पर सभी धर्मों के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। मुस्लिम समाज के लोग जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मन्नत माँगने और मत्था टेकने आते हैं। यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
मान्यता
मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी जाहरवीर हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी संप्रदायों के लोक प्रिय देवता है यह पीर नाम के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। गोगा जाहरवीर का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) शासक (जेवरसिंह) चौहान वंश के राजपूत की पत्नी बाछल के कोख से गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से भादो शुक्ल नवमी को हुआ था। जिस समय गोगाजी का जन्म हुआ उसी समय एक ब्राह्मण के घर नाहरसिंह वीर का जन्म हुआ। और एक हरिजन के घर भज्जू कोतवाल का जन्म हुआ और एक बाल्मीकि के घर रत्ना जी का जन्म हुआ। यह सभी गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य हुए। गुरु गोरखनाथ जी के नाम के पहले अक्षर से ही गोगाजी का नाम रखा गया। गुरु का गु और गोरख का गो यानी की गुगो जिसे बाद में गोगा जी कहा जाने लगा। उन्होंने तंत्र की शिक्षा गोगा जी के गूरू गोरख नाथ से प्राप्त की राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर प्राप्त राजा थे। (हरियाणा) सें हांसी, सतलुज राज्य गोगाजी का था। जयपुर से लगभग 250 किमी दूर गोगादेवजी का जन्म स्थान पास के सादलपुर , दत्तखेड़ा (ददरेवा) में है। दत्तखेड़ा चुरू में आता है। गोगादेव के घोड़े का आज भी अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत के बाद भी, उनके घोड़े की रकाब आज भी वहीं पर ज्यों का त्यों है।ठीक उसी प्रकार जब तक गोगा जी की माड़ी या जागरण में चिमटा न हो तब तक गुरु गोरखनाथ अपने नवनाथ सहित हाजिर नहीं होते। छड़ी अक्सर घर में ही रखी जाती है और उसकी पूजा की जाती है। केवल सावन और भादो के महीने में छड़ी निकाली जाती है और छड़ी को नगर में फेरी लगायी जाती है, इससे नगर में रोग बाधाएं नहीं होती, दूर हो जाते है। जाहरवीर के भक्त दाहिने कन्धे पर छड़ी रखकर फेरी लगवाते है । छड़ी को अक्सर लाल अथवा भगवे रंग के वस्त्र पर रखा जाता है। यदि किसी पर भूत प्रेत आदि की बाधा हो तो छड़ी को पीड़ित के शरीर को छुवाकर उसे एक बार में ही ठीक कर दिया जाता है भादो के महीने में भक्त जाहरवीर के दर्शनों के लिए छड़ी को भी साथ लेकर जाते है और गोरख गंगा में स्नान करवाकर जाहरवीर जी की समाधी से छड़ी छुआते है। ऐसा करने से छड़ी की शक्ति कायम रहती है । गोरखटीला स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश नवाकर भक्तजन मनौतियाँ माँगते हैं। (जात लगाने वाले) ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं बल्कि वहां समूह में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ व जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से गाकर सुनाते हैं। जीवनी सुनाते समय डैरूं व कांसी बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकले मारता है। मान्यता है कि गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है। गोरखनाथ जी की कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।
किस्से
कहा जाता है कि दिल्ली का बादशाह नौशेबरा बगावत दबाने के कारण गुग्गा मैड़ी के रास्ते अपनी फ़ौज लेकर निकलने लगा तो गुग्गा से बादशाह नौशेबरा ने मन्नत मांगी कि हे भगवान जाहरवीर अगर मैं बगावत दबाने में कामयाब हुआ तो आपके आराम के वास्ते एक आलीशान पक्की दरगाह बनाऊंगा लेकिन कामयाबी मिलने के बाद बादशाह भूल गया और जैसे ही उसकी फ ौज मैड़़ी के आगे बढऩे लगी तो बड़े-बड़े सर्पों को देख बादशाह नौशेबरा भयभीय हो गया। उसने पलटन को हुक्म दिया कि पीर महाराज के लिए अभी दरगाह बनवानी होगी। कहा जाता है कि भादरा से मैडी भवन तक लाइन लगाकर पलटन को खड़ा कर दिया गया और गुग्गा मैड़ी भवन तैयार होते ही सभी नाग देवता धरती की गोद में समा गए। दूर-दूर से लोग इस मैड़ी भवन में अपना मस्तक नवा कर अपने-अपने घरों को लौटते हैं, उनमें से किसी की भी मृत्यु आज तक सांप के काटने से नहीं हुई है, इसलिए गुग्गावीर की नाग देवता के रूप में भी आराधना की जाती हैपूजा का फल
गुगा जाहर पीर की अगर विधी विधान से कोई पूजा करे तो उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। अगर किसी को सांप काट ले तो गुगा महाराज का ध्यान करने से उसका ज़हर उतर जाता है। गुगा जी की भभूत खाने से उपरी और शरीरी कष्ट सब दूर हो जात हैं।बोलो गुग्गा जाहर पीर जी की… जय
गुग्गा जाहर पीर जी की आरती और स्तुति का वीडियो देखें
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